द्विगु समास (Dvigu Samas), परिभाषा नियम और उदाहरण
द्विगु समास की परिभाषाद्विगु समास यदि कर्मधारय समास का पूर्व पद (पहला पद) संख्यावाची हो तो वह 'द्विगु समास कहलाता है। द्विगु समास तीन प्रकार का होता है यह समास समूह अर्थ में होता है।
समाहार द्विगु एकवचन तथा नपुंसकलिंग होता है। किन्तु अकारान्त (हस्व अ अन्त वाला) शब्द द्विगु में स्त्रीलिंग होता है।
इसके विग्रह में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।
द्विगु समास को निम्न प्रकार से विभाजित किया गया है।
- तद्धितार्थ द्विगु
- उत्तरपद द्विगु
- समाहार द्विगु
(1) तद्धितार्थ द्विगु समास-
दिशावाची एवं संख्यावाची शब्दों के साथ तद्धित प्रत्यय लगाकर जो समास होता है उसे तद्धितार्थ 'द्विगु समास कहते हैं।dvigu samas ke udaharan
- पूर्वस्यां शालायां भवः = पौर्वशालः (पूर्व की शाला में उत्पन्न)
- पंचसु कपालेषु संस्कृतः = पंचकपालः (पाँच कपालों में बनाया हुआ)
- पञ्चभिः गोभिः क्रीतः = पंचगुः (पाँच गायों से खरीदा गया)
(2) उत्तरपद द्विगु समास-
दोनों पदों में जिसका स्वतन्त्र समास इष्ट न हो, ऐसा पद यदि द्विगु के उत्तर पद से लगा हो तो वह 'उत्तर पद' द्विगु समास कहलाता है। जैसेद्विगु समास के उदाहरण
- पञ्च गावो धनं यस्य सः = पञ्चगवधनः (पाँच गाय हैं धन जिसकी)
- द्वाभ्यां मासाभ्यां जातः = द्विमासजातः (दो मासों में उत्पन्न)
- पञ्चः हस्ताः प्रमाणास्य = पञ्चहस्तप्रमाणः (पाँच हाथ प्रमाण वाला)
(3) समाहार द्विगु समास-
समूह अर्थ का बोध कराने वाले द्विगु समास को समाहार द्विगु कहते हैं। समाहार द्विगु एकवचन तथा नपुंसकलिंग होता है। किन्तु अकारान्त (हस्व अ अन्त वाला) शब्द द्विगु में स्त्रीलिंग होता है। किन्तु पात्र, युग, भुवन आदि शब्दों को छोड़कर।जैसे
- पंचानां गवां समाहारः = पञ्चगवम् (पाँच गायों का समूह)
- पंचानां पात्राणां समाहारः = पञ्चपात्रम् - (पाँच पात्रों का समूह)
- चतुर्णां युगानां समाहारः = चतुर्युगम् (चार युगों का समुह)
- त्रयाणां लोकानां समाहारः = त्रिलोकी - (तीन लोकों का समूह)
- सप्तानां दिनानां समाहार: सप्तदिनम् ( सात दिनों का समूह)
- त्रयाणां भुवनानां समाहार: त्रिभुवनम् (तीन भवनों का समुह)
- पञ्चानां पात्राणां समाहार: पञ्चपात्रम् (पांच पात्रों का समूह)
- पञ्चानां रात्रीणा समाहार: पञ्चपात्रम् (पांच रातों का समूह)
- शतानाम् अब्दानां समाहार: शताब्दी (सौ शब्दों का समूह)
- त्रयाणां लोकानां समाहार: त्रिलोकी ( तीनों लोकों का समूह)
- अष्टानाम् अध्यायानां समाहार: अष्टाध्यायी ( आठ अध्यायों का समूह)
- पञ्चानां वटानां समाहार: पञ्चवटी ( पांच वृक्षों का समूह)
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