ब्लूम के शैक्षिक उद्देश्य का वर्गीकरण - bloom's taxonomy in Hindi

ब्लूम शैक्षिक उद्देश्यों का वर्गीकरण (bloom's taxonomy in Hindi)

ब्लूम का वर्गीकरण Bloom Taxonomy बेंजामिन ब्लूम (1913-1999) एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थे, जिन्होंने  अपनी पुस्तक Taxonomy of Educational Objectives में 1956 में प्रकाशित कर वर्गीकरण को दर्शाया।

ब्लूम का वर्गीकरण - bloom's taxonomy in Hindi

ब्लूम टैक्सनॉमी, बी. एस. ब्लूम ने सीखने के उद्देश्यों को तीन पक्षों में विभाजित किया है। सीखने के उद्देश्यों का सम्बन्ध छात्रों के व्यवहार परिवर्तन से होता है। ब्लूम के वर्गीकरण को “शिक्षा के उद्देश्यों” के नाम से भी जाना जाता हैं।
व्यवहार परिवर्तन तीन प्रकार के होते हैं।

  1. ज्ञानात्मक
  2. भावात्मक
  3. क्रियात्मक

 ब्लूम के अनुसार सीखने के उद्देश्य भी तीन प्रकार के होते हैं-

(1) ज्ञानात्मक उद्देश्य (Cognitive objectives)

ज्ञानात्मक उद्देश्यों का सम्बन्ध सूचनाओं का ज्ञान तथा तथ्यों की जानकारी से होता है। अधिकांश शैक्षिक क्रियाओं द्वारा इसी उद्देश्य की प्राप्ति की जाती है।

(2) भावात्मक उद्देश्य (Affective objectives)

भावात्मक उद्देश्यों का सम्बन्ध रुचियों, अभिवृत्तियों तथा मूल्यों के विकास से होता है। यह शिक्षा का महत्त्वपूर्ण उद्देश्या माना जाता है।

(3) क्रियात्मक उद्देश्य (Psychomotor Objectives)

क्रियात्मक उद्देश्यों का सम्बन्ध शारीरिक क्रियाओं के प्रशिक्षण तथा कौशल के विकास से होता है। इस उद्देश्य का सम्बन्ध औद्योगिक तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण से होता है।
ब्लूम तथा उसके सहयोगियों ने शिकागो विश्वविद्यालय में इन तीनों पक्षों का वर्गीकरण प्रस्तुत किया है।
ज्ञानात्मक पक्ष का ब्लूम ने 1956, भावात्मक पक्ष का ब्लूम करथवाल तथा मसीआ ने 1964 में, क्रियात्मक पक्ष का सिम्पसन ने 1969 में वर्गीकरण प्रस्तुत किया है।
ब्लूम' द्वारा प्रस्तावित शिक्षण उद्देश्यों के वर्गीकरण को निम्नांकित तालिका के रूप में दर्शाया गया है-

शैक्षिक उद्देश्यों का वर्गीकरण (Taxonomy of education objectives

ज्ञानात्मक पक्ष भावात्मक पक्ष क्रियात्मक पक्ष
1. ज्ञान 1. आग्रहण 1. उद्दीपन
2. बोध 2. अनुक्रिया 2. कार्य करना
3. प्रयोग 3. अनुमूल्यन 3. नियंत्रण
4. विश्लेषण 4. प्रत्यक्षीकरण 4. समायोजन
5. संश्लेषण 5. व्यवस्थापन 5. स्वभावीकरण
6. मूल्यांकन 6. चरित्र निर्माण 6. आदत पड़ना व कौशल

(1) ज्ञानात्मक उद्देश्य (Congnitive Objectives)

(1) ज्ञान

ज्ञान में छात्रों के प्रत्यास्मरण तथा अभिज्ञान की क्रियाओं को तथ्यों, शब्दों, नियमों तथा सिद्धान्तों की मदद से विकसित किया जाता है। छात्र हेतु परम्पराओं, वर्गीकरण मानदण्डों से नियमों तथा सिद्धान्तों के प्रत्यास्मरण तथा अभिज्ञान के लिए परिस्थितियाँ उत्पन्न की जाती हैं। ज्ञान वर्ग के भी पाठ्यवस्तु की दृष्टि से तीन स्तर होते हैं-
  1. विशिष्ट बातों का ज्ञान देना ।
  2. उपायों तथा साधनों का ज्ञान देना।
  3. सामान्यीकरण, नियमों तथा सिद्धान्तों का ज्ञान देना।

(2) बोध

बोध के लिए ज्ञान का होना आवश्यक होता है, जिस पाठ्यवस्तु का ज्ञान प्राप्त किया है अर्थात् प्रत्यास्मरण और अभिज्ञान की क्षमताओं का विकास हो चुका है। उन्हीं का अपने शब्दों में अनुवाद करना, व्याख्या करना तथा उल्लेख करना आदि क्रियायें बोध उद्देश्य के स्तर पर की जाती हैं।
बोध उद्देश्य की क्रियाओं के निम्नलिखित तीन स्तर होते हैं-
  1. तथ्यों, शब्दों, नियमों, साधनों तथा सिद्धान्तों को अनुवाद करके अपने शब्दों में व्यक्त करना।
  2.  इसी पाठ्यवस्तु की बाह्य गणना तथा उल्लेख करना।
  3. पाठ्यवस्तु की व्याख्या करना।

(3) प्रयोग

प्रयोग के लिए ज्ञान एवं बोध का होना जरूरी होता है, तभी छात्र प्रयोग स्तर की क्रियाओं में समर्थ हो सकता है।
पाठ्यवस्तु का प्रयोग उद्देश्यों में भी तीन स्तरों पर प्रस्तुत करते हैं-
  1. नियमों, साधनों, सिद्धान्तों में सामान्यीकरण करना।
  2. छात्र द्वारा पाठ्यवस्तु का प्रयोग करना अर्थात् छात्र इन शब्दों तथा नियमों को अपने कथनों में प्रयोग कर लेता है।
  3. उनकी कमजोरियों को जानने के लिए निदान करना।

(4) विश्लेषण

विश्लेषण के लिए तीनों ही उद्देश्यों की प्राप्ति जरूरी होती है इसमें पाठ्यवस्तु के नियमों, सिद्धान्तों, तथ्यों तथा प्रत्ययों को निम्न तीन स्तरों पर प्रस्तुत किया जाता है
  1. उनके तत्वों का विश्लेषण करना।
  2. उनके सम्बन्धों का विश्लेषण करना।
  3. उनका व्यवस्थित सिद्धान्त के रूप में विश्लेषण करना।

(5) संश्लेषण

संश्लेषण को सृजनात्मक उद्देश्य भी कहते हैं, इसमें विभिन्न तत्त्वों को एक नवीन रूप में व्यवस्थित किया जाता है।
 संश्लेषण के निम्न तीन स्तर होते हैं-
  1. विभिन्न तत्वों के संश्लेषण में अनोखा सम्प्रेषण करना।
  2. तत्त्वों के संश्लेषण से नवीन योजना प्रस्तावित करना।
  3. तत्त्वों के अमूर्त सम्बन्धों का अवलोकन करना।

(6) मूल्यांकन

मूल्यांकन ज्ञानात्मक पक्ष का अन्तिम तथा सबसे उच्च उद्देश्य माना जाता है। मूल्यांकन में पाठ्यवस्तु के नियमों, सिद्धान्तों तथा तथ्यों के सम्बन्ध में आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाया जाता है। उनके सम्बन्ध में निर्णय लेने में आन्तरिक तथा बाह्य मानदण्डों को प्रस्तुत किया जाता है। वास्तव में मूल्यांकन को नियमों, तथ्यों, प्रत्ययों तथा सिद्धान्तों की कसौटी का स्तर माना जाता है।
विद्यालयों के शिक्षण विषयों की पाठ्यवस्तु में शब्दावली, तथ्य, नियम, उपाय,साधन, विधियाँ, प्रत्यय, सिद्धान्त तथा सामान्यीकरण ही होते हैं । इतिहास की पाठ्यवस्तु के तथ्य होते हैं। विज्ञान की पाठ्यवस्तु में नियम, विधियाँ तथा सिद्धान्त होते हैं । भाषा की पाठ्यवस्तु में शब्दावली, साधन, प्रत्यय नियम होते हैं। इस प्रकार शिक्षण विषयों की सहायता से ज्ञान उद्देश्य मूल्यांकन उद्देश्यों तक की प्राप्ति की जाती है और इस प्रकार ज्ञानात्मक पक्ष का विकास होता है।

2.भावात्मक उद्देश्य

भावात्मक उद्देश्यों का सम्बन्ध रुचियों, अभिवृत्तियों तथा मूल्यों के विकास से होता है। यह शिक्षा का महत्त्वपूर्ण उद्देश्या माना जाता है।


क्रमांक वर्ग सीखने की उपलब्धियां
1 ग्रहण करना 1.क्रिया की जागरूकता
2. क्रिया प्राप्त करने की इच्छा
3. क्रिया का नियन्त्रित ध्यान
2 अनुक्रिया 1. अनुक्रिया में सहमति
2. अनुक्रिया की इच्छा
3. अनुक्रिया का सन्तोष
3. अनुमूल्यन 1. मूल्य की स्वीकृति
2. मूल्य की प्राथमिकता
3. वचनबद्धता
4.  व्यवस्थापन 1. मूल्यों की अवधारणा
2. मुल्य व्यवस्था का संगठन
5.  मूल्य समूह का विशेषीकरण  1. साथियों द्वारा उच्च मूल्यांकन करना
2. सामान्य समूह
3. विशेषीकरण

3. क्रियात्मक पक्ष

क्रियात्मक पक्ष का सम्बन्ध भिन्न प्रकार के मनोगत्यात्मक कौशल के विकास से है। मनोगत्यात्मक कौशल से आशय मांसपेशिय एवं आंगिक गतियों को किसी प्रयोजन के निमित्त नए प्रतिमान में संगठित करने से है, उपकरणों का प्रयोग करता है। मॉडल बनाता है। 

क्रमांक वर्ग उपलब्धियां
1. प्रत्यक्षीकरण 1. वर्णनात्मक स्तर
2. संक्रमणात्मक
3. व्याख्यात्मक स्तर
2.  विन्यास 1. मानसिक स्तर
2. शारीरिक स्तर
3. संवेगात्मक स्तर
3.   निर्देशात्मक प्रतिक्रियाएं 1. जटिल कौशलों पर बल देने वाली क्रियाएं
4.  कार्य विधि 1. कौशल का विकास करना
2. आत्मविश्वास का विकास करना
3. उपयुक्त प्रतिक्रियाओं में सहायक
5.  जटिल बाह्य प्रतिक्रिया 1. कौशल का विकास करना
2. जटिल कार्य करने के कौशल एवं क्षमता का विकास करना



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