Atoms and Molecules class 9 notes in Hindi

atoms and molecules class 9 notes

हमारे चारों ओर स्थित भिन्न-भिन्न वस्तुएँ जैसे— जल, हवा, नमक किताब, कम्प्यूटर, आदि सभी द्रव्य पदार्थ है। प्रत्येक वस्तु जो स्थान घेरती है, जिसमें द्रव्यमान होता है एवं जिसे पाँच ज्ञानेन्द्रियों द्वारा महसूस किया जा सकता हैं वह द्रव्य या पदार्थ कहलाता हैं। जब हम कहते है कि द्रव्य का द्रव्यमान होता हैं इसका अर्थ हैं कि इसका भार होता हैं एक वस्तु जितनी अधिक भारी होगी उतना ही अधिक उसका द्रव्यमान होगा। द्रव्य स्थान घेरता है इसका अर्थ है उसका आयतन होता हैं।प्राचीन भारतीय एवं ग्रीक दार्शनिक द्रव्य के अज्ञात एवं अदृश्य रूपों में सदैव चकित होते रहे। पदार्थ की अविभाज्यता के मत के बारे मे भारत में बहुत पहले, लगभग 500 ईसा पूर्व विचार व्यक्त किया गया था।

द्रव्य के गुण धर्म (Property of religion)

  1. द्रव्य के कणों के मध्य रिक्त स्थान होता हैं।
  2. हमारे आस-पास द्रव्य के कण निरंतर गतिशील रहते हैं।
  3. द्रव्य के कण एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं।

द्रव्य के प्रकार 

शुद्ध द्रव्य (Pure Matter)
अशुद्ध द्रव्य (Impure Matter)

द्रव्य में उपस्थित अवयवों के आधार पर इन्हें दो प्रकार में विभाजित किया गया हैं।

शुद्ध द्रव्य (Pure Matter)

ऐसे द्रव्य जिनमें एक ही प्रकार के घटक या अवयव होते हैं उन्हें शुद्ध द्रव्य कहते हैं।
जैसे — लोहा, सोना, जल, ऑक्सीजन आदि तत्व एवं यौगिक शुद्ध द्रव्य हैं।

अशुद्ध द्रव्य (Impure Matter)

ऐसे द्रव्य जिनमें एक से अधिक प्रकार के घटक या अवयव होते है, उन्हें अशुद्ध द्रव्य कहते हैं।
जैसे — शीतल पेय, मिट्टी, वायु  आदि। मिश्रण अशुद्ध द्रव्य हैं।

द्रव्य की अवस्थाएँ (States of Matter)

द्रव्य को भौतिक अवस्थाओं के आधार पर तीन अवस्थाओं में वर्गीकृत किया जा सकता हैं।
  1. ठोस (Solid)
  2. द्रव (Liquid)
  3. गैस (Gas)
  4. प्लाज्मा (Plasma)
  5. बोस  आइंस्टाइन कंडनसेट (BEC) भी शामिल हैं।
अब वैज्ञानिकों ने प्लाज्मा, बोस अवस्थाओं पर विचार कर रहे हैं 
जैसे — H2Oगैस अवस्था — भाप (Steam)
             H2O द्रव्य अवस्था — जल (Water)
           H2O ठोस अवस्था — बर्फ (Ice)

पदार्थ की अवस्थाओं के अभिलाक्षणिक गुण 

ठोस अवस्था (Solid State)

 हमारे चारों और असंख्य पदार्थ ठोस रूप में उपस्थित हैं। जैसे — लकड़ी का टुकड़ा, पत्थर, पेंसिल, पेन, कम्प्यूटर, नमक आदि।
  1. ठोस का आकार निश्चित होता हैं।
  2. ठोस पदार्थों का आयतन निश्चित होता हैं।
  3. ठोसो का घनत्व सबसे अधिक होता हैं।
  4. ठोस में सम्पीड्यता नगण्य होता हैं।
  5. ठोस के कणों के मध्य उच्च अंतराणुक आकर्षण बल पाया जाता हैं।
  6. ठोस के कणों में विसरण अत्यंत कम होता हैं। अर्थात अपनी जगह पर स्थित रहते हैं।

 द्रव अवस्था (Liquid  State)

जल, सरसों का तेल, मिट्टी का तेल, द्रव के उदाहरण हैं। द्रव का आयतन निश्चित होता हैं परंतु इनकी आकृति निश्चित नहीं होती हैं ये पात्र के अनुसार आकार ले लेता हैं। द्रव प्रवाह कर सकते हैं। द्रव को उडेला या फैलाया जा सकता हैं, द्रव के गुण ठोस और गैस के मध्यवर्ती होते हैं।

  1. द्रव का आकार अनिश्चित होता हैं।
  2. द्रव का आयतन निश्चित होता हैं।
  3. द्रवो का घनत्व गैस से अधिक परन्तु ठोस से कम होता हैं।
  4. द्रव में सम्पीड्यता बहुत कम होती हैं।
  5. द्रव के कणों के मध्य दुर्बल अंतराणुक आकर्षण बल पाया जाता हैं।
  6. द्रव के कणों में विसरण गैस से कम परन्तु ठोस से अधिक होता हैं।
  7. तरल की मात्रा तापमान व दबाव पर निर्भर करता हैं।

गैस अवस्था (Gas State)

हमारे आस-पास उपस्थित वायु गैस अवस्था का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं  ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, ऑर्गन, कार्बन डाई ऑक्साइड आदि।

  1. गैस का आकार अनिश्चित होता है ये पात्र के आकार के अनुसार आकार ले लेती हैं।
  2. गैस का आयतन अनिश्चित होता हैं ये पात्र के अनुसार आयतन ले लेती हैं।
  3. गैसों का घनत्व अत्यंत कम होता हैं।
  4. गैस में सम्पीड्यता अत्यधिक होती हैं।
  5. गैस के कणों के मध्य अंतराणुक आकर्षण बल नगण्य होता हैं।
  6. गैस के कणों में विसरण अत्यधिक होता है। अतः शीघ्रतापूर्वक सभी जगह फैल जाती हैं।
गैस के कणों के मध्य अत्यधिक दूरी होती हैं। अधिक दाब लगाकर एवं ताप कम करके इन्हें समीप लाया जा सकता है एव द्रवित (Liquify) किया जा सकता हैं। ईंधन के रूप में प्रयुक्त C.N.G.  का पुरा नाम संपीडित प्राकृतिक गैस हैं। L.P.G.  द्रवित पेट्रोलियम गैस है।

कणाद सिद्धांत (Kanad Theory)

प्राचीन भारतीय एवं ग्रीक दार्शनिक द्रव्य के अज्ञात एवं अदृश्य रूपों में सदैव चकित होते रहे। पदार्थ की अविभाज्यता के मत के बारे मे भारत में बहुत पहले, लगभग 500 ईसा पूर्व विचार व्यक्त किया गया था।
भारतीय दार्शनिक महर्षि कणाद ने प्रतिपादित किया था कि यदि हम द्रव्य को विभाजित करते जाए तो हमें छोटे-छोटे  कण प्राप्त होते जाएंगे और अतः में एक सीमा आएगी जब प्राप्त कण को पुनः विभाजित नहीं किया जा सकेगा अर्थात् वह सूक्ष्मतम कण अविभाज्य रहेगा। इस अविभाज्य सूक्ष्मतम कण को उन्होंने परमाणु कहा। एक अन्य भारतीय दार्शनिक पकुधा कात्यायाम ने इस मत को विस्तृत रूप से समझाया और कहा कि ये कण सामान्यतः संयुक्त रूप में पाए जाते हैं, जो हमें द्रव्यों के भिन्न रूपों (तत्व, यौगिक, मिश्रण) को प्रदान करते हैं।
लगभग इसी समय लगभग 460 से 370 ई. पू. ग्रीक दार्शनिक डेमोक्रिटस एव लियुलीपस ने सुझाव दिया था कि यदि हम द्रव्य को विभाजित करते जाए तो एक ऐसी स्थिति आएगी जब प्राप्त कण को पुनः विभाजित नहीं किया जा सकेगा। उन्होंने इन अविभाज्य कणों को परमाणु (अर्थात् अविभाज्य) कहा था।
उपरोक्त सभी दार्शनिक विचारों पर आधारित थे। सन् 1808 में जॉन डाल्टन ने परमाणु सिद्धांत प्रस्तुत किया तथा परमाणु की खोज का श्रेय इन्हें दिया गया।
डाल्टन ने द्रव्यों की विभाज्यता का विचार प्रदान किया जिसे उस समय पर दार्शनिकता माना जाता था ग्रीक दार्शनिकों के द्वारा द्रव्यों के सूक्ष्मतम अविभाज्य कण, जिसे परमाणु नाम दिया था, उसे डाल्टन परमाणु ने भी परमाणु नाम दिया। डाल्टन का यह सिद्धांत रासायनिक संयोजन के नियमों पर आधारित था डाल्टन के परमाणु सिद्धांत में द्रव्यमान के संरक्षण के नियम एवं निश्चित अनुपात के नियम की युक्तिसंगत व्याख्या की

परमाणु (Atom)

 Dalton के परमाणु सिद्धांत के अनुसार सभी द्रव्य चाहे तत्व, यौगिक या मिश्रण हो, सूक्ष्म कणों से बने होते हैं जिन्हें परमाणु कहते हैं। परमाणु अत्यंत ही सूक्ष्मतम कण होते हैं। इनका आकार लगभग 10 धात -10 m परास का होता हैं। अधिकांश तत्वों के परमाणु स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में नहीं रह पाते। परमाणु, अणु एवं आयन बनाते हैं। ये अणु अथवा आयन अत्यधिक संख्या में पुंजित होकर वह द्रव्य बनाते है, जिन्हें हम देख सकते है, अनुभव कर सकते है, अथवा छू सकते हैं।

अणु (Molecule )

अणु साधारणतया दो या दो से अधिक परमाणुओं का समूह है जो आपस में रासायनिक बंध द्वारा जुड़े होते हैं जिन्हें सामान्य भौतिक विधियों द्वारा पृथक नहीं किया जा सकता हैं।
अत: " किसी तत्व या यौगिक का सूक्ष्मतम कण जो स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में रह सकता हैं तथा उस यौगिक के सभी गुण धर्म को प्रदर्शित कर सकता हैं, अणु कहलाता हैं " जैसे — नमक का अणु, फॉस्फोरस का अणु आदि।

तत्व (Element)

एक ही प्रकार के परमाणु के समूह को तत्व कहते हैं। जैसे — सोना, चाँदी, गंधक आदि। अब तक ज्ञात 118 तत्व (element) ज्ञात हैं।
किसी तत्व का अणु एक परमाणु या एक से अधिक परमाणुओं से मिलकर बना होता है जैसे — ऑर्गन, हीलियम इत्यादि  अनेक तत्व के अणु उसी तत्व के केवल एक परमाणु द्वारा निर्मित होते हैं, जबकि ऑक्सीजन [O] दो प्रकार के अणु o2 व o3 होते हैं, जो क्रमशः ऑक्सीजन के दो परमाणु एव ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनते हैं। डाई ऑक्सीजन [Co2] तथा ओजोन [O3] को कहते हैं।
किसी अणु में उपस्थित तत्व के परमाणुओं की संख्या को उस तत्व की परमाणुकता कहते हैं। ओजोन में ऑक्सीजन की परमाणुकता 3 हैं।

यौगिक (Compound)

दो या दो से अधिक तत्वों के परमाणु एक निश्चित अनुपात में रासायनिक संयोग कर जो पदार्थ बनाते हैं उसे यौगिक (Compound) कहते हैं।
जैसे — नमक, जल, अमोनिया, सल्फयूरिक अम्ल आदि।
यौगिक का सूक्ष्मतम कण जो स्वतंत्र रह सकता हैं। एवं जिसमें यौगिक के सारे गुण विद्यमान हो उसे यौगिक का अणु कहते है।
 जैसे — जल, अणु सूत्र h2o , अमोनिया, अणु सूत्र Nh3 आदि।

मिश्रण (Mixure)

दो या दो से अधिक तत्वों एवं यौगिकों को अनिश्चित मात्रा मे मिलाने से बने पदार्थ को मिश्रण कहते हैं। इनमें अवयवों के मध्य कोई रासायनिक बंध नहीं होता हैं। अतः इन्हें आसान भौतिक विधियों द्वारा पृथक किया जा सकता हैं।
जैसे — वायु एक मिश्रण हैं जिसमें नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाई ऑक्साइड, जल आदि अवयव पाये जाते हैं।
मिश्रण को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता हैं।

  1. समांगी मिश्रण (Homogeneous mixture)
  2. विषमांगी मिश्रण (Heterogeneous mixture)

  1. समांगी मिश्रण (Homogeneous mixture) ऐसा मिश्रण जिनमें सभी अवयव एक ही अवस्था एव प्रावस्था में होते हैं उसे समांगी मिश्रण कहते हैं। जैसे — वायु, विलयन आदि।
  2. विषमांगी मिश्रण (Heterogeneous mixture) ऐसा मिश्रण जिनमें सभी अवयव भिन्न-भिन्न अवस्था एवं प्रावस्था में होते हैं। उसे विषमांगी मिश्रण कहते हैं। जैसे — दूध, बादल, धुआँ आदि।

भौतिक और रासायनिक परिवर्तन 

जब भी एक द्रव्य भौतिक एवं रासायनिक गुणों को बदलता हैं, तो यह परिवर्तन कहलाता हैं। जैसे — रंग, गंध, अवस्था, प्रकृति, अणु सूत्र आदि।
किसी भी प्रकार परिवर्तन होना एक क्रिया हैं।

ये परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं।

  1. भौतिक परिवर्तन (Physical change)
  2. रासायनिक परिवर्तन (Chemical change)

  1. भौतिक परिवर्तन (Physical change) ऐसे परिवर्तन जिनमें पदार्थ के रासायनिक गुण समान रहते हैं परंतु भौतिक गुणों में परिवर्तन हो जाता हैं, इन्हें भौतिक परिवर्तन कहते है। जैसे — कागज का फटना , बर्फ को गर्म करने पर जल प्राप्त होता हैं, इसमें अवस्था ठोस से द्रव हो जाती हैं परंतु रासायनिक दृष्टि से दोनों समान है 
  2. रासायनिक परिवर्तन (Chemical change) ऐसे परिवर्तन जिनमें पदार्थ के रासायनिक गुणों में परिवर्तन हो जाता हैं अर्थात् परिवर्तन के द्वारा नये रासायनिक पदार्थ का निर्माण होता हैं, इन्हें रासायनिक परिवर्तन कहते हैं जैसे — कागज का जलना, कार्बन [O] को ऑक्सीजन में जलाने पर कार्बन डाई ऑक्साइड [Co2] प्राप्त हुई। यहाँ कार्बन ठोस अवस्था में एव ऑक्सीजन [O] गैस अवस्था में हैं। प्राप्त कार्बन डाई ऑक्साइड गैस अवस्था में हैं।

द्रव्य की अवस्था परिवर्तन व प्रभाव Transformation and effect of matter

जब भी द्रव्य अवस्था में परिवर्तन होता हैं। तो मुख्यतः उनके कणों के मध्य की दूरी, कणों की ऊर्जा एवं कणों की स्थिति में परिवर्तन होता हैं।

  1. तापमान का प्रभाव (Effect of Temperature)
  2. दाब का प्रभाव (Effect of Pressure)

तापमान का प्रभाव (Effect of Temperature)

 ताप देने से कणों की गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है। ठोस को ताप देने पर कण अधिक तेजी से कंपन करने लगते हैं। ऊष्मा के द्वारा प्रदत्त की गई ऊर्जा कणों के बीच के आकर्षण बल को पार कर लेती है। इस कारण कण अपने नियत स्थान को छोड़कर अधिक स्वतंत्र होकर गति करने लगते हैं। एक अवस्था ऐसी आती हैं, जब ठोस पिघलकर द्रव बन जाता है
वह ताप जिस पर ठोस पिघलकर द्रव बन जाता हैं। उसे पदार्थ का गलनांक (Melting point) कहते हैं। बर्फ का गलनांक 273.16 K हैं।
गलने की प्रक्रिया यानि ठोस से द्रव अवस्था में परिवर्तिन को संगलन (Fusion) कहते हैं। 
"1 वायुमंडलीय दाब पर 1 किलोग्राम ठोस को उसके गलनांक पर द्रव में बदलने के लिए जितनी ऊष्मीय ऊर्जा की आवश्यकता होती हैं उसे संगलन की प्रसुत ऊष्मा या गुप्त ऊष्मा (एंथैलपी) कहते हैं " ।
द्रव को ताप देने पर कणों की गतिज ऊर्जा बढ़ने से गैस में बदलते हैं। वह ताप जिस पर द्रव, गैस में बदलता है उसे क्वाथनांक (Boiling point) कहते है।
1 वायुमंडलीय दाब पर 1 किलोग्राम द्रव को उसके क्वथनांक पर वाष्प में बदलने के लिए जितनी ऊष्मीय ऊर्जा की आवश्यकता होती हैं उसे वाष्पन की प्रसुप्त ऊष्मा या गुप्त ऊष्मा (एंथैल्पी) कहते हैं 

दाब का प्रभाव (Effect of Pressure)
दाब लगाने पर गैस के कण समीप आते हैं। इनके मध्य दूरी घटन पर गैस अवस्था द्रव में बदल जाती हैं परंतु अत्यधिक दाब लगाकर द्रव को ठोस नहीं बना सकते हैं क्योंकि द्रव में संपीड़यता अत्यंत कम होती हैं।

पदार्थों का शुद्धिकरण Purification of substances

प्रकृति में अधिकांश पदार्थ अशुद्ध रूप में ही पाये जाता है। अत: इनका शुद्धिकरण आवश्यक हैं। भिन्न-भिन्न पदार्थों की शुद्धिकरण की भिन्न-भिन्न विधियाँ हैं।

  1. निस्यंदन (Filtration)
  2. क्रिस्टलीकरण (Crystallisation)
  3. ऊर्ध्वपातन (Sublimation)
  4. विभेदी (Differential extraction)
  5. आसवन (Distillation)
  6. प्रभाजी आसवन (Fractional Distillation)


निस्यंदन (Filtration) 

  • एक विषमांगी मिश्रण मे से द्रव व ठोस को अलग करने की विधि निस्यंदन हैं
  • निस्यंदन में ठोस पदार्थ फिल्टर पेपर पर अवशेष के रूप में एकत्र किया जाता हैं। और द्रव निस्यंदन के रूप में प्राप्त होता हैं।
  • उदाहरण — रेतीले जल से जल को पृथक करना।

क्रिस्टलकरण (Crystallisation)

  • क्रिक्रिस्टलकरण एक संतृप्त विलयन से ठोस  क्रिस्टल के बनने की प्रक्रिया हैं।
  • ठोस को द्रव से अलग करने के लिए क्रिस्टलीकरण की विधि द्रव के वाष्पन से आरंभ होती हैं। 
  • क्रिस्टलीकरण में जब विलयन काफी सान्द्र हो जाता हैं  तो वाष्पन को रोक दिया जाता हैं। 
  •  प्राप्त सान्द्र विलयन को धीरे धीरे ठण्डा किया जाता हैं तो क्रिस्टल (crystal)  बनते हैं। जो निस्यंदन के द्वारा अलग किये जा सकते हैं। 
  • जैसे — चासनी में से शक्कर पृथक (isolate) करना, मिश्री बनाना  तथा पानी व विलयन से नमक के क्रिस्टल प्राप्त करना आदि।


ऊर्ध्वपातन (Sublimation)

  • कुछ ठोस पदार्थों को गर्म करने पर वे बिना द्रवित हुए सीधे वाष्प (vapor) में परिवर्तित हो जाते हैं।
  • वाष्प को ठण्डा करने पर बिना द्रव में बदले पुनः ठोस में बदल जाते हैं इस गुण को ऊर्ध्वपातन (Sublimation कहते हैं।
  •  नौसादर को गर्म करने पर नमक शेष रह जाता हैं एवं Nausadra वाष्पित हो जाता हैं। यही कीप पर ठण्डा होकर पुनः शुद्ध नौसादर ठोस रूप में बदल जाता हैं।
  • उदाहरण — नौसादर, आयोडीन, कपूर, नैफ्थलिन आदि


विभेदी निष्कर्षण (Differential extraction)

  • यह अभिश्रणीय द्रवों को पृथक (Isolated) करने कि विधि हैं। 
  • Mixture को पृथक्ककारी कीप में डालने पर दोनों द्रवों की भिन्न भिन्न परते प्राप्त होती हैं .स्टॉप कॉक खोलने पर पहले भारी द्रव एवं बाद में हल्का द्रव प्राप्त होता हैं।
  •  जैसे — तेल एवं जल

आसवन (Distillation)

  • जब द्रव में घुलनशील (Soluble) ठोस उपस्थित हो तो मिश्रण को उबालने पर द्रव वाष्पित हो जाता हैं। 
  • वाष्प को ठण्डा करने पर संघनन (condensation) के कारण शुद्ध द्रव प्राप्त होता हैं। इस प्रक्रिया को आसवन कहते हैं।
  • जैसे — जल का आसवन आदि।

प्रभाजी आसवन (Fractional Distillation)

  • दो द्रवों के क्वथनांकों में पर्याप्त अन्तर न होने की स्थिति में उन्हें साधारण आसवन Fractional द्वारा पृथक नहीं किया जा सकता। 
  • ऐसे द्रवों की वाष्प एक ही ताप परास में बन जाती हैं तथा साथ-साथ संघनित हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में प्रभाज आसवन की तकनीक का उपयोग किया जाता हैं।
  • मिश्रण (Mixture) को गर्म करने पर प्रत्येक द्रव उसके क्वथनांक पर वाष्पित होता हैं। इसकी वाष्प को प्रभाज स्तंभ से गुजारकर संघनित करने पर भिन्न-भिन्न द्रव प्राप्त होते हैं। 
  • पहले कम क्वथनांक (Boiling point) वाला तथा बाद में अधिक क्वथनांक वाला द्रव प्राप्त होता हैं।
  • उदाहरण — पेट्रोलियम के प्रभाजी आसवन से भिन्न-भिन्न अवयव जैसे पेट्रोल, डीजल, कैरोसिन, वैसलिन आदि पृथक किये जाते हैं

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