Rh कारक (Rh factor)
- Rh कारक की खोज मकाका रीसस (Macaca Rhesus) नाम के बंदर में की गई थी।
- यह प्रोटीन मानव की रक्त कणिकाओं की सतह पर भी पाया जाता है।
- जिस व्यक्ति में Rh एंटीजन होता है, उसे Rh सहित (Rh+ve) कहा जाता है।
- जिस व्यक्ति में Rh एंटीजन होता है, उसे Rh सहित (Rh-ve) कहा जाता है।
- विश्व में करीब 85% मानव आबादी आर एच धनात्मक (Rh+) लोगों की है तथा शेष 15% आर एच ऋणात्मक (Rh-) होते है ।
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Rh कारक के प्रकार
मानन में पाँच प्रकार के आर एच कारक पाए जाते हैं- Rh.D
- RR.E
- Rh.e
- Rh.C
- Rh.c
Rh कारक | मानव में उपस्थित Rh कारक (%) |
---|---|
Rh.D | 85% |
Rh.E | 30% |
Rh.e | 78% |
Rh.C | 80% |
Rh.c | 80% |
Rh कारक महत्वपूर्ण बिंदु
- सभी आर एच कारकों में Rh.D सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह सर्वाधिक प्रतिरक्षाजनी (Immunogenic) है।
- सभी आर एच कारकों में Rh.D सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह सर्वाधिक प्रतिरक्षाजनी (Immunogenic) है।
- रक्तदान के समय ना केवल रक्त समूह का वरन आर एच कारक का मिलान भी आवश्यक है।
- Rh+ व्यक्ति का रक्त Rh- व्यक्ति के शरीर में स्थानांतरित किया जाए तो ग्राही में आर एच कारक के विरूद्ध IgG प्रतिरक्षी उत्पन्न होती है।IgG प्रतिरक्षी आर एच धारी लाल रक्त कोशिकाओं को रूधिर समूहन (Agglutination) की विधि द्वारा नष्ट कर देती है। इस कारण रक्त में बिलीरूबिन (Bilirubin) नामक हानिकारक पदार्थ की बड़ी मात्रा जमा हो जाती है।
- बिलीरूबिन की अधिकता यकृत (Liver) तथा प्लीहा (Spleen) को हानि पहुंचा कर वृक्क (kidney) को विफल कर व्यक्ति की मृत्यु का कारण बन सकती है।
- Rh प्रतिरक्षी पहले से ही शरीर में बनी हुई नहीं होती वरन् इन का निर्माण आर एच ऋणात्मक रुधिर के प्रथम बार आर एच धनात्मक रक्त के सम्पर्क में आने पर Rh प्रतिरक्षी का निर्माण होता है।
- गर्भावस्था के दौरान यदि माँ आर एच ऋणात्मक हो तथा गर्भस्थ शिशु आर एच धनात्मक हो तब प्रसव के दौरान विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है।
- प्रथम प्रसव के समय माता व भ्रूण (Embryo) का रक्त आपस में मिल जाता है। इस कारण माता में Rh प्रतिरक्षी का निर्माण होता है। प्रथम शिशु का जन्म सामान्य रूप से होता है।
- द्वितीय गर्भावस्था में भी यदि शिशु आर एच धनात्मक हो तो जटिलता उत्पन्न हो सकती है। माता के शरीर में बने Rh प्रतिरक्षी भ्रूण के रक्त में मौजूद Rh कारकों से प्रतिक्रिया करते हैं। रूधिर समूहन विधि द्वारा ये प्रतिरक्षी लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट कर रुधिर लयनता (Haemolysis) या उसे रक्ताल्पता (खून की कमी) और पीलिया हो सकता है। इस कारण माता के गर्भ में भ्रूण की मृत्यु तक हो जाती है। यदि शिशु जीवित रहता है तो वह अत्यन्त कमजोर तथा हिपेटाइटिस से ग्रसित होता है। इस रोग को गर्भ रक्ताणुकोरकता (Erythroblastosis foetalis) इरिथ्रोब्लास्टोसिस फिटैलिस (गर्भ रक्ताणु कोरकता) कहते हैं।
RBSE |
- इस रोग के उपचार हेतु प्रथम प्रसव के 24 घण्टों के भीतर माता को प्रति IgG प्रतिरक्षियों (anti Rh.D) का टीका लगाया जाता है। इन्हे रोहगम (Rhogam) प्रतिरक्षी कहा जाता है। ये प्रतिरक्षी माता के रक्त में मिश्रित भ्रूण की आर एच धनात्मक रक्त कोशिकाओं का विनाश कर माता के शरीर में प्रतिरक्षी उत्पन्न होने से रोकती है। कई बार इस रोग के उपचार के लिए शिशु का संपूर्ण रक्त रक्ताधान के द्वारा बदला जाता है।
- कई बार रक्ताधान के पश्चात् होने वाली रूधिर लयनता का प्रमुख कारण भी आर एच असंगतता (Rhincompatibility) होती है।
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