सुक्ष्म शिक्षण विधि (Micro teaching method)
सूक्ष्म शिक्षण वह विधि है जिसका कार्य विशिष्ट उद्देश्यों के आधार पर छात्राध्यापक के व्यवहार में परिवर्तन लाना है। इसका विकास स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी में सन् 1961 ई. में एचीसन, ब्रुश तथा एलन ने सर्वप्रथम किया।
सूक्ष्म शिक्षण व्यवहार परिवर्तन की एक महत्वपूर्ण विधि है। मूल रूप में यह एक छोटे पैमाने पर शिक्षण अनुभव है क्योंकि इसमें कक्षा में छोटे आकार को पढ़ाया जाता है। इसमें समय, प्रकरण व कौशल का रूप भी छोटा कर दिया जाता है। इसके प्रयोग से शिक्षक को नए कौशल सीखने तथा पुराने कौशल सुधारने में सहायता मिलती है। यह छात्राध्यापकों के लिए विशेष उपयोगी है।
सूक्ष्म शिक्षण विधि के जनक
सूक्ष्म शिक्षण का प्रयोग सर्वप्रथम अमेरिका के स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में सन् 1961 में एचीसन ने किया। इन्होंने वीडियो टेप का प्रयोग शिक्षण-प्रशिक्षण कार्य में किया। 1963 ई. में एलेन ने सूक्ष्म शिक्षण उपागम का नाम दिया। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से सूक्ष्म शिक्षण विधि बी. एफ . स्कीनर मनोवैज्ञानिक अधिगम सिद्धांत पर आधारित है।
सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ
माइक्रो अथवा सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ है लघु कक्षा, लघु पाठ अवधि तथा पाठ्य सामग्री से शिक्षण। एक ऐसी शिक्षक शिक्षण विधि है जो कक्षा अध्यापन की जटिलता और विस्तार को घटाकर उन्हें लघु रूप देती है।
सूक्ष्म शिक्षण चक्र (Micro Teaching Cycle)
सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया तब तक चलती रहती है। जब तक छात्राध्यापक शिक्षण कौशल विशेष में दक्षता न प्राप्त कर ले। शिक्षण, पृष्ठ- पोषण , पुनः पाठ नियोजन, पुनः शिक्षण तथा पुनः पृष्ठ पोषण के पांच पद क्रमों को मिलाकर एक चक्र बन जाता है जो तब तक चलता रहता है जब तक कौशल पर पुर्ण अधिकार न प्राप्त हो जाए। यही सूक्ष्म शिक्षण चक्र कहलाता है।
सूक्ष्म शिक्षण का स्वरूप सूक्ष्म शिक्षण एक ऐसी विधि है जिसमें शिक्षण एक छोटा सा शिक्षण बिंदु लगभग 5 से 10 छात्रों के समूह को एक छोटे से 5 से 10 मिनट के कालांश में पढ़ाता है। सूक्ष्म शिक्षण एक ऐसी प्रविधि है जो प्रशिक्षणार्थी को पाठ की समाप्ति के तुरंत बाद उसके कार्य की प्रगति के बारे में ज्ञान कर देता है
सूक्ष्म शिक्षण विधि की परिभाषा
एलन – “ सूक्ष्म शिक्षण समस्त शिक्षण की लघु क्रियाओं में बांटता है।“
प्रो. बी. के. पासी “सूक्ष्म शिक्षण एक प्रशिक्षण विधि है जिसमें छात्राध्यापक किसी एक शिक्षण कौशल का प्रयोग करते हुए थोड़ी अवधि के लिए छोटे छात्र समूह को कोई एक संपत्ति पढ़ाता है”
सूक्ष्म शिक्षण विधि सोपान
- विशिष्ट कौशलों का चयन
- कौशल का प्रदर्शन
- लघु पाठ योजनाओं का निर्माण
- छोटे समूह का शिक्षण
- पृष्ठपोषण या प्रतिपृष्टि
- पुनः नियोजन, पुनः शिक्षण और पुनः मूल्यांकन
सूक्ष्म शिक्षण के लाभ (Advantages of Micro Teaching)
- सूक्ष्म शिक्षण से शिक्षण प्रक्रिया सरल होती है।
- छात्राध्यापक क्रमशः अपनी योग्यता अनुसार शिक्षण - कौशलौ पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हुए उन्हें विकसित करता है और सीखने का प्रयत्न करता है।
- छात्राध्याक का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन किया जाता है।
- कक्षा शिक्षण की जटिलता अर्थात सरल एवं भय को कम करता है।
- सूक्ष्म शिक्षण के दौरान छात्रों की संख्या 5 से 10 होती है अतः कक्षा में अनुशासन बना रहता है।
- सूक्ष्म शिक्षण में अधिक स्पष्ट एवं तथ्यात्मक सरल का समावेश होता है।
सूक्ष्म – शिक्षण के दोष
- सूक्ष्म शिक्षण की मुख्य कमी इसके लिए प्रक्षिशित प्रशिक्षकों का अभाव है।
- सहयोगी साथियों की कक्षा कक्ष शिक्षण के लिए वास्तविक परिस्थिति प्रदान नहीं कर सकती हैं।
प्रयोगशाला विधि (Laboratory Method)
Please do not enter any spam link in the comments box.