संबंध कारक ( षष्ठी विभक्ति )
एक संज्ञा शब्द का अर्थ दूसरे संज्ञा से संबंध दिखाने के लिए षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है।
संबंध कारक के नियम
नियम 1. स्वामिभाव, जन्य, जनकभाव, अवयव – अवयविभाव आदि के योग में षष्ठी विभक्ति लगती है।
- राजा का पुरुष। ( राज्ञ: पुरुष:।)
- पिता का पुत्र। ( पितु: पुत्र:।)
- पशु का पैर। ( हिरण्यस्य पात्रम्।)
नियम 2. उपरि, अध:, पुर:, पश्चात्, दूर, अन्तिम, कृते, समक्षम्, योग्य, उचित आदि शब्दों के योग में षष्ठी विभक्ति होती है।
- वृक्षों के नीचे। ( तरुणाम् अध:।)
- बालक पिता के सामने है। (बालक: पितु: पुर: तिष्ठति।)
- राजा के सामने निवेदन किया। ( राज्ञ: समक्षं न्यवेदयत्।)
- यह आपके योग्य नहीं है। ( एतत् भवत: योग्यं नास्ति।)
नियम 3. हेतु तथा हेतुवाचक शब्दों के प्रयोग में षष्ठी विभक्ति होती है।
- अन्न के हेतु रहता है। ( अन्नस्य हेतोर्वसति।)
- थोड़े के लिए बहुत कुछ त्यागते हुए( अन्नस्य हेतोर्बहुहातुमिच्छन्।)
नियम 4. अनादर अर्थ में षष्ठी विभक्ति होती है। अर्थात अनादर प्रकट होने पर षष्ठी होती है।
- रोते हुए पुत्र की माता को वन गई। ( रुदत: पुत्रस्य माता वनं गत:।)
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