Sound Definition | Influences | Pitch in Hindi

ध्वनि (Sound)

हम अपने जन्म के साथ ही विभिन्न प्रकार की ध्वनियाँ सुनना प्रारंभ कर देते हैं। कोयल की कुहू-कुहू , मुर्गे की बांग,पक्षियों की चहचहाट,गाय का रंभाना,पूजाघरों की घंटी,भजन,हारमोनियम,सितार आदि का संगीत और न जाने कितनी ही ध्वनियाँ पल-प्रतिपल कानो में प्रवेश करती हैं।

ध्वनि की उत्पत्ति ( The origin of the sound)

एक थाली को उल्टा रखकर उसके ऊपर कागज के टुकड़े की दो-तीन गोलियाँ बना कर रखिए। अब एक चम्मच से उसे बजाइए। आप क्या देखते हैं? कागज के टुकड़े ऊपर-नीचे क्यों हिलते हैं?
एक रबर बैण्ड के एक सिरे को दीवार से कील के सहारे बाँध कर उसे तानिए। अपने दूसरे हाथ से रबर बैण्ड को मध्य से खींचकर छोड़िए। क्या ध्वनि उत्पन्न होती है? रबर की गति का अवलोकन कीजिए।
यदि रबर की गति रोक दी जाए तो क्या ध्वनि सुनाई देगी? उपर्युक्त गतिविधि से स्पष्ट होता है कि रबर को खींचकर छोड़ने पर यह ऊपर व नीचे की ओर कम्पन करता है, इस प्रकार की गति को कम्पन गति कहते हैं।
वस्तुओं में कम्पन के कारण ही ध्वनि उत्पन्न होती हैं।
इसी प्रकार ढोल, तबला, ढोलक , विद्यालय की घंटी आदि को बजाकर इन्हें छूकर देखिए। क्या इनमें भी कम्पन होते हैं।

मानव में वाक् ध्वनि का उतपन्न होना 

जब हम बोलते हैं हमारे कंठ से ध्वनि उत्पन्न होती है। यह वाक् ध्वनि कैसे उत्पन्न होती हैं? 
गुब्बारे के रबर की लगभग 4 सेमी लम्बी और 3 सेमी चौड़ी दो आयताकार पट्टियाँ काट लीजिए। इन दोनों को आपस में सटा कर दोनों हाथों से पकड़ कर खींचिए। अब इनके मध्य में अपने मुँह से तेज हवा फूँक कर ध्वनि निकालने का प्रयास कीजिए। अपने मित्र को इसे देखने के लिए कहिए। अब यही क्रिया आप अपने मित्र को करने के लिए कहें तथा आप स्वयं इसका प्रेक्षण करें। फूँक लगाने पर पट्टियाँ खुलती और बंद होती हैं तथा ध्वनि उत्पन्न होती है।
मनुष्य के गले की कंठ नली में दो स्नायु या संधि बंधन होते हैं, जिन्हें हम वाक्-तन्तु कहते हैं।
हमारे वाक्-तन्तु प्राकृतिक वाद्य यंत्र हैं। 
वाक्-तन्तु बोलते समय इस तरह से खींच जाते हैं कि इनमें एक पतली झिर्री बन जाती है। जब फेफड़ों की हवा इस झिर्री में से जेजी से निकलती है, तो वाक्-तन्तु में कम्पन पैदा होता है और ध्वनि उत्पन्न होती हैं। 

ध्वनि का संचरण (Transmutation of sound)

ध्वनि का संचरण भिन्न-भिन्न माध्यम में होता हैं।

  1. वायु में ध्वनि का संचरण 
  2. ठोस में ध्वनि का संचरण 
  3. द्रव में ध्वनि का संचरण 

  1. वायु में ध्वनि का संचरण (Transmutation of sound in air)

ध्वनि उत्पत्ति स्थान से हवा में गति करती हुई हमारे कान तक पहुँचती हैं। वायु में ध्वनि का संचरण कम्पनों के द्वारा होता है, जब वस्तु कम्पन करती है  तो उसके आस-पास की वायु के कण भी कम्पन करने लगते हैं। हर कम्पित कण,इन कम्पनों को अपने सम्पर्क में आने वाले अन्य कणों को स्थानांतरित करते हैं। इस तरह ध्वनि के कम्पन एक के बाद एक वायु कणों से कान तक पहुँचते है। कान के पर्दे के समीप वाले वायु कण कम्पन करते हैं । इनकी टक्कर से कान का पर्दा ( कर्ण पटह ) कम्पन करता है और हमें ध्वनि सुनाई देती हैं।

 2. ठोस में ध्वनि का संचरण (Sound transmission in solid)

एक मीटर स्केल, लगभग 2 मीटर लम्बा धातु का तार एवं इतनी ही लम्बा धागा लीजिए। मीटर स्केल के एक सिरे को अपने कान पर लगाएँ तथा दूसरे सिरे पर अपने मित्र को नाखून से हल्के-हल्के रगड़ने को कहिए।
क्या आपको स्केल पर रगड़ने की ध्वनि सुनाई देती है? इसी प्रकार धातु के तार तथा धागे को तानकर यह प्रक्रिया दोहराइए। एक सिरे को रगड़ने से उसमें उत्पन्न कम्पन ठोस के कणों में उत्तरोत्तर आगे बढ़ते हुए दूसरे सिरे तक पहुँचते हैं अतः स्पष्ट है कि ठोस में ध्वनि का संचरण होता हैं।
प्रयोगशाला में स्वरित्र को कम्पन कराने के बाद उसको कान के पास लाने पर ध्वनि सुनाई देती हैं।

3. द्रव में ध्वनि का संचरण ( Circulation of sound in fluid)

पानी से भरी बाल्टी में दो पत्थरों को आपस में बताइए। क्या पास खड़े व्यक्ति को ध्वनि सुनाई देती हैं? निश्चित ही आप इस ध्वनि को भलीभाँति सुन सकते हो। अतः स्पष्ट है कि द्रव पदार्थों में भी ध्वनि का संचरण होता हैं। 
  • उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि ठोस,द्रव व गैस ( वायु  ) तीनों माध्यमों में ध्वनि का संचरण होता हैं। 
  • ध्वनि निर्वात में संचरित नहीं होती है।
  • ध्वनि के संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है।
  • ध्वनि की चाल सबसे अधिक ठोस में,उससे कम द्रव में तथा सबसे कम वायु में होती है।
  • 0˚C पर वायु में ध्वनि की चाल 331 मीटर प्रति सेकंड होती है।
  • चन्द्रमा पर अंतरिक्ष यात्री दूसरे अंतरिक्ष यात्री से आपस में बातचीत नहीं कर पाता है क्योंकि चन्द्रमा पर वायु नहीं होती हैं।

ध्वनि आयाम, आवृति एवं आवर्तकाल 

आयाम :-

कम्पन करने वाली वस्तु का माध्य स्थिति से अधिकतम विस्थापन को आयाम कहते हैं।

 ध्वनि तरंग की आवृति:-

एक सेकण्ड / प्रति इकाई में किए गए कम्पनों की संख्या को आवृति कहते है। 
आवृति का मात्रक " कम्पन प्रति सेकंड " होता है। इसकी SI इकाई  हटर्ज  ( Hz ) भी कहा जाता है। यह प्रतीक द्वारा दर्शाया गया है? (ग्रीक अक्षर nu) से बना हैं।


आवृति = कम्पनों की कुल संख्या /कम्पनों में लगा समय 

Hz = n/t


कम्पन काल या आवर्तकाल:-

एक कम्पन करने में लगे समय को आवर्तकाल कहते है। आवर्तकाल एवं आवृति एक दूसरे के व्युत्क्रम होते है।
आवर्तकाल मात्रक " सेकंड " होता है।

आवर्तकाल = 1/आवृति 

T =1/Hz


ध्वनि के लक्षण 

प्रत्येक व्यक्ति,जन्तु,वाद्य यंत्रों की ध्वनियाँ अलग-अलग प्रकार की होती है। हमारे कानों में ध्वनियों के अनुभव को तीन लक्षणों के आधार पर पहचाना जा सकता है।

  1. तीव्रता 
  2. तारत्व 
  3. गुणत्ता 

 तीव्रता तारत्व गुणत्ता तीनों बड़े मात्रक है,  ध्वनि का छोटा मात्रक डेसीबल है अतः व्यवहार में डेसीबल ( dB ) का उपयोग किया जाता हैं।

1.प्रबलता (Strength)

एक थाली या धातु पात्र पर चम्मच से पहले धीरे तथा बाद में जोर से चोट कीजिए । किस स्थिति में ध्वनि तीव्र या अधिक प्रबल है तथा किसमें क्षीण या प्रबल है? आपने ढोल या ढोलक बजाते हुए भी देखा होगा कि जब इन पर जोर से चोट की जाती है तो तीव्र या अधिक प्रबल ध्वनि उत्पन्न होती है, किन्तु जब हल्की चोट की जाती है तो कम प्रबल या क्षीण ध्वनि उत्पन्न होती है। 
जब आप धीमें बोलते है तो कम तीव्रता या प्रबलता की ध्वनि निकलती है,लेकिन जोर से बोलने पर अधिक प्रबलता की ध्वनि निकलती है जिसकी तीव्रता या प्रबलता अधिक होती है।
ध्वनि की तीव्रता उसके कम्पन के आयाम पर निर्भर करती है, अतः हम कह सकते है कि ध्वनि की प्रबलता कम्पन के आयाम बढ़ने पर बढ़ती है।
ध्वनि की प्रबलता का मात्रक " डेसीबल (dB )" है 

2. तारत्व 

(Pitch)

एक चिमटा एवं घंटी को बजा कर दीजिए । किसकी ध्वनि महीन तीखी या बारीक है तथा किसकी ध्वनि मोटी या भारी है? आप अपने अनुभव के आधार पर ध्वनि यंत्रों के जोड़े बना कर उनकी ध्वनियों को तीक्ष्ण ( बारीक  ) तथा भारी ( मोटी  ) आवाजों में वर्गीकृत कीजिए । जैसे स्त्री व पुरुषों में सामान्यतः स्त्रियों की आवाज महीन होती है तथा पुरुषों की आवाज अपेक्षाकृत भारी होती है।
तारत्व, ध्वनि का एक गुण है जिसका उपयोग ध्वनि को आवृति के अनुसार क्रमबद्ध करने में होता है।
ध्वनि के तीक्ष्ण ( महीन ) अथवा (मोटी ) होने के लक्षण को तारत्व कहते है।
ध्वनि का तारत्व ध्वनि की आवृति पर निर्भर करता है।तारत्व या आवृति अधिक होने के कारण महिलाओं और बच्चों की आवाज पुरुषों की तुलना में सुरीली व बारीक होती है।
अतः स्पष्ट है कि उच्च तारत्व वाली ध्वनि की आवृति उच्च तथा निम्न तारत्व वाली ध्वनि की आवृति न्यून होती है

ध्वनि का परावर्तन (Sound of Reflection)


ध्वनि एक तरल या ठोस की सतह पर परिलक्षित होती है और प्रतिबिम्ब के नियमों का पालन करती हैं 

  1. घटना किरण, परावर्तित किरण और घटना के बिंदु पर सामान्य सभी एक ही बिंदु में स्थित हैं।
  2. घटना का कोण प्रतिबंध के कोण के बराबर हैं।
प्रतिध्वनि यदि हम पहाड़ या ऊँची इमारत जैसी परावर्तक सतह के पास चिल्लाते या ताली बजाते है, तो हम फिर से वही ध्वनि सुनते हैं। यह ध्वनि जो हम सुनते हैं। वह प्रतिध्वनि कहते हैं।यह ध्वनि परावर्तन के कारण होता हैं।
स्पष्ट प्रतिध्वनि सुनने के लिए, मूल और प्रतिध्वनि के बीच का समय अंतराल कम से कम 0.1 s होना चाहिए।
चूँकि हवा में ध्वनि की गति 344 m/s हैं
इसलिए ध्वनि में दूरी = चाल  समय
                           =  0.1s ×344 m/s
                           =   34.4m
एक प्रतिध्वनि स्पष्ट रूप से सुनने के लिए, परावर्तक सतह की न्यूनतम दूरी इस दूरी की आधी होनी चाहिए जो कि 17.2 मीटर होती हैं।
कई प्रतिबिंबित सतहों से ध्वनि के बार- बार या कई प्रतिबिंब
 के कारण एक से अधिक बार एक ही ध्वनि को सुना जा सकता हैं। यह ध्वनि की दृढ़ता का कारण बनता हैं। जिसे पुनर्जन्म कहा जाता हैं।बड़े हॉल या सभागारों में पुनर्सयोजन को कम करने के लिए,छत और दीवारों को संपीडित फाइबर बोर्ड, किसी न किसी प्लास्टर या ड्रेपरियों जैसे ध्वनि अवशोषित सामग्री द्वारा कवर किया जाता हैं।

ध्वनि परावर्तन का उपयोग (Use of sound reflection)

  1. सींग, मेगाफोन , तुरही जैसे संगीत वाद्ययंत्र आदि सभी दिशाओं में फैलने के बिना किसी विशेष दिशा में कई प्रतिबिंब द्वारा ध्वनि भेजने के लिए तैयार किए जाते हैं
  2. डॉक्टर स्टेथोस्कोप के माध्यम से मानव शरीर से आवाज सुनते है।
  3. सिनेमा हॉल और ऑडिटोरियम की छतें घुमावदार होती हैं। ताकि हॉल के सभी हिस्सों में कई प्रतिबिंबों के बाद ध्वनि पहुँच सके।




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