संस्कृत (sanskrit): भाषा, वर्ण विचार, उच्चारण स्थान (संस्कृत व्याकरण) (sanskrit in Hindi)
संस्कृत व्याकरण विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है संस्कृत व्याकरण का व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करना चाहता हूं। Sanskrit Vyakaran RBSE Class 6 to10 तक कक्षाओं का व्यवहारिक ज्ञान हिंदी भाषा में प्रदान करता हू।
संस्कृत वर्ण विचार , वर्णमाला (Sanskrit Alphabet)
भाषा - अपने मनोभावों अथवा विचारों को दूसरों के समक्ष प्रकट करने का, दूसरों के भाव अथवा विचार जानने का माध्यम भाषा है। भाषते इति भाषा-अर्थात् जिसमें भाव अथवा विचार आदान-प्रदान करने की क्षमता निहित हो, वह भाषा है। संस्कृत और हिन्दी लिपि या लिखने की प्रणाली देवनागरी लिपि है। अंग्रेजी की 'रोमन' उर्दू की 'फारसी' एवं पंजाब की 'गुरुमुखी' लिपि है।
भाषा के भेद
भाषा के प्रमुख तीन भेद है
- मौखिक भाषा
- लिखित भाषा
- सांकेतिक भाषा
मौखिक - भाषा जब भावों और विचारों को
बोलकर प्रकट किया जाता है उसे कथित या मौखिक भाषा कहते है।
लिखित भाषा - जब हम लेखन के माध्यम
से अपने भाव या विचार प्रकट करते हैं तो उसे लिखित भाषा कहते हैं
सांकेतिक भाषा - जब हम अपने भाव को संकेत
तो के माध्यम से प्रकट करते हैं तो उसे सांकेतिक भाषा कहते हैं
भाषा के अंग-
- ध्वनि
- अक्षर या वर्ण
- शब्द
- वाक्य
(1)
ध्वनि - मुख से निकलने वाली हर एक स्वच्छन्द (स्वतन्त्र) स्वर (आवाज) का ध्वनि
कहते हैं।
(2)
अक्षर या वर्ण - भाषा के छोटे से छोटे चिह्न को अक्षर या वर्ण कहते हैं।
जैसे-क्, च्, ट्, त्, प्।
(3)
शब्द - सार्थक वर्णों का समुदाय शब्द कहलाता है।
जैसे- भ् + आ + र् + अ + त् + अ = भारत
प् + अ + त् + अ + ञ् + ज् + अ + ल् + इ। पतञ्जलि
र् + आ + म् + अ = राम।
(4)
वाक्य-सार्थक शब्दों का समुदाय वाक्य कहलाता है।
जैसे-शीला घर जाती है।
व्याकरण-
व्याकरण वह शास्त्र (वाङ्मय) है, जिससे हम भाषा के नियमों और प्रणाली का ज्ञान प्राप्त करते हैं।
वि + आ + कृ के योग से व्याकरण की संरचना है। व्युत्पत्ति (टुकड़े)
विश्लेषण करना व्याकरण भाषा का विश्लेषण कर उसके स्वरूप को स्पष्ट करती है। अन्य शब्दों में व्याकरण वह शास्त्र है, जिससे हमें भाषा के शद्ध बोलने और लिखने की विधि (प्रणाली) का ज्ञान होता है।
वर्ण -
ध्वनि की सबसे छोटी इकाई को वर्ण कहते हैं, अर्थात् वर्ण का सूक्ष्म रूप ध्वनि है।वर्ण के भेद - वर्ण के दो भेद होते हैं
- स्वर
- व्यंजन
स्वरा :- येषां वर्णानाम् उच्चारणं स्वतन्त्रतया भवति थे स्वरा: कथ्यते।
स्वर की परिभाषा - जो स्वयं अपनी सामर्थ्य से स्वयं बोले जाने वाले को स्वर कहते हैं।
स्वर के तीन भेद होते हैं
- हृस्व स्वर (ह्स्व स्वरा:)
- दीर्घ स्वर (दीर्घ स्वरा:)
- मिश्रित स्वर
हस्व
– ( एते एकमात्राकालेन उच्चार्यामाणा) ह्स्व स्वर वह है जो कम समय में तथा ऊँचे स्वर में बोला जाता है। ये पाँच होते हैं।
जैसे-अ, इ, उ, ऋ, लृ
क् + अ = क
क् + आ = का
क् + इ = कि
क् + उ = कु
क् + ऋ = कृ
ल् + ऋ = लृ
दीर्घ
– ( एतेद्विमात्राकालेन उच्चार्यामाणा) जिस स्वर में ऊँचा स्वर और लम्बा समय लगता है, उसे दीर्घ स्वर कहते हैं
आ, ई, ऊ, ऋ = कृ
मिश्रित स्वर - जिन स्वरों में ह्रस्व और दीर्घ का समय व स्वर लगता है। इसे सन्धि स्वर भी कहा जाता है।
अ + इ = ए
अ + उ = ओ
क् + ओ = को
क + ओ = औ
क् +
ए = के
क् + ओ = को
क् + औ = कौ
क + ऐ = कै
अं को अनुस्वार कहते हैं
अः को विसर्ग कहा जाता है।
अनुस्वार (•) और विसर्ग (:) का प्रयोग स्वर के अन्त में किया जाता है
जैसे
क + अं = कं
क + अ: = कः के रूप में लिखा जाता है।
व्यञ्जन-(येषां वर्णानाम् उच्चारणं स्वरेण सहाय्येन भवति ते व्यञ्जनानि कथ्यन्ते।) जो स्वरों की सहायता से बोले जाते हैं, उसे व्यञ्जन कहते हैं।
जैसे (क् + अ = क)
व्यंजन तीन प्रकार के होते हैं
- स्पर्श व्यंजन
- अन्त:स्थ व्यंजन
- ऊष्म व्यंजन
स्पर्श व्यंजन - जिन वर्णों के उच्चारण में हमारी जिह्वा, कण्ठ-तालु, मर्धा आदि स्वर तन्त्रियों
का स्पर्श करती है।
(पञ्चवर्गानां पञ्चविंशति व्यञ्जनानि वर्गीय व्यञ्जनानि कथ्यन्ते।
स्पर्श व्यंजन की संख्या 25 होती हैं
क वर्ग
|
क् ,ख् , ग् , घ् , ङ्
|
च वर्ग
|
च् , छ् , ज् ,झ् ,ञ्
|
ट वर्ग
|
ट् , ठ् ,ड् , ढ् , ण्
|
त वर्ग
|
त् , थ् , द् , ध् , न्
|
प वर्ग
|
प् , फ् , ब् , भ् , म्
|
अन्तःस्थ व्यञ्जन - जिन वर्गों के उच्चारण में हमारी जिह्वा कण्ठ आदि स्वर तन्त्रियों का थोड़ा स्पर्श करती है
अनवरत:स्थ व्यंजन की संख्या 4 होती है। (चत्वारि अन्तस्थ: वर्णानि)
य, व्, र् ल्
ऊष्म व्यञ्जन- जिनके उच्चारण करने में स्वर तन्त्रियों से ऊष्म वायु रगड़कर बाहर निकलती है।
(चत्वारि ऊष्म वर्णानि)
ऊष्म व्यंजन की संख्या 4
होती है
श्, ष्, स्, ह् ।
स्वर
- 13 होते हैं
अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ए,ऐ,ओ,औ,अं,अ:
व्यंजन - 33/46 वर्णों की वर्णमाला होती है।
वर्गों के उच्चारण स्थान आठ होते हैं-
(1)
कण्ठ
(2) तालुः
(3)
मूर्धा
(4)
दन्त्य (दन्ताः)
(5)
ओष्ठौ
(6)
नासिका
(7) जिह्वामूलम्
(8)
उरः
वर्ण उच्चारणं स्थान (वर्णानाम् उच्चारणस्थानानि)
१ अ् क् ख् ग् घ् ङ् ह् विसर्ग (:)
कण्ड:
२. इ् च् छ् ज् झ् ञ् य्
श् - तालुः
३.
ऋ ट् ठ् ड् ढ् ण, र् ष्
मूर्धाः
४.
लृ त् थ् द् ध्
न् ल स् दन्ताः
५.
उ प् फ् ब् भ् म् - औष्ठो
६. इ
ञ् ण् न् म् –
नासिका
७.
अनुस्वार (•) नासिका
८.
व् कार का - दन्तौष्ठ
९.
ए ऐ - कण्ठ-तालु
10. ओ औ - कण्ठौष्ठम्
11.
क ख - जिह्वामूलम्
उच्चारण स्थान बोधक चक्र
नासिका
|
कण्ठ
|
तालु
|
मूर्धा
|
दन्ताः
|
ओष्ठौ
|
कण्ठ-तालु
|
कण्ठ- ओष्ठौ
|
जिह्वा
|
ङ
|
अ
|
इ
|
ऋ
|
लृ
|
उ
|
ए
|
ओ
|
क
|
ञ्
|
क्
|
च्
|
ट्
|
त्
|
प्
|
ऐ
|
औ
|
ख
|
ण्
|
ख्
|
छ्
|
ठ्
|
थ्
|
फ्
|
-
|
-
|
-
|
न्
|
ग्
|
ज्
|
ड्
|
द्
|
ब्
|
-
|
-
|
-
|
म्
|
घ्
|
झ्
|
ढ्
|
ध्
|
भ्
|
-
|
-
|
-
|
(•)
|
ङ्
|
ञ्
|
ण्
|
न्
|
म्
|
-
|
-
|
-
|
ह्
|
य्
|
र्
|
ल्
|
-
|
-
|
-
|
-
|
|
(:)
|
श्
|
ष्
|
स्
|
-
|
-
|
-
|
-
|
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