स्थितिज ऊर्जा किसे कहते हैं, सूत्र, परिभाषा, उदाहरण Potential energy example in Hindi

स्थितिज ऊर्जा किसे कहते हैं, सूत्र, परिभाषा, उदाहरण 

स्थितिज ऊर्जा (Potential energy)

सामान्यतः स्थितिज ऊर्जा वस्तु की वह ऊर्जा है जो वस्तु की स्थिति या अवस्था के कारण उसमें संचित होती है। इसी ऊर्जा के कारण वस्तु में कार्य करने की क्षमता आ जाती हैं। वस्तु को सामान्य स्थिति में किसी अन्य अवस्था तक लाने में जितना कार्य किया गया है,उसका परिमाप ही नवीन अवस्था में उस वस्तु की स्थितिज ऊर्जा के बराबर होगा।
स्थितिज ऊर्जा एक अदिश राशि है अर्थात इसकी दिशा को परिभाषित नही किया जा सकता है। तथा ऊर्जा के लिए केवल परिमाण को दर्शाया जा सकता है

स्थितिज ऊर्जा के प्रकार (types of potential energy)

 तीन प्रकारो में बांटा गया है –

  1. प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा (Elastic Potential Energy)
  2. गुरुत्वाकर्षण (गुरुत्वीय) स्थितिज ऊर्जा (Gravitational Potential Energy)
  3. विद्युत स्थितिज उर्जा (electrical Potential Energy)

 स्थितिज ऊर्जा को निम्न प्रकार के उदाहरणों से समझेगें 

1. प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा (Elastic Potential Energy)

  • हम सभी को यह अनुभव है किइसी प्रकार जब एक स्प्रिंग को थोड़ा सा खींचकर छोड़ दें तो स्प्रिंग पुनः अपनी प्रारंभिक अवस्था में आ जाती है। यदि हम स्प्रिंग को थोड़ा संपीडित करके मुक्त करें तो भी वह पुनः अपनी सामान्य स्थिति की तरह लौट आती है। स्प्रिंग के अपनी सामान्य अवस्था में वापस आने में कुछ कार्य होता है। यह कार्य तभी संभव हो सकता है जब एक अवस्था से मुक्त करते समय उस वस्तु में कार्य करने की क्षमता हो।

  •  जब कोई वस्तु ऊँचाई से किसी वस्तु को छोड़ा जाए तो वस्तु पृथ्वी की ओर गिरने लगती है।  वस्तु द्वारा पृथ्वी की ओर आने में अपनी सामान्य अवस्था में वापस आने में कुछ कार्य होता है। यह कार्य तभी संभव हो सकता है जब एक अवस्था से मुक्त करते समय उस वस्तु में कार्य करने की क्षमता हो। 

potential energy formula स्थितिज ऊर्जा ,सूत्र

  • जब एक कसे हुए धनुष से तीर को छोड़ा जाता है तो तीर दूर तक चला जाता है। जब हम तीर को चलाने के लिये हम धनुष को खींचते हैं तो हमारे द्वारा जितना कार्य धनुष खींचने में किया जाता है उसके तुल्य ऊर्जा ही कसी हुई अवस्था में कमान की स्थितिज ऊर्जा होगी। इसी कार्य के फलस्वरूप वस्तु में ऊर्जा स्थानांतरित हो जाती है जिसे स्थितिज ऊर्जा कहते है।


2. गुरूत्वीय क्षेत्र में स्थितिज ऊर्जा (potential energy in the gravitational field) 

जब किसी वस्तु को पृथ्वी की सतह से किसी ऊँचाई तक ऊपर उठाते है तो हमें गुरूत्वीय त्वरण के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है। वस्तु पर किया गया यह कार्य वस्तु की ऊर्जा में वृद्धि करता है। यह ऊर्जा वस्तु की स्थितिज ऊर्जा के रूप में उसमें निहित हो जाती है।
किसी वस्तु को पृथ्वी की सतह से सीधा ऊपर उठाने के लिए न्यूनतम आवश्यक बल (force) वस्तु के भार के बराबर होना चाहिये। यदि m द्रव्यमान की वस्तु को पृथ्वी की सतह से h ऊँचाई तक ऊपर उठाया जाए तो न्यूनतम बल वस्तु के भार (=mg) के बराबर होना चाहिए।
h ऊँचाई पर वस्तु की स्थितिज ऊर्जा =गुरूत्वीय बल के विरुद्ध किया गया कार्य 
स्थितिज ऊर्जा = बल X विस्थापन
                      = mgh




अतः m द्रव्यमान की वस्तु की पृथ्वी की सतह से h ऊँचाई पर स्थितिज ऊर्जा mgh होगी।
स्थितिज ऊर्जा का मान वस्तु की पृथ्वी से ऊँचाई (H) पर निर्भर करता है
लेकिन इस पर निर्भर नहीं करता है कि h ऊँचाई किस पथ (way) से तय की गई है। 


सरल लोलक की स्थितिज ऊर्जा (The Potential energy of simple pendulum) 

जब एक सरल लोलक को उसकी साम्यावस्था से एक ओर विस्थापित किया जाता है तो उसका गुरूत्वकेन्द्र ऊपर उठ जाता है। इस दौरान लोलक पर किया गया कार्य विस्थापित स्थिति में लोलक की स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है। 
लोलक को जब इस स्थिति चित्रानुसार बिन्दु L से छोड़ा जाता है तो वह साम्यावस्था चित्रानुसार बिन्दु M की ओर लौटता है इस दौरान उसकी स्थितिज ऊर्जा (potential energy) कम होती जाती है। माध्य स्थिति पर लोलक की स्थितिज ऊर्जा न्यूनतम होती है एवं गति के कारण उसकी गतिज ऊर्जा अधिकतम होती है।

इस गतिज ऊर्जा के कारण लोलक माध्य स्थिति से आगे दूसरी ओर जाने लगता है। इस दौरान उसकी गतिज ऊर्जा पुनः कम होने लगती है एवं स्थितिज ऊर्जा बढ़ने लगती है। बिन्दु N की ओर बढ़ते हुए लोलक की गति शून्य हो जाती है। यहाँ लोलक की गतिज ऊर्जा शून्य हो जाती है एवं स्थितिज ऊर्जा अधिकतम हो जाती है। इस अर्जित स्थितिज ऊर्जा (potential energy) के कारण लोलक पुनः माध्य स्थिति की ओर लौटने लगता है।
यदि गोलक का द्रव्यमान m हो एवं उसे कीलक से l लम्बाई के धागे से लटकाया गया हो तो x विस्थापन के लिए लोलक की स्थितिज ऊर्जा
यदि  k=mg/l
(चूँकि  m, g व l स्थिर है)

इसी प्रकार एक स्प्रिंग,जिसका नियतांक k है, को माध्य स्थिति से प्रतयास्थता सीमा के अन्दर x दूरी विस्थापित किया जाए तो उसमें निहित स्थितिज ऊर्जा का मान भी होता है।

3. विद्युत स्थितिज उर्जा (electrical Potential Energy)

आवेशित कण एक दुसरे को आकर्षित करते है।  आवेशों की  स्थिति के कारण उनमे एक ऊर्जा रहती है जिसे आवेशों की  विद्युत स्थितिज ऊर्जा कहते है।

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