संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Vyakaran) : समास विग्रह, नियम, परिभाषा और उदाहरण Samas in Sanskrit
समास की परिभाषा जब दो या दो से अधिक पदों के बीच (मध्य) की विभक्तियों को हटाकर जब एक पद कर दिया जाता है तो उसे 'समास' कहते हैंसमास' शब्द का अर्थ है 'संक्षेप' अर्थात विभक्ति रहित अनेक पदों के समूह को समास' कहते हैं
राज्ञः + पुरुषः = राजपुर पर 'राज्ञः' और 'पुरुषः' दोनों पदों के बीच की विभक्तियाँ हटा देने पर 'राजपुरुष' यह शब्द बनता है। अतः 'राजपुरुषः' समास-निष्पन्न शब्द
समास शब्द की व्युत्पत्ति
समास = सम् + अस् + घञ् = सम् + आस् + अ = समास [सम् उपसर्ग, अस् धातु, घञ् प्रत्यय]
समास विग्रह (samas vigrah)
'विग्रह' शब्द का अर्थ है अलग-अलग करना अर्थात् समस्त पदों को तोड़कर पूर्व क्रमानुसार अलग-अलग रख देना 'विग्रह' कहलाता है।
जैसे-'राजपुरुष' इस पद को (राज्ञः + पुरुषः) इस रूप में तोड़कर पूर्वक्रमानुसार अलग-अलग रख दिया गया है अतः इसे 'विग्रह' कहेंगे।
समास के भेद (Samas ke Prakar)
संस्कृत भाषा में समास के मुख्य रूप से चार भेद होते हैं।
नोट:- तत्पुरूष समास के मुख्यत: दो भेद होते हैं।
समास के भेद का श्लेषात्मक एक श्लोक प्रसिद्ध है
द्वन्द्वो द्विगुरपि चाहं मम गेहे नित्यमव्ययीभावः।तत्पुरुष! कर्मधारय येन स्यामहं बहुब्रीहिः॥जिससे समास के छः भेदों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है इस प्रकार समास के निम्नलिखित छः भेद प्रमुख हैं
समास के भेद (Samas ke Prakar)
1. तत्पुरुष समास ( tatpurush samas in sanskrit)
'उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुष', अर्थात् जहाँ पर उत्तर (अन्तिम) पद का अर्थ प्रधान होता है वहां तत्पुरुष समास होता है।जैसे-'राजपुरुषः = राजपुरुषः' में पुरुष की प्रधानता है
(1) जहाँ पर दोनों पदों में अलग-अलग विभक्तियाँ हों उसे व्यधिकरण तत्पुरुष कहते हैं। इसे ही विभक्ति तत्पुरुष भी कहते हैं।
जैसे-राज्ञः पुरुष: = राजपुरुषः
(2) जहाँ पर दोनों पदों में एक समान विभक्तियाँ होती हैं उसे समानाधिकरण तत्पुरुष कहते हैं हसे ही कर्मधारय एवं द्विगु समास भी कहते हैं।
जैसे-कृष्णः सर्पः = कृष्णसर्पः
विभक्ति तत्पुरुष -विभक्ति तत्पुरुष समास में दोनों पदों में अलग-अलग विभक्तियाँ होती हैं अतः इसे विभक्ति तत्पुरुष भी कहते हैं।
विभक्ति तत्पुरुष समास सात प्रकार का होता है
समास के भेद का चार्ट
- प्रथमा तत्पुरुष
- द्वितीया तत्पुरुष
- तृतीया तत्पुरुष
- चतुर्थी तत्पुरुष
- पञ्चमी तत्पुरुष
- षष्ठी तत्पुरुष
- सप्तमी तत्पुरुष
(1) प्रथमा तत्पुरुष- तत्पुरुष समास में प्रथम पद में प्रथमा विभक्ति होती है
जैसे
- पूर्व कायस्य = पूर्वकायः
- अपरं कायस्य = अपरकायः
- अर्धं पिपल्याः = अर्धपिप्पली
(2) द्वितीया तत्पुरुष - समास की अवस्था में द्वितिया विभक्ति का लोप पाया जाता है
जैसे
- कृष्णम् श्रितः = कृष्णाश्रितः
- दुःखम् अतीतः = दुःखातीतः
- ग्रामं गत: = ग्रामगत:
- नरकम् पतितः = नरहरित्रा
- गजं आरूढ़ = गजारूढ़
(3) तृतीया तत्पुरुष - समास की अवस्था में तृतिया विभक्ति का लोप पाया जाता है
जैसे
- धान्येन अर्थः = धान्यार्थः (धान्य से अर्थ)
- आचारेण निपुणः = आचारनिपुणः (आचार से निपुण)
- विद्यया हीन: = विद्याहीन (विद्या से हीन)
- अग्निननादग्ध: = अग्निदग्ध
- गुरुणा सदृश: = गुरुणा सदृश (गुरु से सदृश)
- मदे रहित: = मदरहित
(4) चतुर्थी तत्पुरुष-समास की अवस्था में चतुर्थी विभक्ति का लोप पाया जाता है
- द्विजाय सुखम् = द्विजसुखम् (ब्राह्मणों के लिए सुख)
- द्विजाय अर्थम् = द्विजार्थः (द्विज के लिए यह)
- गवे रक्षितम् = गो रक्षितम् (गायों के लिए रक्षा)
- गवेहितम् = गोहितम्
- धनाय लोभ: = धन लोभ:
- सुखाय अर्थम् = सुखार्थम् (सुख के लिए यह)
(5) पञ्चमी तत्पुरुषः- समास की अवस्था में पंचमी विभक्ति का लोप पाया जाता है
- स्वर्गात पतितः = स्वर्ग पतितः (स्वर्ग से पतित)
- वृकात् भीत: वृकभीत (वृक से भीत)
- देशांत् निर्गत: देशनिर्गत ( देश से निर्गत)
- अश्वात् पतितं: = अश्वपतित:
- सिंहात् भयम् = सिंहभयम् (सिंह से भय)
- रोगात् मुक्त: = रोगमुक्त (रोग से मुक्त)
(6) षष्ठी तत्पुरुष-समास की अवस्था में षष्ठी विभक्ति का लोप पाया जाता है
- राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः (राजा का पुरुष)
- विद्यायाः आलयः = विद्यालयः (विद्या का स्थान)
- देवानां पूजकः = देवपूजकः (देवताओं का पूजक)
- विद्या: आलय: = विद्यालय (विद्या का आलय)
- धर्मस्थ दण्ड: = धर्मदण्ड़
- सुवर्णस्य मुद्रा = सुवर्णमुद्रा
- गृहस्य स्वामी = गृहस्वामी
(7) सप्तमी तत्पुरुष- समास की अवस्था में सप्ततमी विभक्ति का लोप पाया जाता है
- अक्षेष शौण्ड = अक्षशौण्डः (अक्ष (पासों) में चतुर)
- वचने धूर्तः = वचनधूर्तः - (वचन में धूर्त)
- आतपे शुष्कः = आतपशुष्कः (धूप में सूखा)
- कार्ये कुशल: = कार्य कुशल:
- जले मग्न: = जलमग्न:
- शास्त्रेषु दक्ष: = शास्त्रदक्ष:
2. कर्मधारय समास (karmadharaya samas in sanskrit)
समानाधिकरण तत्पुरुष को कर्मधारय समास कहते हैं। जहाँ पर विशेषण और विशेष्य का समानाधिकरण समास होता है उसे 'कर्मधारय समास कहते हैं।- घन + इव + श्यामः = घनश्यामः (बादल के समान काला)
- वज्रम् इव कठोरम् इति वज्रकठोरम् ( वज्र के समान कठोर)
- पुरुष व्याघ्रः + इव = पुरुषव्याघ्रः (पुरुष व्याघ्र के समान)
- नरः सिंह + इव = नरसिंहः (मनुष्य सिंह के समान)
- मुखं चन्द्र + इव = मुखचन्द्रः (मुख चन्द्रमा के समान)
- पुरुष: सिंह: इव पुरुषसिंह: (पुरुष सिंह के समान)
- महान् + राजा = महाराजः (महान् राजा)
- पीतम् + अम्बरम् = पीताम्बरम् (पीला अम्बर)
(3.) द्विगु समास (dvigu samas in sanskrit)
यदि कर्मधारय समास का पूर्व पद (पहला पद) संख्यावाची हो तो वह 'द्विगु समास कहलाता है।- इसके विग्रह में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।
- पूर्वस्यां शालायां भवः = पौर्वशालः (पूर्व की शाला में उत्पन्न)
- पंचसु कपालेषु संस्कृतः = पंचकपालः (पाँच कपालों में बनाया हुआ)
- पञ्चभिः गोभिः क्रीतः = पंचगुः (पाँच गायों से खरीदा गया)
- पञ्च गावो धनं यस्य सः = पञ्चगवधनः (पाँच गाय हैं धन जिसकी)
- द्वाभ्यां मासाभ्यां जातः = द्विमासजातः (दो मासों में उत्पन्न)
(4.) द्वन्द्व समास (dwand samas in sanskrit)
उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः' अर्थात् जहाँ पर दोनों पदों का अर्थ प्रधान होता है उसे द्वन्द्र समास कहते हैं।- हरिश्च हरश्च = हरिहरौ (हरि और हर)
- धवश्च खदिरश्च = धवखदिरौ (धव और खदिर)
- भावश्च केशवश्च = शिव केशवौ (शिव और केशव)
- हरिश्च हरश्च गुरुश्च = हरिहरगुरवः (हरि, हर और गुरु)
- कक्कूटश्च मयूरी च = कुक्कुटमयूर्ये (कुक्कुट और मयूरी)
- ईशश्च कृष्णश्च = ईशकृष्णौ (ईश और कृष्ण)
- शिवश्च केशवश्च = शिवकेशवौ (शिव और केशव)
- पाणी च पादौ च = पाणिपादम् (हाथ और पैर)
- गंगा च शोणश्च गंगाशोणम् (गंगा और शोण)
(5.) अव्ययीभाव समास (avyayibhav samas in sanskrit)
‘पदार्थप्रधानोऽव्ययीभावः' अर्थात् जिसका पूर्व अथवा प्रथम पद का अर्थ प्रधान होता है उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। अव्ययीभाव समास का प्रथम पद का अर्थ प्रधान होता है।- समुद्रम् = मद्रणां समृद्धि: (मद्रवासियो की समृद्धि)
- दुर्यवनम् = यवनानां: व्यृद्धि (यवनों की व्यृद्धि)
- निर्मक्षिकम् = मक्षिकाणाम भाव: (मक्खियों का अभाव)
- अतिहिमम् = हिमस्य अव्यय: (हिम का नाश )
(6.) बहुब्रीहि समास (bahuvrihi samas in sanskrit)
'अन्यपदार्थप्रधानो बहुब्रीहिः' अर्थात् जहाँ पर अन्य पद का अर्थ प्रधान होता कहते हैं। उसे ‘बहुब्रीहि’ समास कहते हैं भाव यह है कि बहुब्रीहि समास में अन्य पद का अर्थ प्रधान अर्थ होता है। अर्थात् दुसरा ही अर्थ होता हैबहुव्रीहि समास संस्कृत उदाहरण-
- पीतानि अम्बराणि यस्य सः = पीताम्बर: (पीताम्बरधारी कृष्ण)
- दत्तं राज्यं यस्मै सः = दत्तराज्यः (दिया गया है राज्य जिसको ऐसा पुरुष)
- निर्गतं बलं यस्मात् सः = निर्बलः (जिससे बल निकल गया है ऐसा पुरुष)
- पीतम् अम्बरम् यस्य सः = पीताम्बरः (पीला है वस्त्र जिसका)
- चित्र गौः यस्य सः = चित्रतुः (चित्र (चितकबरी) गायें हैं जिसकी वह)
- व्यूढमूउरः यस्य सः = व्यूढोरस्कः (विशाल उर है जिसका वह)
- महान् आशय यस्य सः = महाशयः (महान् आशय है जिसका वह)
- चन्द्रः शेखरे यस्य सः = चन्द्रशेखरः (चन्द्र है सिर पर जिसके, ऐसे शिव)
- चक्रं पाणौ यस्य सः = चक्रपाणिः (चक्र हाथ में है जिसके, विष्णु)
- शूलं पाणौ यस्य स: शूलपाणि: (विष्णु)
- धनु: धारयति य: स: = धनुर्धर: (विष्णु)
- लम्ब: उदर यस्य स: = लम्बोदर: (गणेश)
Source RBSE
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