संस्कृत: स्वर संधि (swar sandhi) परिभाषा, भेद और उदाहरण [Sanskrit sandhi in Hindi]
संधि शब्द की व्युत्पत्ति :- सम् + डुधाञ् (धा) धातु = सन्धि “उपसर्गे धो: कि: “ सूत्र से कि प्रत्यय करने पर 'सन्धि' शब्द निष्पन्न होता है।
सन्धि की परिभाषा – “वर्ण-सन्धानं सन्धिः” इस नियम के अनुसार दो वणों के मेल का सन्धि कहते हैं। अर्थात् कि दो वर्णों के मेल जो विकार उत्पन्न होता है उसे 'सन्धि' कहते हैं। वर्ण सन्धान को संधि कहते हैं।
जैसे-अ+ अ = आ यहाँ पर दो अ (अ+ अ) मिलकर 'आ' हो गया है, अतः इसे 'सन्धि' कहते हैं।
पाणिनीय परिभाषा “पर: सन्निकर्ष: संहिता” अर्थीत् वर्णों की निकटता को संहिता कहा जाता है।
प्रथम पद के अन्तिम वर्ण तथा द्वितीय पद के प्रथम वर्ण में सन्धि होती है। जैसे-उप के अ तथा इन्द्रः के इ को मिलाकर ए बना = उपेन्द्रः पद का निर्माण हुआ।
संस्कृत:स्वर संधि परिभाषा,भेद,उदाहरण |
सन्धि के नियम
संहितैकपदें नित्या धातपसर्गयोः। नित्या समासे, वाक्ये तु सा विवक्षामपेक्षते॥
एक पद में सन्धि नित्य होती है और धातु तथा उपसर्ग के योग में, समास में सन्धि अवश्य करनी चाहिये।
जैसे
जैसे
1. एक पद में-भो+ अति = भवति । पौ + अक = पावक।
2. धातु और उपसर्ग के योग में-प्र + एजते = प्रेजते। सम् + हरते = संहरते।
3. समास में-पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः।
सन्धि के प्रकार (sandi ke parkar)
संस्कृत में संधि के तीन मुख्य प्रकार होते हैं।
- स्वर (अच् सन्धि)
- व्यंजन (हल् सन्धि)
- विसर्ग
1. स्वर संधि
अच् सन्धि भी कहा है। स्वर वर्ण परस्पर मिलते हैं और उनके मिलने पर जो विकार उत्पन्न हो, कहते हैं।जैसे-उपेन्द्रः, नदीश, तथैव।
स्वर सन्धि (अच् सन्धि) के भे
- सवर्ण दीर्घ सन्धि (स्वर संधि)
- गुण संधि
- वृद्धि संधि
- यण् संधि
- अयादि संधि
- पूर्वरूप संधि
- पररूप संधि
- प्रकृति भाव
सवर्णदीर्धसन्धि ( ' अक: सवर्णे दीर्ध:)
' सूत्र संहिता के विषय में अक: प्रत्याहार से परे सवर्ण अच् (स्वर) होने पर पूर्व पर वर्णों के स्थान पर दीर्घ एकादेश होता है।
यदि अक् अर्थात् ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ, लृ
के बाद उसी के समान स्वर (वर्ण) आवे तो दोनों मिलकर दीर्घ हो जाता है ,
जैसे
अ + अ = आ
अ + आ = आ
आ + अ = आ
आ + आ = आ
इ + इ = ई
इ + ई = ई
ई + इ = ई
ई + ई = ई
उ+ उ = ऊ
उ + ऊ = ऊ
ऊ+ ऊ = ऊ
ऊ + उ = ऊ
ऋ + ऋ = ऋ
नियम जब अ या आ के बाद अ या आ आवे तो दोनों के स्थान पर 'आ' दीर्घ हो जाता है,
जैसे
हिम + अद्रि = हिमाद्रि (अ + अ = आ)
हिम + आलयः = हिमालयः (अ + आ = आ)
विद्या + आलयः = विद्यालयः (आ + आ = आ)
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी (आ + अ = आ)
देत्य + अरि: = दैत्यारि: (अ + अ = आ)
तव + आदेश = तवादेश: (अ + आ = आ)
देव + आलय = देवालय: (अ + आ = आ)
हिम + अचल: = हिमालय: (अ + अ = आ)
महा + आशय: = महाशय: (आ + आ = आ)
देव + आनन्द: = देवानंद: (अ + आ = आ)
गौर + अङ्ग = गौराङ्ग
रत्न + आकर: = रत्नाकर: (अ + आ = आ)
विद्या + अभ्यास: = विद्याभ्यास: (आ + अ = आ)
शश + अङ्क: = शशाङ्क(आ + अ = आ)
तथा + अर्थ: = यथार्थ: (आ + अ = आ)
नियम जब इ या ई के बाद इ या ई आवे तो दोनों के स्थान पर 'ई' दीर्घ हो जाता है,
जैसे
कवि + इन्द्रः = कवीन्द्रः (इ + इ = ई)
गिरि + ईशः = गिरीशः (इ + ई = ई)
श्री + ईशः = श्रीशः (ई + ई = ई)
सुधी + इन्द्रः = सुधीन्द्रः (ई + इ = ई)
मही + इन्द: = महीन्द्र (इ + ई = ई)
नदी + ईश = नदीश (ई + ई = ई)
क्षिति + ईश = क्षितीश (ई + ई = ई)
मही + ईश: = महीश: (ई + ई = ई)
अति + इव = अतीव (इ + इ = ई)
परि + ईक्षा = परीक्षा: (इ + इ = ई)
महती + इच्छा = महतीच्छा (ई + इ = ई)
इति + इव = इतीव (इ + इ = ई)
रवि + इन्द्र: = रवीन्द्र: (इ + इ = ई)
गौरी + ईश: गौरीश: (ई + ई = ई)
नियम यदि उ या ऊ के बाद आवे तो दोनों के स्थान पर मिलकर 'ऊ' दीर्घ हो जाता है।
जैसे
भानु + उदयः = भानूदयः (उ+उ = ऊ)
लघु + ऊर्मिः = लघूर्मिः (उ + ऊ = ऊ)
लघू + ऊर्जितम् = लघूर्जितम् (ऊ + ऊ = ऊ)
वधू + उत्सवः = वधूत्सवः (ऊ + उ = ऊ)
विष्णु + उदय: विष्णूदय: (उ+उ = ऊ)
गुरू + उपदेश: = गुरूपदेश: (ऊ + उ = ऊ)
भानु + ऊष्मा = भानूष्मा (उ + ऊ = ऊ)
मधु + उत्तमम् = मधूत्तमम् (उ+उ = ऊ)
नियम यदि ऋ या लृ के बाद ऋ या लृ आवे तो दोनों के स्थान पर ऋ दीर्घ हो जाता है
जैसे
होतृ + ऋकार = होतॄकार (ऋ + ऋ = तॄ)
मातृ + ऋणम् = मातृणम् (ऋ + ऋ = ऋ)
पितृ + ऋणम् = पितृणम् (ऋ + ऋ = तॄ )
कर्तृ + ऋणि = कर्तॄणि (ऋ + ऋ = तॄ )
कर्तृ + ऋद्धि = कर्तॄद्धि: (ऋ + ऋ = तॄ )
(2) गुण सन्धि आद् गुणः -
यदि अ या आ के बाद हृस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ लृ आवे तो दोनों के स्थान पर क्रमशः ए, ओ, अर्, अल् गुण हो जाता है,
जैसे
अ +इ=ए
अ + उ = ओ
आ + इ = ए
आ + उ = ओ
अ + ई = ए
अ+ ऊ = ओ
आ + ई = ए
आ + ऊ = ओ
अ + ऋ = अर
अ+ लृ = अल्
आ + ऋ = अर
नियम यदि अ या आ के बाद इ या ई आवे तो दोनों के स्थान पर 'ए' गुण हो जाता है
नियम यदि अ या आ के बाद इ या ई आवे तो दोनों के स्थान पर 'ए' गुण हो जाता है
जैसे
उप + इन्द्रः = उपेन्द्रः (अ + इ = ए)
गण + ईशः = गणेशः (अ + ई = ए)
महा + इन्द्रः = महेन्द्रः (आ + ई = ए)
रमा + ईशः = रमेशः (आ + ई = ए)
उमा + ईशः = उमेशः (आ + ई = ए)
देव + इन्द्र: = देवेन्द्र: (अ + इ = ए)
रमा + ईश = रमेश: (अ + ई = ए)
गजब + इन्द्र: = गजेन्द्र: (अ + इ = ए)
न + इति = नेति (अ + इ = ए)
विकल + इन्द्रिय: = विकलेन्द्रिय: (अ + इ = ए)
गज + इन्द्र: = गजेन्द्र: (अ + इ = ए)
यथा + इच्छम् = यथेच्छम् (अ + इ = ए)
तथा + इति = तथेति (अ + इ = ए)
यथा + इष्ट = यथेष्ट (अ + इ = ए)
सुर + ईश: = सुरेश: (अ + ई = ए)
सर्व + ईश: = सर्वेश: (अ + ई = ए)
दिन + ईश: = दिनेश: (अ + ई = ए)
यहां + ईश: = महेश: (आ + ई = ए)
गङ्गा + ईश्वर = गङ्गेश्वर: (आ + ई = ए)
राम + इतिहास: = रामेतिहास: (आ + इ = ए)
नियम यदि अ या आ के बाद उ या ऊ आवे तो दोनों के स्थान पर 'ओ' गुण हो जाता है
जैसे
सूर्य + उदयः = सूर्योदयः (अ + उ = ओ)
हित + उपदेशः = हितोपदेशः (अ+उ = ओ)
वृक्ष + उपरि =- वृक्षोपरि (अ+उ = ओ)
पुरुष + उत्तम = पुरुषोत्तम: (अ+उ = ओ)
पर + उपकार: = परोपकार: (अ + उ = ओ)
गंगा + उदकम् = गंगोदकम् (आ + उ = ओ)
महा + उदयः = महोदयः (आ + उ = ओ)
परीक्षा + उत्सव = परीक्षोत्सव:
आ + उदकान्तम् = ओदकान्तम्
गङ्गा + उदकम् = गङ्गोदकम्
अत्यन्त + ऊर्ध्वम् = अत्यन्तोर्ध्वम् (अ+उ = ओ)
एक + ऊन = एकोन (अ+ ऊ = ओ)
गगन + ऊर्ध्वम् = गगनोर्ध्वम् (अ+ ऊ = ओ) ऊ
महां + उत्सव = महोत्सव: (आ + उ = ओ)
माया + ऊर्जस्वि = माययोर्जस्वि (आ + ऊ = ओ)
महा + ऊर्णम् = महोर्णम् (आ + ऊ = ओ)
जल + उपमा = जलोपमा (अ + उ = ओ)
नियम यदि अ या आ के बाद ऋ आवे तो दोनों के स्थान पर 'अर' गुण हो जाता है,
जैसे
देव+ ऋषिः = देवर्षिः (अ+ ऋ = अर्)
महा + ऋषिः = महर्षिः (आ + ऋ = अर्)
राजा + ऋषि: = राजर्षि: (अ+ ऋ = अर्)
ब्रह्म + ऋषि = ब्रह्मर्षि (अ+ ऋ = अर्)
कृष्ण + ऋद्धि: = कृष्णर्द्धि: (अ+ ऋ = अर्)
वसन्त + ऋतु: = वसन्तर्तु: (अ+ ऋ = अर्)
ग्रीष्म + ऋतु: = ग्रीष्मर्तु: (अ+ ऋ = अर्)
महा + ऋद्धि: = महर्द्धि: (आ + ऋ = अर्)
ब्रह्मा + ऋषि = ब्रह्मार्षि (अ+ ऋ = अर्)
नियम यदि अ या आ के बाद लृ आवे तो दोनों के स्थान पर अल् गुण हो जाता है,
जैसे
तव + लृकारः= तवल्कारः (अ+ लृ= अल्)
माला + लृकारः = मालाल्कारः (आ+लृ = लृ)
मम + लृकारः= ममल्कार: (अ+ लृ= अल्)
तव + लृदन्त: = तवल्दन्त: (अ+ लृ= अल्)
(3) यण् सन्धि ( इकोयणचि ) -
यदि हस्व या दीर्घ इक् (इ, उ, ऋ,लृ) के बाद कोई असमान स्वर आवे तो उसके स्थान पर क्रमशः य्, व्, र, ल यण् हो जाता है।
जैसे
इ = य्
ऋ = र्
उ = व्
लृ = ल्
ई = य्
ऋ = र्
नियम यदि इ या ई के बाद कोई असमान स्वर आवे तो इ तथा ई के स्थान पर 'य्' यण् हो जाता है
जैसे
दधि+ आनय = दध् + य् + आनय = दध्यानय
प्रति + एक = प्रत् + य् + एक = प्रत्येक
सुधी + उपास्य = सुधी + उपास्यः = सुध्युपास्यः
यदि + अपि = यद् + य् + अपि = यद्यपि
इति + आदि = इतर + य् + आदि = इत्यादि
नदी + उदकम् = नद् + य् + उदकम् = नधुदकम्
नदी + आदय
= नद् + य् + आदय
= नद्यादय:
चलति + एकेन = चलत् + य् + एकेन
= चलत्येकेन
चलति + अग्रे = चलत् + य् + अग्रे
= चलत्यग्रे
यास्यति + अद्य = यास्यत् + य् + अधर्म = यास्यत्यद्य
स्वस्ति + अयनम् = स्वस्त् + य् + अयनम्
= स्वस्त्ययनम्
नियम यदि उ या ऊ के बाद कोई असमान शब्द आवे तो उ तथा ऊ के स्थान पर 'व' यण्
हो जाता है
जैसे
मधु + अरिः = मध् + व् + अरि = मध्वरिः
वधू + आदेशः = वध् + व् +
आदेश = वध्वादेशः
मधु + आगमन: =मध्य
+ व् = मध्वागमन:
अनु + अय: = अन् + व् + अय: = अन्वय:
अनु + आगच्छत् = अन् + व् + आगच्छत् = अन्वागच्छत्
भू + आदि = भ् + व् + आदि = भ्वादि
नियम यदि ऋ के बाद कोई स्वर आवे तो ऋ के स्थान पर 'र' यण् हो जाता है
जैसे
धातृ + अंशः = धात् = र् + अंश = धात्रंशः
पितृ + उपदेशः = पित् + र् + उपदेश = पित्रुपदेशः
पितृ + आदेश = पित् + र् +आदेश = पित्रादेश
नियम यदि लृ
के बाद कोई स्वर आवे तो लृ
के स्थान पर 'ल्‘
यण् हो जाता है,
जैसे
लृ + अकारः = ल् + अकारः = लकारः
लृ + आकृतिः = ल् + आकृतिः = लाकृतिः
(4) वृद्धि सन्धि (वृद्धिरेचि)-
यदि अ अथवा आ के बाद ए ऐ ओ, औ, आवे तो दोनों के स्थान पर क्रमशः ऐ, औ वृद्धि होती है,
जैसे
अ + ए = ऐ
आ + ए = ऐ
आ + ए = ऐ
अ + ऐ =ऐ
आ+ ओ = औ
आ+ ओ = औ
अ+ ओ= औ
आ+ ऐ= ऐ
आ+ ऐ= ऐ
अ+ औ= औ
आ+ औ= औ
नियम यदि अ अथवा आ के बाद ए अथवा ऐ आवे तो दोनों के स्थान पर 'ऐ' वृद्धि हो जाती है
जैसे
कृष्ण + एकत्वम् = कृष्णैकत्वम् (अ + ए =ऐ)
जन
+ एकता = जनैकता (अ + ए =ऐ)
एक
+ एकः = एकेकः (अ + ए =ऐ)
अत्र
+ एकमत्यम् = अत्रैकमत्यम् (अ + ए =ऐ)
राज
+ एषः = राजैषः (अ + ए =ऐ)
बाला
+ एषा = बालैषा (अ + ए =ऐ)
तथा
+ एव = तथैव (अ + ए =ऐ)
गंगा
+ एषा = गंगैषा (आ + ए = ऐ)
सदा
+ एव = सदैव (आ + ए =ऐ)
मत + ऐक्यम् = मतैक्यम् (अ + ऐ = ऐ)
सदा + ऐक्यम् = सदैक्यम् (आ + ऐ = ऐ)
देव
+ ऐश्वर्यम् = देवैश्वर्यम् (अ + ऐ = ऐ)
दीर्घ + ऐकारः = दीधैंकारः (अ + ऐ = ऐ)
नृप
+ ऐश्वर्यम् = नृपैश्वर्यम् (अ + ऐ = ऐ)
महा
+ ऐश्वर्यम् = महैश्वर्यम् (आ + ऐ = ऐ)
नियम अ अथवा आ के बाद ओ या औ आवे तो दोनों के स्थान पर 'औ' वृद्धि हो जाती है।
जैसे
जल
+ ओघः = जलौघः (अ + ओ = औ)
गंगा
+ ओघः = गंगौघः(अ + ओ = औ)
महा
+ ओजसः = महौजसः (आ + ओ = औ)
बिम्ब
+ ओष्ठी = बिम्बौष्ठी (आ + ओ = औ)
वन + औषधिः = वनौषधिः (आ + औ = औ)
महा + औषधिः = महौषधिः (आ + औ = औ)
कृष्ण
+ औत्कण्ठ्यम् = कृष्णौत्कण्ठ्यम् (अ + औ = औ)
तव
+ औदार्यम् = तवौदार्यम (अ + औ = औ)
जन
+ औचित्यम् = जनौचित्यम् (अ + औ = औ)
महा
+ औषधिः = महौषधिः (अ + औ = औ)
राम + औत्सुक्यम् रामौदासीन्यम् (अ + औ = औ)
मम
+ औदासीन्यम्= ममौदासीन्यम् (अ + औ = औ)
नियम यदि अ अथवा आ का मेल ऋ से हो जावे तो अ आ + ऋ = आर् आदेश होता है।
जैसे
सुख + ऋतः = सुखार्तः (अ + ऋ = आर्)
पिपासा + ऋतः= पिपासार्तः (आ + ऋ = आर)
दीन + ऋतः = दीनार्तः (अ + ऋ = आर)
प्र
+ ऋच्छति = प्रार्च्छति (अ + ऋ = आर)
दश
+ ऋणः = दशार्णः (अ + ऋ = आर)
कम्बल + ऋणम् = कम्बलार्णम् (अ + ऋ = आर)
सुख + ऋतः = सुखार्त: (अ + ऋ = आर)
वसन + ऋणम् = वसनार्णम् (अ + ऋ = आर)
(5) अयादि सन्धि (एचोऽयवायातः) -
नियम यदि ए, ऐ, औ के बाद कोई भी स्वर आये तो उसके स्थान पर क्रमशः अय्, आय, अव्, आव् हो जाता है।
जैसे
चे + अनम् = चयनम्
ने + अनम् = नयनम्
गै + अकः = गायकः
नै + अकः = नायकः
पो + इत्रः = पवित्रः
पो + अनः = पवनः
पौ + अकः = पावकः
भौ + अकः = भावकः
हरे + अ = हरये
शे + अनम् = शयनम्
शै + अकः = शायकः
मै + इकः = मायिकः
नौ + इकः = नाविकः
भो + अनम् = भवनम्
पो + अनम् = पवनम्
(6)पूर्वरूपसन्धि –‘एङ पदान्तादात'
सूत्र द्वारा पद के अन्त में एङ और
उसके बाद अ आए तो पूर्व तथा पर वर्ण के स्थान पर पूर्वरूप एकादेश होता है। अन्त में एकार तथा ओकार अति पर (ए + अ या ओ + अ की अवस्था में ) पूर्व तथा स्थान पर एकादेश
होने पर अकार के लिए अवग्रह (ऽ) चिह्न का प्रयोग करते हैं।
उदाहरण
अन्ते
+ अपि = अन्तेऽपि (ए+अ = ए)
ते
+ अत्र = तेऽत्र (ए+अ = ए)
हरे + अव = हरेऽव (ए+अ = ए)
मे + अन्तिके = मेऽन्तिके (ए+अ = ए)
दीर्घे
+ अहनि = दीर्धेऽहनि (ए+अ = ए)
विष्णो
+ अत्र = विष्णोऽत्र (ओ+अ = ओ)
सो
+ अवदत् = सोऽवदत् (ओ+अ = ओ)
रामो
+ अहसत् = रामोऽहसत् (ओ+अ = ओ)
को
+ अपि = कोऽपि (ओ+अ = ओ)
(7) पररूपसन्धि
नियम 'एङि पररूपम्' सूत्र द्वारा यदि अकारान्त उपसर्ग के बाद एङ (ए, ओ) स्वर जिसके
प्रारम्भ में हो ऐसी धातु आए तो पूर्व-पर के स्थान पर पररूप एकादेश अर्थात् क्रमशः
ए और औ हो जाता है।
उदाहरण
प्र
+ एजते = प्रेजते (अ + ए =ए)
उप
+ ओषति = उपोषति (अ + ओ = ओ)
नियम 'शकन्ध्वादिषु पररूपं वाच्यम्' इस वार्तिक से शकन्धु-आदि शब्दों में टिभाग का
पररूपरकादेश होता है।
उदाहरण
शक
+ अन्धुः = शकन्धुः
मनस्
+ ईषा
= मनीषा
कर्क + अन्धुः
= कर्कन्धुः।
कुल + अटा = कुलटा।
पतत् + अञ्जलिः = पत् + अत् + अञ्जलिः = पतञ्जलिः
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