योजना या प्रोजेक्ट विधि (Project Method)
यह विधि इस सिद्धांत पर आधारित है कि विद्यार्थी, आपसी संबंध सहयोग एवं क्रिया द्वारा सकते हैं। यह विधि शिक्षा दर्शन की एक प्रमुख विचारधारा जॉन ड्यूबी (John Dewey) के प्रयोजनवाद पर आधारित है।
शिक्षण की परियोजना विधि (project method of teaching)
इस विधि के जन्मदाता डब्ल्यू.
एस. किलपैट्रिक द्वारा सन् 1918 में प्रतिपादित की गई थी।
परियोजना/ योजना विधि कि परिभाषा
डब्लू. एस. किलपेट्रिक “परियोजना
एक सहृदय,
सोद्देश्य कार्य विधि है जो
पूर्णतः मन लगाकर, लगन के साथ सामाजिक वातावरण
में पूर्ण की जाती है।“
योजना विधि के आधारभूत सिद्धांत (Basic principles of planning method)
- वास्तविकता का
सिद्धांत - इस विधि में जो कार्य
विद्यार्थी करते हैं वह वास्तविक परिस्थितियों में स्वाभाविक रूप से किए जाते हैं।
- अनुभव का
सिद्धांत - विधार्थी अनुभव द्वारा
ज्ञान प्राप्त करते हैं। अतः प्राप्त ज्ञान स्पष्ट व स्थाई होता है
- स्वतंत्रता का सिद्धांत
- इस विधि में विद्यार्थियों को क्रियाओं को
चुनने की स्वतंत्रता होती है अतः वे रुचि व उत्साह से कार्य करते हैं।
- क्रियाशीलता का सिद्धांत - इस विधि में सिद्धांत की अपेक्षा व्यवहार पर अधिक ध्यान दिया जाता है अतः वे
मानसिक एवं शारीरिक दोनों प्रकार से सक्रिय रहते हैं।
- उद्देश्य का सिद्धांत - विद्यार्थियों के सम्मुख कार्य से संबंधित स्पष्ट
लक्ष्य होने के कारण वे सोद्देश्य कार्य करते हैं और दिशा भ्रमित नहीं होते हैं
इससे समय वह शक्ति का अपव्यय नहीं होता ।
- उपयोगिता का सिद्धांत – व्यवहारिक उपयोगी होने के कारण विद्यार्थी और उच्च पूर्वक कार्य करते हैं और एक दूसरे के साथ सहयोग की भावना से कार्य करते हैं जिससे उनमें सामाजिकता की भावना का विकास होता है।
परियोजना विधि सोपान (Project method stair)
1.
परिस्थिति उत्पन्न करना - विद्यार्थियों के सामने एक समस्या प्रस्तुत की जाती है।
2.
परियोजना का चुनाव - शिक्षक की सहायता से विद्यार्थी कई प्रकार
की समस्याओं पर विचार करते हैं। समस्या चयन के लिए शिक्षक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष
रूप से विद्यार्थियों को सहयोग करते हैं योजना का चयन विद्यार्थियों की रुचि एवं
क्षमता के आधार पर करना चाहिए इसके पश्चात उद्देश्यों को स्पष्ट किया जाना चाहिए
जिसमें विद्यार्थी अपनी कार्ययोजना भली-भांति बना सकें।
3.
परियोजना का नियोजन / कार्यक्रम बनाना - परियोजना
कार्य आरंभ करने के पूर्व शिक्षक को चर्चा के माध्यम से परियोजना के विभिन्न
पक्षों से संबंधित तथ्य सिद्धांतों अनुभवों को पाठ्यवस्तु के संदर्भ में स्पष्ट
करना होता है ताकि उसी आधार पर दायित्वों का विभाजन किया जा सके।
4.
क्रियान्वयन - परियोजना के क्रियान्वयन की सफलता के लिए
प्रत्येक छात्र की योग्यता, प्रकृति रुचि एवं क्षमता के
अनुसार उसे दायित्व दिया जाना चाहिए।
5.
परियोजना का मूल्यांकन / कार्य का मूल्यांकन –
परियोजना के मूल्यांकन के दौरान शिक्षक को प्रत्येक पहलू पर ध्यान
रखना चाहिए ताकि वह समय-समय पर विद्यार्थियों को मार्गदर्शन देते रहें हर सोपान पर
विद्यार्थी के कार्यों का मूल्यांकन भी किया जाना आवश्यक है ताकि किसी त्रुटि को
समय रहते सुधारा जा सके विद्यार्थियों को भी अपने कार्य की समालोचना करते रहना
चाहिए ताकि वे संयम मूल्यांकन द्वारा असफलताओं के कारण वह गलतियां को जानते रहें।
6. अभिलेखीकरण / समस्त कार्यों की रिपोर्ट तैयार करना – विद्यार्थियों को सौपे गए दायित्व के अनुसार प्रत्येक विद्यार्थी को अपने द्वारा किए गए कार्य का लिखित विवरण रखना होता है संपूर्ण विवरण का शिक्षक द्वारा मूल्यांकन किया जाता है
परियोजना विधि के प्रकार (Type of project method)
प्रायः योजना दो प्रकार की होती है।
- व्यक्तिगत योजना
- सामूहिक योजना
परियोजना विधि का वर्गीकरण (Classification of project method)
किलपैट्रिक के अनुसार चार वर्गों में विभाजित
किया गया है।
- रचनात्मक या उत्पादनात्मक प्रायोजना
- उपभोगात्मक या कलात्मक
- समस्यात्मक प्रायोजना
- कौशलात्मक या अभ्यासात्मक
परियोजना विधि के गुण (Properties of the project method)
- यह मनोवैज्ञानिक विधि है।
- पूरे समय छात्र सक्रिय रहते हैं। छात्रों को स्वतंत्रता का वातावरण मिलता है, क्योंकि
छात्र स्वतंत्र होकर अपनी जिम्मेदारी पूरी करते हैं।
- इस विधि द्वारा अधिगम का स्थायीकरण होता है।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास हेतु उपयुक्त विधि है।
- विद्यार्थियों ने कार्य करने में आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
- सामाजिकता की भावना का विकास होता है।
- बालक करके सीखता है।
- छात्र में प्रयोग करने की क्षमता का विकास होता है।
- पर्यावरण संबंधी ज्ञान में वृद्धि होती है।
परियोजना विधि के दोष (Project method faults)
- यह अधिक खर्चीली विधि है।
- इस विधि में समय अधिक लगता है।
- अधिक संसाधनों की आवश्यकता होती है।
- इस विधि द्वारा गहन अध्ययन संभव नहीं है।
- व्यवहारिक न होने के कारण है विधि अधिक प्रचलन में नहीं है।
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