पदार्थों का शुद्धिकरण(separation and purification)
सामान्यतः प्रकृति में अधिकतर पदार्थ अशुद्ध रूप में ही पाये जाता है। अत: इनका शुद्धिकरण करना आवश्यक हैं। भिन्न-भिन्न पदार्थों की शुद्धिकरण की अलग-अलग विधियाँ हैं।
- निस्यंदन (Filtration)
- क्रिस्टलीकरण (Crystallisation)
- ऊर्ध्वपातन (Sublimation)
- विभेदी (Differential extraction)
- आसवन (Distillation)
- प्रभाजी आसवन (Fractional Distillation)
निस्यंदन (Filtration)
एक विषमांगी मिश्रण मे से द्रव व ठोस को अलग-अलग करने की विधि निस्यंदन(filtration) हैं निस्यंदन में ठोस पदार्थ फिल्टर पेपर पर अवशेष के रूप में एकत्रित किया जाता हैं। और द्रव निस्यंदन के रूप में प्राप्त होता हैं। उदाहरण — रेतीले जल से जल को पृथक करना।
क्रिस्टलकरण (Crystallisation)
क्रिक्रिस्टलकरण एक संतृप्त विलयन से ठोस क्रिस्टल के बनने की प्रक्रिया हैं। ठोस को द्रव से अलग करने के लिए क्रिस्टलीकरण(crystallisation) की विधि द्रव के वाष्पन से आरंभ होती हैं। हालाँकि क्रिस्टलीकरण में जब विलयन काफी सान्द्र हो जाता हैं तो वाष्पन को रोक दिया जाता हैं। इस प्रकार से प्राप्त सान्द्र विलयन को धीरे-धीरे ठण्डा किया जाता हैं तो क्रिस्टल बनते हैं। जो निस्यंदन के द्वारा अलग किये जा सकते हैं। उदाहरण — चासनी में से शक्कर पृथक करना, मिश्री बनाना तथा पानी व विलयन से नमक के क्रिस्टल प्राप्त करना आदि।
उदाहरण — नौसादर, आयोडीन, कपूर, नैफ्थलिन आदि
यह अभिश्रणीय द्रवों को पृथक करने कि विधि हैं। मिश्रण को पृथक्ककारी कीप में डालने पर दोनों द्रवों की भिन्न भिन्न परते प्राप्त होती हैं .स्टॉप कॉक खोलने पर पहले भारी द्रव एवं बाद में हल्का द्रव प्राप्त होता हैं।
उदाहरण — तेल एवं जल
जब द्रव में घुलनशील ठोस उपस्थित हो तो मिश्रण को उबालने पर द्रव वाष्पित हो जाता हैं। एवं वाष्प को ठण्डा करने पर संघनन के कारण शुद्ध द्रव प्राप्त होता हैं। इस प्रक्रिया को आसवन कहते हैं।
ऊर्ध्वपातन (Sublimation)
कुछ ठोस पदार्थों को गर्म करने पर वे बिना द्रवित हुए सीधे वाष्प में परिवर्तित हो जाते हैं। तथा वाष्प को ठण्डा करने पर बिना द्रव में बदले पुनः ठोस में बदल जाते हैं इस गुण को ऊर्ध्वपातन कहते हैं। नौसादर को गर्म करने पर नमक शेष रह जाता हैं एवं नौसादर वाष्पित हो जाता हैं। यही कीप पर ठण्डा होकर पुनः शुद्ध नौसादर ठोस रूप में बदल जाता हैं।उदाहरण — नौसादर, आयोडीन, कपूर, नैफ्थलिन आदि
विभेदी निष्कर्षण (Differential extraction)
यह अभिश्रणीय द्रवों को पृथक करने कि विधि हैं। मिश्रण को पृथक्ककारी कीप में डालने पर दोनों द्रवों की भिन्न भिन्न परते प्राप्त होती हैं .स्टॉप कॉक खोलने पर पहले भारी द्रव एवं बाद में हल्का द्रव प्राप्त होता हैं।उदाहरण — तेल एवं जल
आसवन (Distillation)
जब द्रव में घुलनशील ठोस उपस्थित हो तो मिश्रण को उबालने पर द्रव वाष्पित हो जाता हैं। एवं वाष्प को ठण्डा करने पर संघनन के कारण शुद्ध द्रव प्राप्त होता हैं। इस प्रक्रिया को आसवन कहते हैं।उदाहरण — जल का आसवन आदि।
प्रभाजी आसवन (Fractional Distillation)
दो द्रवों के क्वथनांकों में अधिक अन्तर न होने की स्थिति में उन्हें साधारण आसवन द्वारा पृथक नहीं किया जा सकता। ऐसे द्रवों की वाष्प एक ही ताप परास में बन जाती हैं तथा साथ-साथ संघनित हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में प्रभाज आसवन की तकनीक का उपयोग किया जाता हैं।मिश्रण को गर्म करने पर प्रत्येक द्रव उसके क्वथनांक पर वाष्पित होता हैं। इसकी वाष्प को प्रभाज स्तंभ से गुजारकर संघनित करने पर अलग-अलग द्रव प्राप्त होते हैं। पहले कम क्वथनांक वाला तथा बाद में अधिक क्वथनांक वाला द्रव प्राप्त होता हैं।
उदाहरण — पेट्रोलियम के प्रभाजी आसवन से भिन्न-भिन्न अवयव जैसे पेट्रोल, कैरोसिन, वैसलिन,डीजल, आदि पृथक किये जाते हैं।
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