Lokokti (proverbs) लोकोक्तियाँ किसे कहते हैं?
किसी विशेष स्थान पर प्रसिद्ध हो जाने वाले कथन को लोकोक्ति कहते हैं। लोकोक्ति शब्द लोक + उक्ति के योग से बना है लोकोक्तियों का निर्माण किसी घटना विशेष का विशेष योगदान होता है
यहां पर महत्वपूर्ण लोकोक्ति उनके अर्थ दिऐ गये है
- जिसके हाथ डोई, उसका सब कोई-धनी व्यक्ति से सब मित्र होते हैं
- जिसे पिया माने, वही सुहागन : अधिकारी का कृपा-पात्र ही भाग्यशाली माना जाता है।
- जैसी तेरी कामरी वैसे मेरे गीत : जैसा दोगे वैसा लोगे।
- जैसी बहे बयार पीठ तब वैसी दीजै : समयानुसार कार्य करना।
- जैसे मियाँ काठ का वैसे सन की दाढ़ी : सही सामंजस्य।
- जो गुड़ खाये सो कान छिदाये : लाभ पानेवाले को कष्ट सहना ही पड़ता है।
- जो ताको काँटा बुबै ताहि बोय तू फूल : अपना बुरा करने वालों के साथ भी भलाई का व्यवहार करो
- ज्यादा जोगी मठ उजाड़ : बहुत नेतृत्व से काम बिगड़ जाता है।
- ज्यों नकटे को आरसी होत दिखायी क्रोध : दोषी को अपनादोष बताये जाने पर क्रोध होता है।
- ज्यों-ज्यों भीगे कामरी त्यों-त्यों भारी होय : समय के बीतने के साथ ज़िम्मेदारियाँ बढ़ती जाती हैं।
- झटपट की घानी आधा तेल आधा पानी : जल्दबाजी का काम खराब ही होता है।
- झूठ कहे सो लड्डू खाय साँच कहे सो मारा जाय : आजकल झूठे का बोल बाला है।
- टके का सौदा नौ टका विदाई : साधारण वस्तु हेतु खर्च अधिक
- टके की हॉडी गई पर कुत्ते की जात पहचान ली। : थोड़ा नुकसान उठाकर धोखेबाज को पहचानना।
- टेढ़ी उँगली किये बिना घी नहीं निकलता : सीधेपन से काम नहीं चलता
- ठठेरे ठठेरे बदलौअल : धूर्त का धूर्त से चाल चलना।
- ठण्डा करके खाओ : धैर्य से काम करना सीखो।
- डूबते को तिनके का सहारा : संकट
में थोड़ी सहायता भी लाभप्रद/पर्याप्त होती है।
- ढाक के तीन पात : सदा एक सी स्थिति बने रहना
- ढोल में पोल : बड़े-बड़े भी अन्धेर करते हैं।
- तन पर नहीं लत्ता पान खाये अलबत्ता
: अभावग्रस्त होने पर भी ठाठ से रहना/झूठा दिखावा करना।
- ताँत बजी और राग बुझी : बोलने से ही योग्यता प्रकट होती है।
- तिरिया तेल हमीर-हठ चढ़े न
दूजी बार : प्रतिज्ञा पूरी करना दृढ़प्रतिज्ञ अपनी बात से नहीं हटते।
- तीन कनौजिये तेरह चूल्हे : व्यर्थ की
नुक्ता-धीनी करना। ढोंग करना।
- तीन बुलाए तेरह आये : अनिमन्त्रित व्यक्ति का आना।
- तीन में न तेरह में, मृदंग
बजावे डेरे में : निर्द्वन्द्व व्यक्ति सुखी रहता है।
- तीन लोक से मथुरा न्यारी : सबसे अलग विचार बनाये रखना
- तीर नहीं तो तुक्का ही सही : पूरा नहीं तो जो कुछ मिल जाये उसी में संतोष करना।
- तू डाल-डाल में पात-पात : चालाक से चालाकी से पेश आना एक से बढ़कर एक चालाक होना
- तेते पाय पसारिये जेती लाम्बी सौर : हैसियतानुसार खर्च करना/अपने सामर्थ्य के अनुसार ही कार्य करना
- तेल देखो तेल की धार देखो : नया अनुभव करना धैर्य के साथ सोच समझ कर कार्य करो परिणाम की प्रतीक्षा करो।
- तेली का तेल जले मशालची का दिल : खर्च कोई करे बुरा किसी और को ही लगे।
- थोथा चना बाजे घना : गुणहीन व्यक्ति अधिक डींगें मारता है/आडम्बर करता है।
- दबी बिल्ली चूहों से कान कटावे : दोषी होने पर बलवान निर्बल से डरता है।
- दमड़ी की हाँडी भी ठोक बजाकर लेते हैं। : छोटी चीज को भी देखभाल कर लेते हैं।
- दान की बछिया के दाँत नहीं गिने जाते : मुफ्त की वस्तु के गुण नहीं देखे जाते।
- दाल भात में मूसल चंद : किसी के कार्य में व्यर्थ में दखल देना।
- दिल्ली दूर है-सफलता प्राप्त में विलम्ब है।
- दीवार के भी कान होते हैं :
गुप्त परामर्श एकान्त में भी करते समय सतर्क रहना चाहिए।
- दुनिया का मुँह किसने रोका है? : लोगों को निन्दा करने से कोई नहीं रोक सकता।
- दुविधा में दोऊ गये, माया मिली न सम : संशय की स्थिति में कुछ भी प्राप्त न होना।
- दुविधा में दोनों गये माया मिली न राम : संदेह की स्थिति में कुछ भी हाथ नहीं लगना।
- दूध का जला छाछ (मदा) फूंक-फूंक कर पीता है : एक बार की हानि भविष्य के लिए सचेत कर देती है।
- दूध का जला छाछ को फूंक फूंक कर पीता है : एक बार घोखा खाया व्यक्ति दुबारा सावधानी बरतता है।
- दूध का दूध पानी का पानी : सही सही न्याय करना।
- दूर के डोल सुहाने लगते हैं : दूरवर्ती वस्तुएँ अच्छी मालूम होती हैं दूर से ही वस्तु का अच्छा लगना पास आने पर वास्तविकता का पता लगना
- देसी कुतिया बिलायती बोली अपनी सभ्यता : संस्कृति छोडकर दूसरे की नक़ल करना।
- दैव दैव आलसी पुकारा : आलसी व्यक्ति भाग्यवादी होता है
- धोबी का कुत्ता घर का न घाट का : किधर का भी न रहना न इधर का न उधर का
- न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी : ऐसी अनहोनी शर्त रखना जो पूरी न हो सके/बहाने बनाना।
- न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरीः झगड़े को जड़ से ही नष्ट करना
- न सायन सूखा न भादों हरा : सदैव एक सी तग हालत रहना
- नंगा क्या नहायेगा, क्या निचोड़ेगा? : निर्धन से आर्थिक मदद की आशा नहीं करनी चाहिए ।
- नकटा बूचा सबसे ऊँचा- निर्लज्ज सबसे बड़ा है।
- नक्कार खाने में तूती की आवाज : अराजकता में सुनवाई न होना बड़ों के समक्ष छोटों की कोई पूछ नहीं।
- नटनी जब बाँस पर चढ़ी तब घूंघट है ? : जब बेशर्मा अपना ही ली तब लज्जा क्या ?
- नया मुल्ला अल्ला ही-अल्ला पुकारता है : नया पद पाकर
- नाई की बारात में जने-जने ठाकुर : जहाँ सभी नेता हों; जहाँ एक मालिक न हो, सभी अपनी-अपनी चलायें।
- नाई-नाई! बाल कितने?
जजमान। : आगे आयेंगे तुरन्त आगे
आनेवाली बात के प्रति व्यग्रता दिखाना।
- नाक कटी पर घी तो चाटा : निर्लज्ज होकर कुछ पाना।
- नाथ न जाने आँगन टेढ़ा : अपना दोष दूसरों पर मढ़ना/ अपनी अयोग्यता को छिपाने हेतु दूसरों में दोष दूंडना। raj
- नाम बड़े और दर्शन खोटे : बड़ों में बड़प्पन न होना गुण कम किन्तु प्रशंसा अधिक।
- निर्बल के बलराम : असहाय व्यक्ति सहज ईश्वर ही होता है।
- नीम हकीम ख़तरे जान - अल्पज्ञ से सदा ख़तरे की सम्भावना बनी रहती है।
- नीम हकीम खतरे जान्, नीम मुल्ला खतरे ईमान : अधकचरे ज्ञान वाला अनुभवहीन व्यक्ति अधिक हानिकारक होता है।
- नेकी और पूछ-पूछ : भलाई करने में भला पूछना क्या?
- नेकी और पूछ-पूछ-पूछकर : उपकार करने की क्या आवश्यकता?
- नेकी कर दरिया में डाल : नेकी करके भूल जाना चाहिए ; फल की आशा नहीं करना चाहिए।
- नौ दिन चले अढ़ाई कोस : अत्यन्त सुस्ती से कार्य करना।
- नौ दिन चले अढ़ाई कोस : बहुत धीमी गति से कार्य का होना
- नौ नगद, न तरह ज्वार :
भविष्य की बड़ी आशा से तत्काल का थोड़ा
लाम अच्छा/व्यापार में उधार की अपेक्षा नगद को महत्व देना।
- नौ नगद, न तेरह उधार : नक़द का बेचना, उधार के बेचने से अच्छा है।
- नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली : आजीवन पाप करके अन्त में धर्मात्मा बनने का ढोंग करना।
- नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली : बहुत पाप करके पश्चाताप करने का ढोंग करना।
- पढ़े तो हैं पर गुने नहीं : पढ़ लिखकर भी अनुभवहीन रहना।
- पढ़े पर गुने नहीं : अनुभवहीन होना।
- पढ़े फारसी बेचे तेल, यह देखो कुदरत का खेल : गुण होते हुए भी दुर्भाग्य से योग्यता के हिसाब से छोटा काम मिलना।
- पढ़े फारसी बेचे तेल.
देखो यह विधना का खेल : शिक्षित होते हुए भी दुर्भाग्य से निम्न कार्य करना।
- पत्थर को जोंक नहीं लगती; पत्थर मोम नहीं होता : निर्दय व्यक्ति में दया नहीं होती।
- पराधीन सपनेहु सुख नाही : परतत्र व्यक्ति कभी सुखी नहीं होता।
- पराया घर, थूकने का भी डर : दूसरे के यहाँ संकोच रहता है।
- पाँचों उंगलियाँ बराबर नहीं होती : सभी समान नहीं हो सकते।
- पानी मथने से घी नहीं निकलता : व्यर्थ के विवाद से कोई लाभ नहीं है।
- पानी में रहकर मगर से बैर : शक्तिशाली आश्रयदाता से वैर करना।
- पावभर चून पुल पर रसोई : सीमित साधन होने पर भी अधिक लोगों को निमन्त्रित कर देना।
- प्यादे से फरजी भयो टेढ़ो टेढो जाय : छोटा आदमी बड़े पद पर पहुंचकर इतराकर चलता है।
- प्रभुता पाय काहि मद नाही : अधिकार प्राप्ति पर किसे गर्व नहीं होता।
- फटा मन और फटा दूध फिर नहीं मिलता। : एक बार मतभेद होने पर पुनः मेल नहीं हो सकता।
- फलूदा खाते, दाँत टूटे तो टूटे : स्वाद के लिए घाटा भी मंजूर।
- बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद : मूर्ख को गुण की परख न होना। अज्ञानी किसी के महत्व को ऑक नहीं सकता।
- बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी : जब संकट आना ही है तो उससे कब तक बचा जा सकता है।
- बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी? : किसी दिन विपत्ति अवश्य आयेगी।
- बद अच्छा, बदनाम बुरा : कलंकित होना बुरा होने से भी बुरा है।
- बद अच्छा, बदनाम बुरा -झूठी
अपकीर्त्ति बुरी होती है।
- बन्दर क्या जाने भदरक का स्वाद?: मूर्ख गुणों का महत्त्व नहीं समझता
- बाँबी में हाथ तू डाल, मैं
मन्त्र पढूं : ख़तरा कोई उठाये, यश कोई
ले।
- बाँह गहे की लाज : शरणागत की रक्षा करना मनुष्य का धर्म है।
- बाप न मारी मेंढकी बेटा तीरंदाजः बहुत अधिक बातूनी या
- बापू भला न
भैया, सबसे बड़ा रुपया : आजकल पैसा ही सब कुछ
है।
- बारह बरस में घूरे के दिन भी फिरते हैं : कभी न कभी सबका भाग्योदय होता है।
- बावन तोले
पाय रत्ती : बिल्कुल ठीक या सही सही होना
- बासी बचे न कुत्ते खाय ; उचित उपयोग; अपव्यय का न होना।
- बिच्छू का मंत्र न जाने सांप के बिल में हाथ डाले। : योग्यता के अभाव
में उलझनदार काम करने का बीड़ा उठा लेना।
- बिन माँगे मोती मिले माँगे मिले न भीख : भाग्य से स्वतः मिलता है इच्छा से नहीं।
- बिना रोए माँ भी दूध नहीं पिलाती : प्रयत्न के बिना कोई कार्य नहीं होता।
- बिल्ली के भाग छींका टूटना : संयोग से किसी कार्य का अच्छा होना/अनायास आप्रत्याशित वस्तु की प्राप्ति होना।
- बिल्ली के भाग से छीका टूटा (फूटा) : संयोगवश काम का सहज में ही हो जाना।
- बैठे से बेगार भली : खाली बैठे रहने से तो किसी का कुछ
काम करना अच्छा।
- बॉबी में हाथ तू डाल मंत्र में पढूं :
खतरे का कार्य दूसरों को सौंपकर स्वयं अलग रहना।
- बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से खाए : बुरे कर्म कर अच्छे फल की इच्छा करना व्यर्थ है।
- भई गति साँप छछूदर कर : कश्मकश में पड़ना; द्विविधा में पड़ना; बहुत विषम स्थिति में होना।
- भई गति साँप छडूंदर जैसी : दुविधा में पड़ना।
- भरी थाली में लात मारना : अभिमान से तिरस्कार करना; परिपूर्ण चीज़ की रक्षा करना।
- भागते भूत की लंगोट भली : हाथ पड़े सोई लेना जो बच जाए उसी से संतुष्टि/कुछ नहीं से जो कुछ भी मिल जाए यह अच्छा।
- भुस में आग लगी जमालो दूर
खड़ी : बँटवारे अथवा कलह का बीजारोपण कर तरस्थ की भूमिका अदा करना।
- भूखे भजन न होय गोपाला : भूख लगने पर कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
- भूल गये राग रंग भूल गये छकड़ी तीन चीज याद रही नोन, तेल, लकड़ी : गृहस्थी के जंजाल में फंसना
- भेड़ पर ऊन किसने छोड़ी? : अच्छी चीज़ को सब लेना चाहते हैं।
- भैंस के आगे
बीन बजाये भैंस खड़ी पगुराय
: मूर्ख को उपदेश देना व्यर्थ है।
- भौर न छाडे केतकी तीखे कण्टक जान :
सच्चे प्रेमी विघ्न बाधाओं की परवाह न करते हुए, अपनी प्रेमिका को नहीं छोड़ते।
- मछली के बच्चे को तैरना कौन सिखाता है ? : कुछ गुण जन्मजात होते हैं।
- मन के हारे हार है मन के जीते जीत : साहस बनाये रखना आवश्यक है। हतोत्साहित होने पर असफलता
- मन चंगा को कठौती में गंगा : मन की शान्ति ही सुख की जननी है।
- मन चंगा तो कटौती में गंगा : मन पवित्र तो घर में तीर्थ है।
- मन-मन भावे मुड़ी हिलावे : इच्छा रहने पर भी मना करना।
- मरता क्या न करता : मज़बूरी में इनसान सब कुछ करता है।
- मरता क्या न करता : मुसीबत में गलत कार्य करने को भी तैयार होना पड़ता है।
- मरी बछिया बामन के सिर : व्यर्थ का दान।
- मान न मान मैं तैरा मेहमान : जबरदस्ती गले पड़ना।
- मानो तो देव नहीं तो पत्थर : विश्वास फलदायक होता है।
- मार के आगे भूत भागता है : दण्ड से सभी भयभीत होते हैं।
- मियाँ बीबी राजी तो क्या करेगा काजी? : यदि आपस में प्रेम है तो तीसरा क्या कर सकता है?
- मुँह चिकना, पेट ख़ाली : केवल ऊपरी दिखावा करना।
- मुँह में राम बगल में छुरी : दिखावटी सज्जनता; कपटपूर्ण आचरण।
- मुख में राम बगल में छुरी : ऊपर से मित्रता अन्दर शत्रुता धोखेबाजी करना।
- मुद्दई सुस्त : गवाह चुस्त : मुखिया की अपेक्षा सहायकों का बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना।
- मुफ्त का चंदन, घिस मेरे नंदन : मुफ्त में मिली वस्तु का दुरुपयोग करना।
- मेंढ़की को जुकाम होना : नीच आदमियों द्वारा नखरे करना।
- मेंढकी को भी जुकाम हुआ है ; अपनी शक्ति से बढ़कर बात करना।
- मेरी बिल्ली मुझ से ही न्याऊँ : आश्रयदाता का ही विरोध करना
- मेरी बिल्ली मुझी से म्याऊँ : नौकर को मालिक के सामने अकडना नहीं चाहिए।
- यथा नाम तथा गुण : नाम के अनुसार गुण का होना।
- यथा राजा तथा प्रजा : जैसा स्वामी वैसा सेवक
- यह मुँह और मसूर की दाल : अपनी सामर्थ्य से बढ़कर बात करना।
- यह मुँह और मसूर की दाल : योग्यता से अधिक पाने की इच्छा करना
- रंग में भंग पड़ना : आनन्द में बाधा उत्पन्न होना।
- रस्सी जल गई पर ऐंठ न गई : सर्वनाश होने पर भी घमण्ड बने रहना/टेक न छोड़ना।
- राम नाम जपना, पराया माल अपना : ऊपर से भक्त, भीतर से ठग होना।
- राम नाम जपना, पराया माल अपना : मक्कारी करना।
- रोग का घर खाँसी और लड़ाई का घर हाँसी : हँसी-मज़ाक कभी-कभी लड़ाई का कारण बन जाता है।
- रोग का घर खाँसी, झगड़े का घर हॉसी : हंसी मजाक झगड़े का कारण बन जाती है।
- रोज कुआ खोदना रोज पानी पीना : प्रतिदिन कमाकर खाना रोज कमाना रोज खा जाना।
- लकड़ी के बल बन्दरी नाचे : भयवश ही कार्य संभव है।
- लम्बा टीका मधुरी बानी दगेबाजी की यही निशानी : पाखण्डी हमेशा दगाबाज होते हैं।
- लातन के देव बातन से नहीं मानते; लातों के भूत बातों से नहीं मानते - बिना दण्डित किये हुए दुष्टों में सुधार नहीं होता।
- लातों के भूत बातों से नहीं मानते : नीच व्यक्ति दण्ड से/भय से कार्य करते हैं कहने
से नहीं।
- लाल गूदड़ी में नहीं छुपते : श्रेष्ठ व्यक्ति सोचनीय स्थिति अथवा अभावपूर्ण स्थिति में छुपाये नहीं छुपते।
- लोहे को लोहा ही काटता है : बुराई को बुराई से ही जीता जाता है।
- वक्त पड़े जब जानिये को बैरी को मीत : विपत्ति/अवसर पर ही शत्रु व मित्र की पहचान होती है।
- वही मियाँ दरबार में, वही चूल्हे के पास : एक व्यक्ति को कई काम करने पड़ते हैं।
- विधिकर लिखा को मेटनहारा : भाग्य को कोई बदल नहीं सकता।
- विनाश काले विपरीत बुद्धि : विपत्ति आने पर बुद्धि भी नष्ट हो जाती है।
- शक्कर खोर को शक्कर मिल ही जाती है। : जरूरतमंद को उसकी वस्तु सुलभ हो ही जाती है
- शक्ल चुडैल की, मिज़ाज परियों का : बेकार का नखरा
- शठे शाठ्यं समाचरेत : दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना चाहिये।
- शबरी के बेर : प्रेममय तुच्छ भेंट
- शुभस्य शीघ्रम : शुभ कार्य में शीघ्रता करनी चाहिए।
- शेरों का मुँह किसने धोया? : सामर्थ्यका के लिए कोई उपाय नहीं।
- सब दिन होत न एक समान : जीवन में सुख-दुःख आते रहते हैं. क्योंकि समय परिवर्तनशील होता है।
- सब धान बाईस पंसेरी : अविवेकी लोगों की दृष्टि में गुणी और मूर्ख सभी व्यक्ति बराबर होते हैं।
- समरथ को नहीं दोष गुसाई : गलती होने पर भी सामर्थ्यवान को कोई कुछ नहीं कहता।
- साँच को आँच क्या?; साँच को आंच महीं : सच्चे व्यक्ति को डर किस बात का?
- साँच को आँच नहीं : सच्चा व्यक्ति कभी डरता नहीं।
- साँप का काटा पानी नहीं मांगता : कुटिल व्यक्ति की चाल में फँसा मनुष्य बच नहीं पाता।
- साँप मर जाये और लाठी न टूटे : सुविधापूर्वक कार्य होना/बिना हानि के कार्य का बन जाना।
- सारी रात मिमियानी औसएक ही बच्चा बियानी : प्यास बहुत अधिक और लाभ कम
- सावन के अंधे को हरा ही हरा सूझता है। : अपने समान सभी s
- सावन सूखा न भादों हरा: सदैव एक सी स्थिति बने रहना।
- सिंह के बंस में उपजा
सियार : बहादुरों की कायर संतान उत्पन्न होना।
- सिर मुंडाते ही ओले पड़ना : कार्य प्रारम्भ करते ही बाधा उत्पन्न होना।
- सिर मुड़ाते ही ओले पड़े : कार्य में विघ्न का उपस्थित होना।
- सीधी अँगुली घी नहीं निकलताः सीधेपन से कोई कार्य नहीं होता
- सीधे का मुंह कुत्ता चाटे :
सीधेपन का लोग अनुचित लाभ उठाते
हैं।
- सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठप लट्ठा - बे-बात की लड़ाई
- सूप बोले तो बोले छलनी भी : दोषी का बोलना ठीक नहीं।
- सैइयाँ भये कोतवाल अब काहे का डर: अपनों के उच्चपद पर होने से बुरे कार्य बे हिचक
करना।
- सोने में सुगन्ध : अच्छे में और अच्छा।
- सौ सुनार की एक लुहार की : सैंकड़ों छोटे उपायों से एक बड़ा उपाय अच्छा।
- हथेली पर दही नहीं जमता : हर कार्य के होने में समय लगता है
- हथेली पर सरसों नहीं उगती : कार्य के अनुसार समय भी लगता है
- हम साँप नहीं, जो हवा पीकर जियें : भरपेट खाना चाहिए।
- हल्दी लगे न फिटकरी रंग चोखा आ जाय : आसानी से काम बन जाना कम खर्च में अच्छा कार्य।
- हाँडी का एक ही चावल देखा जाता है : किसी परिवार जाति या देश के एक ही मनुष्य को देखने से ज्ञात हो जाता है कि शेषकैसे होंगे।
- हाथ कंगन को आरसी क्या : प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता क्या ?
- हाथ कंगन को आरसी क्या? ; प्रत्यक्ष वस्तु के लिए प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती।
- हाथ सुमरनी बगल कतरनी : मन में कुछ और प्रत्यक्ष में कुछ और ; ऊपर से निर्मल, भीतर से कलुषित।
- हाथ सुमरिनी बगल कतरनी : कपटपूर्ण व्यवहार करना।
- हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और : करना कुछ, कहना कुछ ; द्विरंगी चाल।
- हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और : कपटपूर्ण व्यवहार/कहे कुछ करे कुछ/कथनी व करनी में अन्तर। raj
- हाथी के पाँव में सबके पाँव : बड़ों के पीछे छोटों का निर्वाह; . कोई ऐसा कार्य, जिसे अवसर के अनुकूल समझकर उसमें सभी लोग हिस्सा लेना चाहे।
- होनहार बिरवान के होत चीकने पात : बचपन से ही लक्षणों का दिखाई देना; महत्ता के लक्षण बचपन से ही प्रकट होने लगते हैं।
- होनहार बिरवान के होत चीकने पात : महान व्यक्तियों के लक्षण
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