Karm karak in Sanskrit (कर्म कारक - को )
कर्त्ता क्रिया के द्वारा जिसको सबसे अधिक चाहता है, उसकी कर्म संज्ञा होती है। तथा कर्म में द्वितीय विभक्ति आती है। अर्थात् जिसके ऊपर क्रिया का फल या प्रभाव पड़ता है, उसे कर्म कारक कहते हैं।
उदाहरण
- राम गांव जाता है। (राम: ग्रामं गच्छति।)
- राम पुस्तक पढ़ता है। ( राम: पुस्तकं पठति।)
- बालक वेद पढ़ता है। (बालका: वेदं पठन्ति।)
कर्म कारक के नियम
नियम 1 अकर्मक धातु के पूर्व उपसर्ग लगने पर क्रिया सकर्मक हो जाती है और उसके प्रयोग में द्वितीय विभक्ति होती है
- प्रजा राजा का अनुसरण करती है (प्रजा: नृपं अनुवर्तन्ते।)
- बंदर वृक्ष पर चढ़ता है (कपि: वृक्षं आरोहति।)
नियम 2 अधिशीङ्स्थासां कर्म
अधि उपसर्ग पूर्वक शीङ् धातु (शेते) स्था धातु (तिष्ठति) और आस् धातु (आस्ते) के योग में आधार की कर्म संज्ञा होती है और कर्म मैं द्वितीय विभक्ति होती है
- हरि वैकुंठ में रहते हैं। (हरि: वैकुण्ठं अधिशेते।)
- वह बालक घर में ठहरता है। (स: बालक: गृहं अधितिष्ठति।)
- राज आश्वासन पर बैठता है। (राजा सिंहासनं अध्यास्ते।)
नियम 3 उभयत: (दोनों तरफ), सर्वत: (चारों तरफ), धिक् (धिक्कार), उपर्युपरि (ऊपर ऊपर), अधोऽध: (नीचे नीचे) अध्यधि इन शब्दों के योग में द्वितीय विभक्ति होती है
- कृष्ण के दोनों ओर गोपी है। (कृष्णं उभयत: गोपा: सन्ति।)
- राजेश के चारों ओर गोपिया है। (श्यामं सर्वत: गोपिका सन्ति:।)
- मूर्ख को धिक्कार है। ( मूर्खम् धिक्।)
- संसार के ऊपर हरि है। (लोकम् उपर्युपरि हरि:।)
- हरि लोग के नीचे है। (लोकम् अधोऽध: हरि।)
नियम 4 अमित: (दोनों ओर), परित (चारों ओर), समस्या – शिक्षा (समीप), हा ( अफसोस), प्रति (ओर) के योग में द्वितीय विभक्ति होती है।
- राजेश के दोनों ओर बालक हैं। ( रामन अभित: बालिका: सन्ति।)
- गांव के चारों ओर वृक्ष हैं। (ग्रामं प्रिय: वृक्षा: सन्ति:।)
- गांव के पास नदी बहती है। (ग्रामं समस्या नदी प्रवहति।)
- नास्तिक पर अफसोस हैं। ( हां नास्तिकं।)
- दोनों पर दया करो। ( दीनं प्रति ध्यान कुरु।)
नियम 5 उपान्वध्याङवस:
उप, अनु, अधि, आ उपसर्ग के पूर्व वस् धातु के योग में द्वितिया विभक्ति होती है।
- सुरेश जयपुर में रहता हैं। ( सुरेश: जयपुरम् अधिवसति।)
निम्न सोलह द्विकर्मक धातुओं के योग में द्वितिया विभक्ति होती है।
दुह् (दुह्ना )
- गाय से दूध दुहता है। ( गां दोग्धिपयम्)
याच् (मांगना)
- बलि से पृथ्वी मांगता है। ( बलिं याचते वसुधाम्।)
पंच् (पकाना)
- चावलों से बात पकाता है। (तण्डुलान् ओदनं पचति।)
दण्ड (दण्ड देना)
- राजेश पर सौ रुपये जुर्माना करता है। ( राजेशं शतं दण्डयति।)
रुध् (रोकना)
- व्रज मैं गाय को रोकता है। (व्रजम् अवरुणद्धिगाम्।)
प्रच्छ (पूछना)
- बालक से रास्ता पूछता है। ( माणवकं पन्थानं पृच्छति।)
ब्रू (बोलना)
- बालक से धर्म कहता है। (छात्रं धर्मं शास्ति।)
शास् (उपदेश करना)
- गुरु शिष्य को धर्म का उपदेश देता है। ( गुरु: शिष्यं धर्मं शास्ति।)
जि (जितना)
- राजेश से सौ रुपये जीतता है। ( देवदत्तं शतं जयति।)
- राजा शत्रु से राज्य को जीतता है। ( नृप: शत्रुं राज्यं जयति।)
नी (ले जाना)
- गांव में बकरी ले जाता है। (ग्राम अजां नयति।)
- वह बकरी को गांव ले जाता है। ( स: अजां ग्रामं नयति।)
हृ (हरण करना )
- कंजूस के धन का हरण करता है। ( कृपणं धनं हरति।)
वह् ( ढोना, ले जाना )
- वह गांव में बोझा ले जाता है। ( स: ग्रामं भार बहति।)
- किसान गांव में बौद्ध ले जाता है। ( कृषक: ग्रामं भारं वहति।)
कृष् (खींचना)
- किसान खेत में भैंस को खींचता है। ( कृषक: क्षेत्रं महिषीं कर्षति।)
मुष् ( चुराना)
- चोर देवदत्त का धन चुराता है। ( चौर: देवदत्त का धन चुराता है।)
नियम 6 कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे – कालवाचक और महाराज वाचक शब्द में अत्यंत सहयोग होने पर गम्यमान में द्वितीया विभक्ति प्रयुक्त होती है।
- मुकेश यहां लगातार पांच दिन से पढ़ रहा है। (मुकेश: अत्र पञ्चदिनानि पठति।)
- नितेश लगातार महीने भर से पड़ता है। (मोहन: मासम् अधीते।)
- नदी कोस भर तक लगातार टेढ़ी है। ( नदी क्रोशं कुटिला अस्ति।)
- राहुल लगातार एक योजन तक पढ़ता है। ( प्रदीप: योजनं: पठति।)
हिंदी में कारक
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