Lokokti : लोकोक्तियाँ इन हिंदी और उनके अर्थ _ proverbs in Hindi

Lokokti (proverbs) लोकोक्तियाँ किसे कहते हैं?

किसी विशेष स्थान पर प्रसिद्ध हो जाने वाले कथन को लोकोक्ति कहते हैं। लोकोक्ति शब्द लोक उक्ति के योग से बना है लोकोक्तियों का निर्माण किसी घटना विशेष का विशेष योगदान होता है

Lokokti (proverbs) लोकोक्तियाँ   lokokti in hindi  [HINDI GRAMMAR]

यहां पर महत्वपूर्ण लोकोक्ति उनके अर्थ दिऐ गये है



  1. जिसके हाथ डोई, उसका सब कोई-धनी व्यक्ति से सब मित्र होते हैं
  2. जिसे पिया माने, वही सुहागन : अधिकारी का कृपा-पात्र ही भाग्यशाली माना जाता है।
  3. जैसी तेरी कामरी वैसे मेरे गीत : जैसा दोगे वैसा लोगे।
  4. जैसी बहे बयार पीठ तब वैसी दीजै : समयानुसार कार्य करना।
  5. जैसे मियाँ काठ का वैसे सन की दाढ़ी : सही सामंजस्य।
  6. जो गुड़ खाये सो कान छिदाये : लाभ पानेवाले को कष्ट सहना ही पड़ता है।
  7. जो ताको काँटा बुबै ताहि बोय तू फूल : अपना बुरा करने वालों के साथ  भी भलाई का व्यवहार करो
  8. ज्यादा जोगी मठ उजाड़ : बहुत नेतृत्व से काम बिगड़ जाता है।
  9. ज्यों नकटे को आरसी होत दिखायी क्रोध : दोषी को अपनादोष बताये जाने पर क्रोध होता है।
  10. ज्यों-ज्यों भीगे कामरी त्यों-त्यों भारी होय : समय के बीतने के साथ ज़िम्मेदारियाँ बढ़ती जाती हैं।
  11. झटपट की घानी आधा तेल आधा पानी : जल्दबाजी का काम खराब ही  होता है।
  12. झूठ कहे सो लड्डू खाय साँच कहे सो मारा जाय : आजकल झूठे का बोल बाला है।
  13. टके का सौदा नौ टका विदाई : साधारण वस्तु हेतु खर्च अधिक
  14. टके की हॉडी गई पर कुत्ते की जात पहचान ली। : थोड़ा नुकसान उठाकर धोखेबाज  को पहचानना।
  15. टेढ़ी उँगली किये बिना घी नहीं निकलता : सीधेपन से काम नहीं चलता
  16. ठठेरे ठठेरे बदलौअल : धूर्त का धूर्त से चाल चलना।
  17. ठण्डा करके खाओ : धैर्य से काम करना सीखो।
  18. डूबते को तिनके का सहारा : संकट में थोड़ी सहायता भी लाभप्रद/पर्याप्त होती है।
  19. ढाक के तीन पात : सदा एक सी स्थिति बने रहना
  20. ढोल में पोल : बड़े-बड़े भी अन्धेर करते हैं।
  21. तन पर नहीं लत्ता पान खाये अलबत्ता : अभावग्रस्त होने पर भी ठाठ से रहना/झूठा दिखावा करना।
  22. ताँत बजी और राग बुझी : बोलने से ही योग्यता प्रकट होती है
  23. तिरिया तेल हमीर-हठ चढ़े न दूजी बार : प्रतिज्ञा पूरी करना दृढ़प्रतिज्ञ अपनी बात से नहीं हटते।
  24. तीन कनौजिये तेरह चूल्हे : व्यर्थ की नुक्ता-धीनी करना। ढोंग करना।
  25. तीन बुलाए तेरह आये : अनिमन्त्रित व्यक्ति का आना।
  26. तीन में न तेरह में, मृदंग बजावे डेरे में : निर्द्वन्द्व व्यक्ति सुखी रहता है।
  27. तीन लोक से मथुरा न्यारी : सबसे अलग विचार बनाये रखना
  28. तीर नहीं तो तुक्का ही सही : पूरा नहीं तो जो कुछ मिल जाये उसी में संतोष करना।
  29. तू डाल-डाल में पात-पात : चालाक से चालाकी से पेश आना एक से बढ़कर एक चालाक होना
  30. तेते पाय पसारिये जेती लाम्बी सौर : हैसियतानुसार खर्च करना/अपने  सामर्थ्य के अनुसार ही कार्य करना
  31. तेल देखो तेल की धार देखो : नया अनुभव करना धैर्य के साथ सोच समझ कर कार्य करो परिणाम की प्रतीक्षा करो।
  32. तेली का तेल जले मशालची का दिल :  खर्च कोई करे बुरा किसी और  को ही लगे।
  33. थोथा चना बाजे घना : गुणहीन व्यक्ति अधिक डींगें मारता है/आडम्बर करता है।
  34. दबी बिल्ली चूहों से कान कटावे : दोषी होने पर बलवान निर्बल से डरता है।
  35. दमड़ी की हाँडी भी ठोक बजाकर लेते हैं। : छोटी चीज को भी देखभाल  कर लेते हैं।
  36. दान की बछिया के दाँत नहीं गिने जाते  : मुफ्त की वस्तु के गुण नहीं  देखे जाते।
  37. दाल भात में मूसल चंद : किसी के कार्य में व्यर्थ में दखल देना।
  38. दिल्ली दूर है-सफलता प्राप्त में विलम्ब है।
  39. दीवार के भी कान होते हैं : गुप्त परामर्श एकान्त में भी करते समय सतर्क रहना चाहिए।
  40. दुनिया का मुँह किसने रोका है? : लोगों को निन्दा करने से कोई नहीं रोक सकता।
  41. दुविधा में दोऊ गये, माया मिली न सम : संशय की स्थिति में कुछ भी प्राप्त न होना।
  42. दुविधा में दोनों गये माया मिली न राम   : संदेह की स्थिति में कुछ भी हाथ  नहीं लगना।
  43. दूध का जला छाछ (मदा) फूंक-फूंक कर पीता है : एक बार की हानि भविष्य के लिए सचेत कर देती है।
  44. दूध का जला छाछ को फूंक फूंक कर पीता है  : एक बार घोखा खाया व्यक्ति दुबारा सावधानी बरतता है।
  45. दूध का दूध पानी का पानी : सही सही न्याय करना।
  46. दूर के डोल सुहाने लगते हैं  : दूरवर्ती वस्तुएँ अच्छी मालूम होती हैं दूर से ही वस्तु का अच्छा लगना पास आने पर वास्तविकता का पता लगना
  47. देसी कुतिया बिलायती बोली अपनी सभ्यता : संस्कृति छोडकर दूसरे की नक़ल करना।
  48. दैव दैव आलसी पुकारा :   आलसी व्यक्ति भाग्यवादी होता है
  49. धोबी का कुत्ता घर का न घाट का  :  किधर का भी न रहना न  इधर का न उधर का
  50. न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी : ऐसी अनहोनी शर्त रखना जो  पूरी न हो सके/बहाने बनाना।
  51. न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरीः झगड़े को जड़ से ही नष्ट करना
  52. न सायन सूखा न भादों हरा : सदैव एक सी तग हालत रहना
  53. नंगा क्या नहायेगा, क्या निचोड़ेगा? : निर्धन से आर्थिक मदद की आशा नहीं करनी चाहिए ।
  54. नकटा बूचा सबसे ऊँचा- निर्लज्ज सबसे बड़ा है।
  55. नक्कार खाने में तूती की  आवाज : अराजकता में सुनवाई न होना बड़ों के समक्ष छोटों की कोई पूछ नहीं।
  56. नटनी जब बाँस पर चढ़ी तब घूंघट  है ? : जब बेशर्मा अपना ही ली तब लज्जा क्या ?
  57. नया मुल्ला अल्ला ही-अल्ला पुकारता है : नया पद पाकर
  58. नाई की बारात में जने-जने ठाकुर : जहाँ सभी नेता हों; जहाँ एक मालिक न हो, सभी अपनी-अपनी चलायें।
  59. नाई-नाई! बाल कितने? जजमान। : आगे आयेंगे तुरन्त आगे आनेवाली बात के प्रति व्यग्रता दिखाना।
  60. नाक कटी पर घी तो चाटा : निर्लज्ज होकर कुछ पाना।
  61. नाथ न जाने आँगन टेढ़ा : अपना दोष दूसरों पर मढ़ना/ अपनी अयोग्यता को छिपाने हेतु दूसरों में दोष दूंडना। raj
  62. नाम बड़े और दर्शन खोटे :  बड़ों में बड़प्पन न होना गुण कम किन्तु प्रशंसा अधिक।
  63. निर्बल के बलराम : असहाय व्यक्ति सहज ईश्वर ही होता है।
  64. नीम हकीम ख़तरे जान - अल्पज्ञ से सदा ख़तरे की सम्भावना बनी रहती है।
  65. नीम हकीम खतरे जान्, नीम मुल्ला खतरे ईमान  : अधकचरे ज्ञान वाला अनुभवहीन व्यक्ति अधिक हानिकारक होता है।
  66. नेकी और पूछ-पूछ  : भलाई करने में भला पूछना क्या?
  67. नेकी और पूछ-पूछ-पूछकर :  उपकार करने की क्या आवश्यकता?
  68. नेकी कर दरिया में डाल  : नेकी करके भूल जाना चाहिए ; फल की आशा नहीं करना चाहिए।
  69. नौ दिन चले अढ़ाई कोस : अत्यन्त सुस्ती से कार्य करना।
  70. नौ दिन चले अढ़ाई कोस : बहुत धीमी गति से कार्य का होना
  71. नौ नगद, न तरह ज्वार : भविष्य की बड़ी आशा से तत्काल का थोड़ा लाम अच्छा/व्यापार में उधार की अपेक्षा नगद को महत्व देना।
  72. नौ नगद, न तेरह उधार : नक़द का बेचना, उधार के बेचने से अच्छा है।
  73. नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली  : आजीवन पाप करके अन्त में धर्मात्मा बनने का ढोंग करना।
  74. नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली : बहुत पाप करके पश्चाताप  करने का ढोंग करना।
  75. पढ़े तो हैं पर गुने नहीं :  पढ़ लिखकर भी अनुभवहीन रहना।
  76. पढ़े पर गुने नहीं : अनुभवहीन होना।
  77. पढ़े फारसी बेचे तेल, यह देखो कुदरत का खेल : गुण होते हुए भी दुर्भाग्य से योग्यता के हिसाब से छोटा काम मिलना।
  78. पढ़े फारसी बेचे तेल. देखो यह विधना का खेल : शिक्षित होते हुए भी दुर्भाग्य से  निम्न कार्य करना।
  79. पत्थर को जोंक नहीं लगती; पत्थर मोम नहीं होता : निर्दय व्यक्ति में दया नहीं होती।
  80. पराधीन सपनेहु सुख नाही : परतत्र व्यक्ति कभी सुखी नहीं होता।
  81. पराया घर, थूकने का भी डर : दूसरे के यहाँ संकोच रहता है।
  82. पाँचों उंगलियाँ बराबर नहीं होती : सभी समान नहीं हो सकते।
  83. पानी मथने से घी नहीं निकलता : व्यर्थ के विवाद से कोई लाभ नहीं है।
  84. पानी में रहकर मगर से बैर : शक्तिशाली आश्रयदाता से वैर करना।
  85. पावभर चून पुल पर रसोई : सीमित साधन होने पर भी अधिक लोगों को निमन्त्रित कर देना।
  86. प्यादे से फरजी भयो टेढ़ो टेढो जाय  : छोटा आदमी बड़े पद पर पहुंचकर  इतराकर चलता है।
  87. प्रभुता पाय काहि मद नाही : अधिकार प्राप्ति पर किसे गर्व नहीं होता।
  88. फटा मन और फटा दूध फिर नहीं मिलता। : एक बार मतभेद होने पर पुनः  मेल नहीं हो सकता।
  89. फलूदा खाते, दाँत टूटे तो टूटे : स्वाद के लिए घाटा भी मंजूर।
  90. बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद : मूर्ख को गुण की परख न होना। अज्ञानी किसी के  महत्व को ऑक नहीं सकता।
  91. बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी : जब संकट आना ही है तो उससे  कब तक बचा जा सकता है।
  92. बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी? : किसी दिन विपत्ति अवश्य आयेगी।
  93. बद अच्छा, बदनाम बुरा : कलंकित होना बुरा होने से भी बुरा है।
  94. बद अच्छा, बदनाम बुरा -झूठी अपकीर्त्ति बुरी होती है।
  95. बन्दर क्या जाने भदरक का स्वाद?: मूर्ख गुणों का महत्त्व नहीं समझता
  96. बाँबी में हाथ तू डाल, मैं मन्त्र पढूं : ख़तरा कोई उठाये, यश कोई ले।
  97. बाँह गहे की लाज : शरणागत की रक्षा करना मनुष्य का धर्म है।
  98. बाप न मारी मेंढकी बेटा तीरंदाजः बहुत अधिक बातूनी या
  99. बापू ला न भैया, सबसे बड़ा रुपया : आजकल पैसा ही सब कुछ है।
  100. बारह बरस में घूरे के दिन भी फिरते हैं : कभी न कभी सबका भाग्योदय  होता है।
  101. बा तोले पाय रत्ती : बिल्कुल ठीक या सही सही होना
  102. बासी बचे न कुत्ते खाय ; उचित उपयोग; अपव्यय का न होना।
  103. बिच्छू का मंत्र न जाने सांप के बिल में हाथ डाले। : योग्यता के अभाव में उलझनदार  काम करने का बीड़ा उठा लेना।
  104. बिन माँगे मोती मिले माँगे मिले न भीख :  भाग्य से स्वतः मिलता है इच्छा   से नहीं।
  105. बिना रोए माँ भी दूध नहीं पिलाती : प्रयत्न के बिना कोई कार्य नहीं होता।
  106. बिल्ली के भाग छींका टूटना : संयोग से किसी कार्य का अच्छा होना/अनायास आप्रत्याशित वस्तु की प्राप्ति होना।
  107. बिल्ली के भाग से छीका टूटा (फूटा) : संयोगवश काम का सहज में ही हो जाना।
  108. बैठे से बेगार भली : खाली बैठे रहने से तो किसी का कुछ काम करना अच्छा।
  109. बॉबी में हाथ तू डाल मंत्र में पढूं : खतरे का कार्य दूसरों को सौंपकर स्वयं अलग रहना।
  110. बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से खाए : बुरे कर्म कर अच्छे फल की  इच्छा करना व्यर्थ है।
  111. भई गति साँप छछूदर कर : कश्मकश में पड़ना; द्विविधा में पड़ना; बहुत विषम स्थिति में होना।
  112. भई गति साँप छडूंदर जैसी : दुविधा में पड़ना।
  113. भरी थाली में लात मारना : अभिमान से तिरस्कार करना; परिपूर्ण चीज़ की रक्षा करना।
  114. भागते भूत की लंगोट भली : हाथ पड़े सोई लेना जो बच  जाए उसी से संतुष्टि/कुछ नहीं से जो कुछ भी मिल जाए यह अच्छा।
  115. भुस में आग लगी जमालो  दूर खड़ी : बँटवारे अथवा कलह का बीजारोपण कर तरस्थ की भूमिका अदा करना।
  116. भूखे भजन न होय गोपाला : भूख लगने पर कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
  117. भूल गये राग रंग भूल गये छकड़ी तीन चीज याद रही नोन, तेल, लकड़ी : गृहस्थी के जंजाल में फंसना
  118. भेड़ पर ऊन किसने छोड़ी? : अच्छी चीज़ को सब लेना चाहते हैं।
  119. भैंस के आगे बीन बजाये भैंस खड़ी पगुराय :  मूर्ख को उपदेश देना व्यर्थ है।
  120. भौर न छाडे केतकी तीखे कण्टक जान : सच्चे प्रेमी विघ्न बाधाओं की परवाह न करते हुए, अपनी प्रेमिका को नहीं छोड़ते।
  121. मछली के बच्चे को तैरना कौन सिखाता है ? : कुछ गुण जन्मजात होते हैं।
  122. मन के हारे हार है मन के जीते जीत : साहस बनाये रखना आवश्यक है।  हतोत्साहित होने पर असफलता
  123. मन चंगा को कठौती में गंगा : मन की शान्ति ही सुख की जननी है।
  124. मन चंगा तो कटौती में गंगा : मन पवित्र तो घर में तीर्थ है।
  125. मन-मन भावे मुड़ी हिलावे : इच्छा रहने पर भी मना करना।
  126. मरता क्या न करता : मज़बूरी में इनसान सब कुछ करता है।
  127. मरता क्या न करता : मुसीबत में गलत कार्य करने को भी तैयार होना पड़ता है।
  128. मरी बछिया बामन के सिर : व्यर्थ का दान।
  129. मान न मान मैं तैरा मेहमान : जबरदस्ती गले पड़ना।
  130. मानो तो देव नहीं तो पत्थर : विश्वास फलदायक होता है।
  131. मार के आगे भूत भागता है : दण्ड से सभी भयभीत होते हैं।
  132. मियाँ बीबी राजी तो क्या करेगा काजी? : यदि आपस में प्रेम है तो तीसरा  क्या कर सकता है?
  133. मुँह चिकना, पेट ख़ाली : केवल ऊपरी दिखावा करना।
  134. मुँह में राम बगल में छुरी : दिखावटी सज्जनता; कपटपूर्ण आचरण।
  135. मुख में राम बगल में छुरी : ऊपर से मित्रता अन्दर शत्रुता धोखेबाजी करना।
  136. मुद्दई सुस्त : गवाह चुस्त : मुखिया की अपेक्षा सहायकों का बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना।
  137. मुफ्त का चंदन, घिस मेरे नंदन :  मुफ्त में मिली वस्तु का दुरुपयोग करना।
  138. मेंढ़की को जुकाम होना : नीच आदमियों द्वारा नखरे करना।
  139. मेंढकी को भी जुकाम हुआ है ; अपनी शक्ति से बढ़कर बात करना।
  140. मेरी बिल्ली मुझ से ही न्याऊँ : आश्रयदाता का ही विरोध करना
  141. मेरी बिल्ली मुझी से म्याऊँ  : नौकर को मालिक के सामने अकडना नहीं चाहिए।
  142. यथा नाम तथा गुण : नाम के अनुसार गुण का होना।
  143. यथा राजा तथा प्रजा : जैसा स्वामी वैसा सेवक
  144. यह मुँह और मसूर की दाल : अपनी सामर्थ्य से बढ़कर बात करना।
  145. यह मुँह और मसूर की दाल : योग्यता से अधिक पाने की इच्छा करना
  146. रंग में भंग पड़ना :  आनन्द में बाधा उत्पन्न होना।
  147. रस्सी जल गई पर ऐंठ न गई : सर्वनाश होने पर भी घमण्ड बने रहना/टेक न छोड़ना।
  148. राम नाम जपना, पराया माल अपना : ऊपर से भक्त, भीतर से ठग होना।
  149. राम नाम जपना, पराया माल अपना : मक्कारी करना।
  150. रोग का घर खाँसी और लड़ाई का घर हाँसी : हँसी-मज़ाक कभी-कभी लड़ाई का कारण बन जाता है।
  151. रोग का घर खाँसी, झगड़े  का घर हॉसी : हंसी मजाक झगड़े का कारण  बन जाती है।
  152. रोज कुआ खोदना रोज पानी पीना : प्रतिदिन कमाकर खाना रोज  कमाना रोज खा जाना।
  153. लकड़ी के बल बन्दरी नाचे : भयवश ही कार्य संभव है।
  154. लम्बा टीका मधुरी बानी दगेबाजी की यही निशानी : पाखण्डी हमेशा दगाबाज होते हैं।
  155. लातन के देव बातन से नहीं मानते; लातों के भूत बातों से नहीं मानते - बिना दण्डित किये हुए दुष्टों में सुधार नहीं होता।
  156. लातों के भूत बातों से नहीं मानते : नीच व्यक्ति दण्ड से/भय से कार्य करते हैं कहने से नहीं।
  157. लाल गूदड़ी में नहीं छुपते : श्रेष्ठ व्यक्ति सोचनीय स्थिति अथवा  अभावपूर्ण स्थिति में छुपाये नहीं छुपते।
  158. लोहे को लोहा ही काटता है : बुराई को बुराई से ही जीता जाता है।
  159. वक्त पड़े जब जानिये को बैरी को मीत :  विपत्ति/अवसर पर ही शत्रु व  मित्र की पहचान होती है।
  160. वही मियाँ दरबार में, वही चूल्हे के पास : एक व्यक्ति को कई काम करने पड़ते हैं।
  161. विधिकर लिखा को मेटनहारा : भाग्य को कोई बदल नहीं सकता।
  162. विनाश काले विपरीत बुद्धि : विपत्ति आने पर बुद्धि भी नष्ट हो जाती है।
  163. शक्कर खोर को शक्कर मिल ही जाती है। : जरूरतमंद को उसकी वस्तु सुलभ हो ही जाती है
  164. शक्ल चुडैल की, मिज़ाज परियों का : बेकार का नखरा
  165. शठे शाठ्यं समाचरेत : दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना चाहिये।
  166. शबरी के बेर : प्रेममय तुच्छ भेंट
  167. शुभस्य शीघ्रम : शुभ कार्य में शीघ्रता करनी चाहिए।
  168. शेरों का मुँह किसने धोया? : सामर्थ्यका के लिए कोई उपाय नहीं।
  169. सब दिन होत न एक समान : जीवन में सुख-दुःख आते रहते हैं. क्योंकि समय परिवर्तनशील होता है।
  170. सब धान बाईस पंसेरी  :  अविवेकी लोगों की दृष्टि में गुणी और मूर्ख सभी व्यक्ति बराबर होते हैं।
  171. समरथ को नहीं दोष गुसाई : गलती होने पर भी सामर्थ्यवान को कोई कुछ नहीं कहता।
  172. साँच को आँच क्या?; साँच को आंच महीं : सच्चे व्यक्ति को डर किस बात का?
  173. साँच को आँच नहीं : सच्चा व्यक्ति कभी डरता नहीं।
  174. साँप का काटा पानी नहीं मांगता : कुटिल व्यक्ति की चाल में फँसा मनुष्य बच नहीं पाता।
  175. साँप मर जाये और लाठी न टूटे : सुविधापूर्वक कार्य होना/बिना  हानि के कार्य का बन जाना।
  176. सारी रात मिमियानी औसएक ही बच्चा बियानी : प्यास बहुत अधिक और लाभ कम
  177. सावन के अंधे को हरा ही हरा सूझता है। : अपने समान सभी s
  178. सावन सूखा न भादों हरा:  सदैव एक सी स्थिति बने रहना।
  179. सिंह के बंस में उपजा सियार : बहादुरों की कायर संतान उत्पन्न  होना।
  180. सिर मुंडाते ही ओले पड़ना : कार्य प्रारम्भ करते ही बाधा उत्पन्न होना।
  181. सिर मुड़ाते ही ओले पड़े :  कार्य में विघ्न का उपस्थित होना।
  182. सीधी अँगुली घी नहीं निकलताः सीधेपन से कोई कार्य नहीं होता
  183. सीधे का मुंह कुत्ता चाटे : सीधेपन का लोग अनुचित लाभ उठाते हैं।
  184. सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठप लट्ठा - बे-बात की लड़ाई
  185. सूप बोले तो बोले छलनी भी : दोषी का बोलना ठीक नहीं।
  186. सैइयाँ भये कोतवाल अब काहे का डर: अपनों के उच्चपद पर होने से बुरे कार्य बे हिचक करना।
  187. सोने में सुगन्ध : अच्छे में और अच्छा।
  188. सौ सुनार की एक लुहार की : सैंकड़ों छोटे उपायों से एक बड़ा उपाय अच्छा।
  189. हथेली पर दही नहीं जमता : हर कार्य के होने में समय लगता है
  190. हथेली पर सरसों नहीं उगती  : कार्य के अनुसार समय भी लगता  है
  191. हम साँप नहीं, जो हवा पीकर जियें : भरपेट खाना चाहिए।
  192. हल्दी लगे न फिटकरी रंग चोखा आ जाय : आसानी से काम बन जाना  कम खर्च में अच्छा कार्य।
  193. हाँडी का एक ही चावल देखा जाता है : किसी परिवार जाति या देश के एक ही मनुष्य को देखने से ज्ञात हो जाता है कि शेषकैसे होंगे।
  194. हाथ कंगन को आरसी क्या  : प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता क्या ?
  195. हाथ कंगन को आरसी क्या? ; प्रत्यक्ष वस्तु के लिए प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती।
  196. हाथ सुमरनी बगल कतरनी : मन में कुछ और प्रत्यक्ष में कुछ  और ; ऊपर से निर्मल, भीतर से कलुषित।
  197. हाथ सुमरिनी बगल कतरनी : कपटपूर्ण व्यवहार करना।
  198. हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और :  करना कुछ, कहना कुछ ; द्विरंगी चाल।
  199. हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और : कपटपूर्ण व्यवहार/कहे कुछ करे  कुछ/कथनी व करनी में अन्तर।  raj
  200. हाथी के पाँव में सबके पाँव : बड़ों के पीछे छोटों का निर्वाह; . कोई ऐसा कार्य, जिसे अवसर के अनुकूल समझकर उसमें सभी लोग हिस्सा लेना चाहे।
  201. होनहार बिरवान के होत चीकने पात : बचपन से ही लक्षणों का दिखाई देना; महत्ता के लक्षण बचपन से ही प्रकट होने लगते हैं।
  202. होनहार बिरवान के होत चीकने पात : महान व्यक्तियों के लक्षण

Post a Comment

0 Comments