परमाणु संरचना (Atomic structure) Class 9 BSER Book Science

परमाणु संरचना (Atomic structure) Class 9 BSER Book Science


भारतीय दार्शनिक महर्षि Kanada ने ईसा पूर्व छठी शताब्दी में बताया कि " पदार्थ को छोटे कणों में विभाजित कर सकते हैं, परन्तु अंतिम सूक्ष्मतम कण अविभाज्य रहेगा। " कणाद ने इसे "परमाणु " नाम दिया। अन्य भारतीय दर्शनशास्त्री 'कात्यायाम ' ने बताया कि ये 'कण' संयुक्त रूप से पाए जाते हैं जो पदार्थ को भिन्न-भिन्न रूप प्रदान करते हैं। लगभग इसी समय ग्रीक दार्शनिक ' डेमोक्रिटस एव लियुलीपस ' ने इस अविभाज्य कण को एटम्स (Atoms) कहा जिसका अर्थ होता हैं, 'न काटे जाने वाला ' या 'अविभाज्य ' अर्थात विभाजित नहीं किया जा सकता । ये सभी सुझाव दर्शन पर आधारित थे, इनका कोई प्रायोगिक आधार नहीं था।

जॉन डाल्टन (John Dalton)

 सन् 1808 में वैज्ञानिक 'जॉन डाल्टन' ने रासायनिक संयोजन, द्रव्यमान संरक्षण एवं निश्चित अनुपात के नियमों के आधार पर 'परमाणु सिद्धांत ' दिया

जिसके मुख्य बिंदु निम्नलिखित

  1. सभी द्रव्य छोटे-छोटे कण  से मिलकर "परमाणु "बने होते हैं 
  2. परमाणु अविभाज्य (undivided) कण हैं, जिसको न तो नष्ट , न ही उत्पन्न कर सकते हैं।
  3. एक तत्व के सभी परमाणु समान होते हैं।
  4. भिन्न तत्वों के परमाणु परस्पर पूर्णसंख्या के अनुपात में ही संयोग कर यौगिक [Compound] अणु बनाते हैं।
  5.  परमाणु के रासायनिक परिवर्तन वस्तुतः परमाणुओं का   पुनर्विन्यास, संयोजन तथा वियोजन होता हैं।
  6. भिन्न-भिन्न तत्वों के परमाणु भिन्न भिन्न गुणधर्म नियम रखते हैं।
उन्नीसवीं शताब्दी के अतः तक विभिन्न प्रयोगों की श्रृंखला से स्पष्ट हुआ कि परमाणु में कुछ छोटे कण उपस्थित होते हैं, जिन्हें ' अवपरमाण्विक कण (Subatomic particle) कहा गया।
परमाणु के भौतिक कण एवं उनकी खोज

इलेक्ट्रॉन की खोज (Discovery of electron)

एक लम्बी कांच [glass] की नलिका होती हैं, जिसके दोनों सिरों पर धातु इलेक्ट्रॉड लगे होते है व इससे एक निर्वात पम्प जुड़ा रहता है, जिसके द्वारा नलिका में दाब निम्न व उच्च किया जा सकता हैं तथा इसके द्वारा नलिका में निर्वात भी उत्पन्न कर सकते हैं। जे.जे.थॉमसन ने विसर्जन नलिका में उच्च निर्वात उत्पन्न कर धातु इलेक्ट्रॉड पर उच्च वोल्टता लागू की तो देखा कि नलिका की दीवारों पर हरी प्रतिदीप्ति उत्पन्न होती हैं। थॉमसन ने प्रयोगों के द्वारा प्रमाणित किया कि निर्वात में उच्च वोल्टता लगाने से नलिका के Cathode [-] से Anod [+] की तरफ विद्युत का प्रवाह किरणों के रूप में होता हैं, थॉमसन ने इन किरणों को कैथोड किरणें कहा।

कैथोड़ किरणों के गुण

  1. कैथोड़ किरणें सीधी रेखा में गमन करती हैं।
  2. यह प्रतिदीप्ति उत्पन्न करती हैं।
  3. विद्युत व चुम्बकीय क्षेत्रों से प्रभावित होती हैं।
  4. कैथोड़ किरणें जब किसी गैस से गुजरती है तो उसे आयनित कर देती हैं।
  5. यह ऋणावेशित कणों से बनती हैं।
  6. कैथोड़ कणों का e/m [आवेश /द्रव्यमान] एक समान होता हैं।
  7. यह वस्तुतः द्रव्य किरणें होती हैं।
  8. जे.जे. थॉमसन के अनुसार कैथोड किरणें ऋणावेशित [-] कणों से बनती हैं, उन कणों को थॉमसन ने इलेक्ट्रॉन नाम दिया तथा इनका द्रव्यमान हाइड्रोजन [H] परमाणु का 1/1837 पाया। 
  9. प्रयोगों द्वारा  Cathode किरणों के गुणों से यह प्रमाणित हुआ कि परमाणु में एक ऋणावेशित कण इलेक्ट्रॉन होता हैं, जिसे परमाणु से अलग किया जा सकता है। परमाणु विद्युत उदासीन होता हैं, इसलिए परमाणु का शेष भाग जिसमें से इलेक्ट्रॉन निकाल लिया गया हैं, वह धनावेशित [+] होना चाहिए।

प्रोटॉन की खोज (Discovery of Proton(


प्रोटॉन की खोज सन् 1886 में ई गोल्डस्टीन ने विसर्जन नलिका में छिद्रमय कैथोड प्रयुक्त किया तथा कम दाब व उच्च विभव पर नई प्रकार की किरणें प्राप्त की जिन्हें धन किरणें [+] कहा  गया। इन्हें anod किरणें भी कहा जाता हैं।

धन किरणों के गुण 
  1. धन किरणें सीधी रेखा में गमन करती हैं।
  2. इनका आवेश/द्रव्यमान (e/m) अनुपात नलिका में भरी हुई गैस की प्रकृति पर निर्भर करती हैं।
  3. विद्युत एवं चुम्बकीय क्षेत्रों से प्रभावित होती हैं।
  4. ये धन आवेशित कणों की बनी होती हैं।
  5. ये भी द्रव्य किरणें ही होती हैं।
सन् 1919 में इस धन कण की पहचान प्रोटॉन रूप में की गई तथा बताया गया कि परमाणु में इलेक्ट्रॉन के साथ ही धन आवेशित कण प्रोटॉन भी उपस्थित होता हैं। दोनों की संख्या व आवेश समान होने के कारण परमाणु उदासीन होता हैं। प्रोटॉन का द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन से 1837 गुना अधिक होता हैं।


परमाणु का थॉमसन मॉडल (Thomson model of atom)

परमाणु में इलेक्ट्रॉन व प्रोटॉन की उपस्थिति प्रमाणित होने के बाद थॉमसन ने 1898 में बताया कि परमाणु 10-10 मीटर त्रिज्या का ठोस धनावेशित गोला है, जिसमें ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन धंसे रहते हैं। परमाणु थॉमसन मॉडल की तुलना उसने एक मिठाई "प्लम पुडिंग " से की जाती हैं  जिसमें केक में जगह-जगह पर सूखे मेवे उपस्थित होते हैं। हम इसको समझने के लिए तरबूज [watermelon] का उदाहरण होते हैं, जिसके गूदे को धनभाग [+] व उसमें उपस्थित बीज को इलेक्ट्रॉन [e] माना जाता हो।इनका प्रतिरूप को " प्लम पुडिंग " मॉडल का नाम दिया गया।
कुछ समय बाद ही परमाणु Thonson Model प्रतिरूप को खारिज कर दिया गया क्योंकि यह रदरफोर्ड के ऐल्फा कण प्रकीर्णन प्रयोग की व्याख्या नहीं कर सका।


रदरफोर्ड का प्रयोग व नाभिकीय परमाणु मॉडल (Rutherford's use and nuclear nuclear model)

अर्नेस्ट रदरफोर्ड ने 1911 में सोने की पतली पन्नी पर्णिका (Foil) (100 नेनोमीटर ) पर ऐल्फा कणों (हीलियम के नाभिक) की बोछार की जिसके चारों ओर जिंक सल्फाइड (Zns) का पॉलिश किया हुआ एक वृत्ताकार आवरण था।

इस प्रयोग से निम्नलिखित प्रेक्षण प्राप्त हुए

  1.  अधिकाश कण  सीधे आगे निकल जाते हैं
  2. कुछ कण 90˚ व 120˚ कोण पर विक्षेपित होकर आगे की ओर निकल जाते हैं।
  3. 2000 कणों की बौछार करने पर एक कण ऐसा था जो 180˚ कोण से विक्षेपित होकर वापस आ जाता है अर्थात् पतली पन्नी से टकरा कर पुनः उसी मार्ग से वापस आ जाता हैं।
इस प्रयोग से निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले 
  1. परमाणु का अधिकांश भाग खाली होता है।
  2.  परमाणु में धन आवेश एक जगह केन्द्रित हैं।
  3. नाभिक का size (धनावेश)  परमाणु के आयतन की तुलना में बहुत कम होता हैं।
  4. परमाणु का center धनावेशित [+] होता है उसे नाभिक कहते हैं।
निष्कर्षों के आधार पर रदरफोर्ड के नाभिकीय परमाणु मॉडल 
इनके मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं

  1. परमाणु का समस्त द्रव्यमान नाभिक मे center में होता हैं।
  2. नाभिक की त्रिज्या 10-15 मीटर होती हैं।
  3. परमाणु का अधिकांश भाग खाली होता हैं।
  4. इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर निश्चित वृत्ताकार पथ मे चक्कर लगाते हैं जिन्हें कक्ष या कोश कहते हैं 
  5. नाभिक व इलेक्ट्रॉन के मध्य लगने वाला बल " स्थिर विद्युत आकर्षण बल "(Stable electric attraction force) कहलाता हैं।
  6. नाभिक व इलेक्ट्रॉन तीव्र गति से घूमने पर "अभिकेन्द्रीय बल (Provincial force) " से संतुलित रहता हैं।
  7. परमाणु में इलेक्ट्रॉन व नाभिक का आवेश (Charge) बराबर होने पर परमाणु विद्युत उदासीन होता हैं।
रदरफोर्ड परमाणु प्रतिरूप की कमियां
  1. धन आवेशित नाभिक के चारों ओर घूमता ऋण आवेशित इलेक्ट्रॉन त्वरण के कारण ऊर्जा विकिरण उत्सर्जित करेगा, जिसमें ऊर्जा में लगातार कमी न इलेक्ट्रॉन अन्ततः नाभिक में गिर जायेगा और परमाणु स्थायी नहीं रहेगा।‌‌‌
  2. रदरफोर्ड परमाणु ‌‌‌के इलेक्ट्रॉन के लिए निश्चित पथ नहीं बता सका

न्यूट्रॉन की खोज (Detection of Neutron)

परमाणु अध्ययनों से ज्ञात हुआ कि परमाणु का द्रव्यमान उसमें उपस्थित इलेक्ट्रॉन विन्यास प्रोटाॅन के कुल द्रव्यमान से अधिक है। 1920 में अर्नेस्ट रदरफोर्ड ने सुझाया कि परमाणु में उदासीन कण भी उपस्थित होते परन्तु आवेश रहित होने के कारण इनकी पहचान में कठिनाई आई। 1932 में उदासीन कण न्यूट्रॉन की खोज हो गई , जिसका द्रव्यमान प्रोटाॅन के लगभग बराबर पाया गया। जेम्स चैडविक ने न्यूट्रॉन की खोज की।

बोर का हाइड्रोजन परमाणु प्रतिरूप

रदरफोर्ड परमाणु प्रतिरूप भौतिकी के अनुरूप नहीं था। 1912 में नील्स बोर ने संकल्पनाओं पर आधारित नया परमाणु प्रतिरूप दिया। क्वांटम सिद्धांत पर आधारित बोर के हाइड्रोजन परमाणु प्रतिरूप की मुख्य अवधारणाएं निम्नलिखित हैं। 
  1. हाइड्रोजन परमाणु में इलेक्ट्रॉन निश्चित तौर त्रिज्या एवं ऊर्जा की वृत्ताकार कक्षाओं में ही गति करता है। इन्हें कोश अथवा कक्ष कहा जाता है। इन कक्षो को 1,2,3,4 ---- या K,L,M,N,O से प्रदर्शित करते हैं।
  2. एक निश्चित कक्षा में chakkar लगाने पर इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता है, परन्तु उच्च कक्षा से निम्न कक्षा अथवा निम्न से उच्च कक्षा में जाने पर ऊर्जा का क्रमशः उत्सर्जन व अवशोषण होता है। 
  3. इन कक्षो में इलेक्ट्रॉन का कोणीय संवेग (mvr), h/2π या इसका गुणज होता है, यहां h प्लाक नियतांक है। m = इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान , v = इलेक्ट्रॉन का वेग तथा r = कक्ष की त्रिज्या 


किसी यौगिक के विलगित परमाणु के नाभिक से बाह्यतम कोश के मध्य की दूरी को परमाण्वीय त्रिज्या (Atomic radius) कहते हैं। परन्तु न तो परमाणु को विलगित कर सकते हैं तथा न ही नाभिक से बाह्यतम कोश की दूरी साधारण तरीके से नापी जा सकता है अतः परमाण्वीय त्रिज्या को इस प्रकार समझा सकते हैं।
परमाणु का आकार (Size of atom)

  1. परमाणु द्रव्यमान (mass of Atom)सह-संयोजक (co-perater) :- समान परमाणुओं द्वारा बनाए गए एकल सह-संयोजक बंध की दूरी का आधा सह-संयोजक त्रिज्या कहलाती है। जैसे- क्लोरीन के दो परमाणुओं के नाभिकों के मध्य दूरी का आधा 9A° ही परमाण्वीय त्रिज्या माना जाता है।
  2. धात्विक त्रिज्या (Metallic radius) :- धात्विक क्रिस्टल में उपस्थित दो परमाणुओं के मध्य की अन्तरानाभिक दूरी का आधा परमाण्वीय त्रिज्या कहलाता है। 
Dalton के परमाणु सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक तत्व का परमाणु द्रव्यमान होता है। व्यवहारिक रूप से परमाणु का द्रव्यमान प्रोटाॅन, न्यूट्रॉन की उपस्थिति के कारण होता है। नाभिक में उपस्थित प्रोटाॅन, न्यूट्रॉन को न्यूक्लियाॅन (Nucleon) कहते हैं। परमाणु का समस्त द्रव्यमान नाभिक में होता है।
ऑक्सीजन परमाणु का द्रव्यमान 16 amu ( 8 प्रोटाॅन व 8 न्यूट्रॉन )
नाइट्रोजन परमाणु का द्रव्यमान 14 amu ( 7 प्रोटाॅन व 7 न्यूट्रॉन )
एक परमाणु में उपस्थित न्यूक्लियाॅन की संख्या (प्रोटाॅन+ न्यूट्रॉन) द्रव्यमान संख्या कहते हैं। द्रव्यमान संख्या को 'A' से प्रदर्शित करते हैं।
किसी परमाणु में उपस्थित प्रोटाॅन की संख्या क्रमांक या परमाणु संख्या कहलाती है। इसे [Z] से प्रदर्शित करते हैं।
                      A= Z+n
                      A= द्रव्यमान संख्या
                      Z = परमाणु क्रमांक
                      n = न्यूट्रॉन की संख्या

परमाणु भार (Weight of Atom)

परमाणु संरचना के बारे में ज्ञान हो गया साथ ही इलेक्ट्रॉन के  e/m के बारे में जान गए। प्रारंभ में सबसे छोटे हाइड्रोजन परमाणु का भार एक इकाई मानकर अन्य तत्वों के परमाणुओं के बारे परिकलित किया। तथा परमाणु भार की परिभाषा दी ' किसी तत्व का परमाणु भार वह number होती हैं। जो तत्व हाइड्रोजन [H] के परमाणु से कितना गुणा अधिक भारी है।
1961 में कार्बन -12 समस्थानिक के भार के बारहवें भाग को माना गया तथा इसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मानक परमाणु द्रव्यमान इकाई माना गया। इसके अनुसार " किसी तत्व का परमाणु भार कार्बन -12 समस्थानिक के बाहरवें भाग (1/12) के सापेक्ष उस तत्व के सभी समस्थानिको का औसत भार होता है।

सारणी के माध्य  तत्वों के परमाणु भार

आवोगाद्रो संख्या (Number of passengers)

हाइड्रोजन [H] व ऑक्सीजन [O] की क्रिया द्वारा जल का बनता है। जो अभिक्रिया निम्नानुसार हैं।

इस अभिक्रिया में हाइड्रोजन के दो अणु व ऑक्सीजन के एक अणु अभिक्रिया कर जल के दो अणु बनते हैं। अभिक्रिया में भाग लेने वाले पदार्थों की मात्रा ज्ञात की जा सकती है। अर्थात इसके अणु अथवा परमाणुओं की संख्या आसानी से गणना कर सकते हैं। पदार्थ की मात्राओं का ज्ञान एक नई इकाई ' मोल [mol] ' की अवधारणा की गई। मोल अवधारणा के अनुसार " किसी पदार्थ के मोल का द्रव्यमान [Mass]उसके ग्राम परमाणु अथवा अणुभार के बराबर होता है।"
सभी पदार्थों के एक मोल में उसके कणों परमाणु, आयन, अणु की संख्या निश्चित होती हैं। जिसे आवोगाद्रो संख्या कहते है।

परमाणु की स्थति

परमाणु में इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर अपनी नश्चित कक्षाओं में चक्कर घुमते है। परमाणु में कक्षाएं बोर द्वारा K,L,M,N,O अथवा 1,2,3,4,5 से प्रदर्शित की गई है। परमाणु में प्रत्येक कक्षा इलेक्ट्रॉन की संख्या 2n2 होती हैं। जिसमें  'n ' कक्ष की संख्या है।‌ बोर के अनुसार परमाणु के बाह्यतम कोश में इलेक्ट्रॉन की संख्या अधिकतम आठ (8) होती हैं। 


समस्थानिक (isotope )

वैज्ञानिक डॉल्टन के अनुसार परमाणु सिद्धांत द्वारा एक तत्त्व के सभी परमाणु समान होते हैं। लेकिन बाद में वैज्ञानिकों ने यह मत सही नहीं पाया गया, बताया कि एक तत्त्व परमाणु की द्रव्यमान संख्या अलग-अलग हो सकती हैं। जैसे हाइड्रोजन परमाणु जिसमें तीन प्रकार के समस्थानिक होते हैं। इनमें से हाइड्रोजन 99.98% ड्यूटीरियम 0.15% तथा ट्राइटियम 0.001% सूक्ष्म मात्रा में उपस्थित होती हैं। 


इन सभी परमाणुओं में पाया गया कि हाइड्रोजन 
के नाभिक में एक प्रोटॉन होता है। और परमाणु क्रमांक एक होता है। जबकि द्रव्यमान एक होता है।
ड्यूटीरियम (Deuterium) के नाभिक में एक प्रोटॉन व एक न्यूट्रॉन होता है और परमाणु क्रमांक एक होता है। जबकि द्रव्यमान दो होता है।
ट्राइटियम के नाभिक के नाभिक में एक प्रोटॉन व दो न्यूट्रॉन होते हैं। और परमाणु क्रमांक एक होता है। जबकि द्रव्यमान तीन होता है।
इस उदाहरण के अनुसार समस्थानिक की परिभाषा को निम्न प्रकार परिभाषित करते हैं " एक ही तत्व के परमाणु जिनके क्रमांक समान परन्तु द्रव्यमान संख्या अलग-अलग होती है, समस्थानिक कहते हैं।
कुछ अन्य उदाहरण
क्लोरीन परमाणु में दो समस्थानिक होते हैं। क्लोरीन-35, क्लोरीन-37
कार्बन परमाणु के दो समस्थानिक होते हैं।  कार्बन-12, कार्बन- 14
ऑक्सीजन परमाणु के तीन समस्थानिक होते हैं। ऑक्सीजन-16, ऑक्सीजन-17 व ऑक्सीजन-18 

   isotope use (समस्थानिको के उपयोग )

  1. यूरेनियम (U) परमाणु के समस्थानिक का उपयोग परमाणु भट्टी में ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है।
  2. रेडियोधर्मी समस्थानिक विभिन्न रोगों के उपचार में काम में लिया जाता है। जैसे आयोडीन-131 का प्रयोग घेंघा रोग विशेषज्ञ कोबाल्ट-60 का प्रयोग कैंसर के उपचार हेतु काम में लेते हैं। 
  3. समस्थानिको का उपयोग अभिक्रियाओं (Reactions) की अध्ययन करने के लिए उपयोग में लाया जाता है।
  4. Isotope -24 का उपयोग मानव के रक्त संचरण के अधययन करने के लिए काम में लिया जाता है।

समभारिक (isobar)

भिन्न-भिन्न तत्वों के परमाणु जिनकी द्रव्यमान संख्या समान होती है।, लेकिन परमाणु क्रमांक अलग-अलग होते हैं। समभारिक (isobar) कहलाते हैं। समभारिक को निम्न उदाहरण से समझ सकते हैं।
कैल्सियम तथा आर्गन दोनों की द्रव्यमान संख्या 40 होती है।, तथा इनका परमाणु क्रमांक क्रमशः 18 व 20 होते हैं। 
कार्बन तथा नाइट्रोजन दोनों की द्रव्यमान संख्या 14 होती है। जबकि इनका परमाणु क्रमांक क्रमशः 6 व 7 होते हैं।
समभारिक परमाणुओं में न्यूट्रॉन व प्रोटॉन की संख्या का योग समान होती है। लेकिन दोनों में प्रोटॉन की संख्या भिन्न-भिन्न होती हैं।
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