करण कारक संस्कृत : Karan Karak in Sanskrit
क्रिया की सिद्धि में जो सहायक होता है, उसे करण कहते हैं अर्थात् कर्त्ता जिसकी सहायता से अपना काम पूरा करता है, उसे करण कारक कहते हैं।
राम कलम से लिखता है (राम: लेखन्या लिखति)
यहां पर राम लेखनी से लेखन कार्य पूरा करता है अतः लेखनी करण कारक हुआ।
करण कारक के नियम और Karan Karak ke Udaharan
नियम 1 अनभिहितकर्त्ता : कर्म वाच्य मैं तथा करण कारक में तृतीय विभक्ति होती है
- राम ने बाण से बाली को मारा ( रामेण बाणेन हतो बालि)
नियम 2 प्रकृति ( स्वभाव) प्राय:, गोत्र, हम, विषय आदि शब्दों के साथ तथा इनके अर्थों को प्रकट करने वाले अन्य शब्दों में तृतीय विभक्ति होती है।
- वह सुख से जाता है। ( स: सुखेन गच्छति।)
- वह ऊंचे नीचे दौड़ता है। ( स: विषमेण धावति।)
- बाल सम प्रदेश में दौड़ता है। ( बालक: समेन धावति।)
- वह स्वभाव से सज्जन है। (स: प्रकृत्या साधु।)
नियम 3 अलम् तथा हीन शब्द के प्रयोग में तृतीय विभक्ति होती है
- हे राजन् तुम्हारा श्रम व्यर्थ है। ( अलं महीपाल तव श्रमेण।)
- अति विस्तार मत करो। ( अलं अतिविस्तेरण।) ध
- र्म से हीन पशु के समान है। ( धर्मेण हीन: पशुभि: समान:।)
नियम 4 जिस अंग के द्वारा शरीर में विकार उत्पन्न हो उस अंग में तृतीय विभक्ति होती है।
- वह आंख से काना है। ( स: नेत्रेण काण: अस्ति।)
- राम कानों से बहरा है। ( राम: कर्णाभ्यां बधिर: अस्ति।)
- अमित पैर से लंगड़ा है। ( अमित: पादेन खञ्ज: अस्ति।)
नियम 5 हेतु या हेतु बौद्धिक शब्दों में तृतीय विभक्ति होती है।
- डंडे से घड़ा है। ( दण्डेन घट:।)
- विनय से विद्या शोभित होती है। (विनयेनविद्याशोभते।)
- श्रम से धन मिलता है। ( श्रमेण धनं मिलति।)
- धन से कुल है। ( धनेश कुलम्।)
- पुण्य से सुख मिलता है। ( पुण्येन सुखं मिलति।)
नियम 6 तुला और उपमा को छोड़कर तुल्यता (समानता) अर्थ बताने वाले शब्दों के योग में तृतीय अथवा षष्ठी होती है।
- ज्ञान के समान पवित्र इस संसार में कुछ भी नहीं है। ( नहि ज्ञानेन सदृश: पवित्रं इह विद्यते।)
- राम के समान पृथ्वी पर राजा नहीं है। ( रामेण सदृश: न भुवि राजा।)
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