Sampradan Karak in Sanskrit - सम्प्रदान कारक (के) - चतुर्थी विभक्ति

संप्रदान कारक (Sampradan karak in Sanskrit)

जिस के उद्देश्य से कोई वस्तु दी जाती है उसे संप्रदान कहते हैं और संप्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति होती है
जैसे 
ब्राह्मण को गाय देता है। ( विप्राय गां ददाति)

संप्रदान कारक (Sampradan Karak) के नियम

नियम 1. रुच्यर्थानां प्रीयमाण: रुच् धातु अथवा रुच धातु के अर्थ की अन्य धातु के योग में प्रसन्न होने वाले में चतुर्थी विभक्ति होती है।
संप्रदान कारक के उदाहरण संस्कृत में
  • बालक को लड्डू अच्छे लगते हैं। ( बालकाय मोदका: रोचन्ते।)
  • भगवान को भक्ति अच्छी लगती है। (हरये रोचते भक्ति:।)
  • भक्त को रामायण अच्छी लगती हैं। ( भक्ताय रामायणं रोचते।)
  • बालक को खेलना अच्छा लगता है। ( बालकाय क्रीडनं रोचते।)
  • गणेश को दूध पसंद है। ( गणेशाय दुग्धं स्वदते।)
नियम 2. क्रुधद्रुहेर्ष्यासूयार्थानां यं प्रति कोप: - क्रुध (क्रोध करना ) द्रुह् (द्रोह करना) ईर्ष्य (ईर्ष्या करना) असूय् ( जलन करना ) इन धातु के तथा इन धातु अर्थ की अन्य धातुओं के योग में जिसके प्रति क्रोध, द्रोह, ईर्ष्या या असूया की जाती है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है।
संप्रदान कारक के उदाहरण संस्कृत में
  • पिता पुत्र से क्रोध करता है। (पिता पुत्राय क्रुध्यति। )
  • दुर्जन सज्जन से द्रोह करता है। ( दुर्जन: सज्जनाय ईर्ष्यति।)
  • वह माता से ईर्ष्या करती है। ( सा मात्रे ईर्ष्यति)
  • गंगा यमुना से जलती है। ( गंगा यमुनायै असूयति।)
  • राजेश, महेश की निंदा करता है। ( राजेश: महेशाय असूयति।)
नियम 3. नम: स्वस्तिस्वाहास्वधालंवषड्योगाच्च - नम:, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम, वषट् के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।
  • हरी को नमस्कार है। ( हरये नमः।)
  • राम को नमस्कार। ( रामाय नम:)
  • गणेश का कल्याण हो। ( गणेशाय स्वस्ति।)
  • प्रजाओं का कल्याण हो। ( प्रजाभ्य: स्वस्ति भूयात्।)
  • अग्नि के लिए आहुति ( अग्नये स्वाहा।)
  • पितरों के लिए हवि। ( पितृभ्य: स्वधा।)
  • इन्द्र के लिए हवि। ( इन्द्रायवषट्)
नोट: - अलम के भूषण आदि अनेक अर्थ होते हैं किंतु जहां पर अलम् का पर्याप्त अर्थ ग्रहण होता है तथा उसके वाचक समर्थ प्रभु आदि शब्दों के युग में चतुर्थी विभक्ति होती है।
  • दैत्यों के लिए पर्याप्त हैं। (दैत्येभ्य: हरि: अलम्।)
  • यह पहलवान इस पहलवान के लिए पर्याप्त है। ( अलं मल्लोमल्लाय।)
  • हरि दैत्यों के लिए समर्थ है। ( हरि: दैत्येभ्य: समर्थ: प्रभु:।)
नियम 4. तादर्थ्ये चतुर्थी वाच्या - जिस प्रयोजन के लिए कोई कार्य किया जाये, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है।
  • मोक्ष के लिए हरि को भजता है। (मुक्तये हरिं भजति।)
  • काव्य यश के लिए होता है। ( काव्यं यशसे भवति।)
  • तपस्या के लिए पार्वती तपोवन में गई। ( तपसे पार्वती तपोवनं गतवती।)
नियम 5. प्रणाम करना, आशीर्वाद तथा स्वागत करने में ( स्वागतम् कुशलम्) आदि शब्दों के अर्थ में चतुर्थी और द्वितीय विभक्ति होती है।
  • गुरु को प्रणाम करके वह गया। ( गुरवे प्रणम्य स: गत:।)
  • उसे प्रणाम करके। (तस्मै प्रणिपत्य।)
  • तुम्हारा कल्याण हो। ( कुशलं ते भूयात्।)
  • देवी का स्वागत। ( स्वागतं देव्यै।)
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