प्रकाश का अपवर्तन, परिभाषा और उदाहरण - Refraction of light laws

प्रकाश का अपवर्तन (Refraction of light)

जब प्रकाश की किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करती है तो यह अपने पथ से विचलित हो जाती है। इस घटना को प्रकाश का अपवर्तन कहते है

प्रकाश किसी पारदर्शी माध्यम में सरल रेखा में गमन करता प्रतीत होता है। जब हम यह किसी पारदर्शी माध्यम (जैसे वायु) में सरल रेखा में गमन करता हुआ किसी अपारदर्शी  वस्तु से टकराता है तो आगे नहीं जा पाता है तथा उस वस्तु के पीछे उसकी छाया बनती है। इसी प्रकार प्रकाश जब किसी पारदर्शी माध्यम में सरल रेखा में गमन करता हुआ किसी चमकदार अपारदर्शी वस्तु (जैसे दर्पण ) से टकराता है तो पुनः उसी माध्यम में लौट जाता है। किन्तु प्रकाश जब एक पारदर्शी माध्यम से दूसरे पारदर्शी माध्यम में प्रवेश करता है तो क्या होता है ? तब भी क्या यह सरल रेखा में गमन करता है या इसकी दिशा बदल जाती है ? 
आपने दैनिक जीवन के अनुभवों में देखा होगा कि पानी से भरे किसी पात्र अथवा तालाब या कुएँ का पैदा ऊपर उठा हुआ प्रतीत होता है। इसी प्रकार, जब कोई काँच का मोटा स्लैब (सिल्ली ) को किसी पुस्तक या अखबार के अक्षरों पर रख कर ऊपर से देखने पर अक्षर उठे हुए प्रतीत होते है।

प्रकाश की अपवर्तन व्याख्या सहित विधि 

सफेद कागज की एक शीट को ड्राइंग पिनो की सहायता से लगाइए। शीट के ऊपर बीच में काँच की एक आयताकार सिल्ली रखिए। काँच की सिल्ली के परिमाप या रूपरेखा को पेंसिल की सहायता से बनाइए। इस परिमाप का नामांकन ABCD कर दीजिए। सिल्ली को वहाँ से हटा दीजिए तथा बिंदु O पर एक अभिलम्ब MON खींचिए तथा चाँदे की सहायता से अभिलम्ब के साथ एक आपतन कोण I (30°) पर एक रेखा EF खींचिए। इस रेखा के बिंदु E व F पर दो ऑलपिन को ऊर्ध्वाधर गाड़िए। (चित्रानुसार )
प्रकाश का अपवर्तन - Refraction of light laws
अब काँच की सिल्ली को पुनः अपने स्थान पर परिमाण ABCD में रखिए और सिल्ली के विपरीत फलक से पिनों E व F के प्रतिबिंबों को देखिए। प्रतिबिंबों को देखते हुए पिन G को इस प्रकार लगाइए कि यह पिन तथा E व F पिनों के प्रतिबिंबों एक सीध रेखा पर स्थित हो। एक और ऑलपिन लेकर इस प्रकार लगाइए कि  पिन H व G तथा E व F पिनों के प्रतिबिंबों एक ही सीध में नजर आएँ। पिनों तथा सिल्ली को हटा दीजिए। जिस स्थान पर पिन G व H लगाई गई थी, उन पर चिह्न अंकित करके रेखा GH खींचिए। इसे O' बिंदु तक मिला दीजिए। O' पर पृष्ठ CD के अभिलम्ब O'N' खींचिए। इसके पश्चात आप O तथा O'को मिलाइए। EF को भी आगे बढ़ा दीजिए, जिसे चित्र में बिंदुकित रेखा से दिखाया गया है।
आप देखते है कि रेखा EF के अनुदिश वायु में चलती हुई प्रकाश किरण काँच की सिल्ली के पृष्ठ से टकरा कर काँच में प्रवेश करती है। बिंदु O पर प्रकाश किरण EF वायु (विरल माध्यम ) से काँच (सघन माध्यम ) में प्रवेश करने पर अभिलम्ब की ओर झुक जाती है।
इसी प्रकार पृष्ठ CD के बिंदु O' पर जब प्रकाश किरण काँच (सघन माध्यम ) से बाहर निकल कर वायु (विरल माध्यम ) में जाती है तो यह अभिलम्ब से दूर हट जाती है।
यह अपवर्तन भी कुछ नियमों के तहत होता है। कि अपवर्तन के दौरान आपतित किरण, अपवर्तित किरण एवं अभिलम्ब तीनों ही एक तल में हैं। प्रथम नियम हैं।
अपवर्तन में आपतन कोण I की ज्या एवं अपवर्तन कोण r की ज्या का अनुपात स्थिर रहता हैं।


यह अपवर्तन का दूसरा नियम हैं।जिसे स्नेल का नियम कहते हैं।


नोट —
  1. जब प्रकाश किरण, विरल माध्यम से सघन माध्यम में प्रवेश करती है तो अभिलम्ब की ओर झुक जाती है।
  2. जब प्रकाश किरण,सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करती है तो यह अभिलम्ब से दूर हट जाती है।



प्रकाश अपवर्तन की परिभाषा :-

 जब प्रकाश की किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करती है तो यह अपने पथ से विचलित हो जाती है। इस घटना को प्रकाश का अपवर्तन कहते है।

अपवर्तन क्यों होता है ? 

सघन माध्यम ( काँच ) में प्रकाश की चाल विरल माध्यम ( वायु ) की तुलना में कम होती है। अतः स्पष्ट है कि प्रकाश जब विरल माध्यम (वायु) से सघन माध्यम (काँच) में जाता है तो उसकी चाल घट जाती है। इसके विपरीत जब प्रकाश सघन माध्यम (काँच)से विरल माध्यम (वायु) में जाता है तो उसकी चाल बढ़ जाती है। प्रकाश के एक पारदर्शी माध्यम से दूसरे में प्रवेश करने पर प्रकाश की चाल में परिवर्तन के कारण अपवर्तन की घटना होती है।

अपवर्तनांक:-

अपवर्तनांक दिए गए दो माध्यमों में प्रकाश के वेगों का अनुपात होता है। यदि प्रकाश निर्वात से किसी माध्यम में करता है तो उस माध्यम के निर्वात के सापेक्ष अपवर्तनांक को निरपेक्ष अपवर्तनांक कहते है  इसी प्रकार किसी माध्यम के हवा के सापेक्ष अपवर्तनांक को 'प्रकाश के हवा में वेग' एवं 'प्रकाश के उस माध्यम में वेग' के अनुपात से भी दर्शाया जाता हैं।यह नियतांक है
तथा मात्रक रहित है।


अपवर्तनांक माध्यम की प्रकृति,घनत्व एवं प्रकाश के रंग (तरंगदैर्ध्य) पर भी निर्भर करता हैं। 
बैगनी रंग के प्रकाश के लिये अपवर्तनांक सबसे अधिक होता हैं। व लाल रंग के प्रकाश के लिये अपवर्तनांक सबसे कम होता हैं।

विभिन्न माध्यमों का अपवर्तनांक मान 


विभिन्न माध्यमों का अपवर्तनांक मान

अपवर्तन पर आधारित घटनाएँ 

1. पानी से भरे पात्र का पैदा ऊपर उठा हुआ दिखाई देना

पानी से भरी एक बाल्टी के पैंदे में एक सिक्का रखिए। अपनी आँख को पानी के ऊपर एक साइड में रख कर सिक्के को एक ही बार में उठाने का प्रयास कीजिए। क्या आप सिक्का उठाने में सफल हो पाते हैं ? इस प्रक्रिया को दोहराइए। आप इसे एक बार में करने में सफल क्यों नहीं हो पाए थे? अपने मित्रों से यह गतिविधि करने के लिए कहिए । उनके अनुभवों की स्वयं के अनुभव से तुलना कीजिए।
स्टील या प्लास्टिक का पात्र जैसे एक गिलास या भगोना लेकर उसके तल में एक सिक्का रख दीजिए। इस पात्र में स्थित सिक्के को देखते हुए धीरे-धीरे उसके तब तक दूर जाइए, जब तक कि सिक्का दिखाई देना बंद न हो जाए। अब अपने मित्र को उस पात्र में धीरे - धीरे  सावधानीपूर्वक पानी डालने को कहिए ध्यान रहे कि सिक्का अपने स्थान से हिलना नहीं चाहिए। क्या अब आपको सिक्का पुनः दिखाई देने लगता हैं? आपने अपनी स्थिति परिवर्तित नहीं की है, फिर भी सिक्का दिखाई देना कैसे संभव हुआ  ? यह प्रकाश के अपवर्तन के कारण होता है। 
बीकर का पात्र पानी से भरे हुए में एक सिक्के को डालते है सिक्के से चलने वाली प्रकाश की किरण जब पानी (सघन माध्यम) से वायु (विरल माध्यम) में जाती है तो पानी के पृष्ठ पर अभिलम्ब से दूर हो जाती है और जब यह अपवर्तित प्रकाश की किरण हमारी आँख तक पहुँचती है तो सिक्का ऊपर उठा हुआ दिखाई देता है।
इसी प्रकार पानी से भरे किसी पात्र, तालाब,तरणताल या कुएँ का पैदा ऊपर उठा हुई प्रतीत होता है।
मेज पर रखें एक सफेद कागज की शीट पर एक मोटी सीधी रेखा खींचिए। इस रेखा के ऊपर काँच की एक सिल्ली इस प्रकार रखिए कि इसकी एक कोर इस रेखा से कोई कोण बनाए। सिल्ली के नीचे आए रेखा के भाग को साइड से देखिए। आप क्या देखते है ? क्या काँच की सिल्ली के नीचे की रेखा कोरों (Edges) के पास मुड़ी हुई प्रतीत होती हैं  ? अब काँच की सिल्ली को इस प्रकार रखिए कि यह रेखा के लंबवत हो। अब आप क्या देखते हैं  ? क्या काँच की सिल्ली के नीचे रेखा का भाग मुड़ा हुआ प्रतीत होता हैं?

2. तारे टिमटिमाते हुए प्रतीत होना 

वायुमण्डल की परतो का घनत्व भिन्न- भिन्न होने से उनका अपवर्तनांक भिन्न-भिन्न  होता है, जिससे तारों से आने वाला प्रकाश वायुमण्डल की विभिन्न परतो से गुजरने के कारण अपने पथ से विचलित होता रहता है, इसी कारण तारे टिमटिमाते हुए नजर आते है।

3. पानी में रखी पेंसिल का टेढा दिखाई देना 

काँच का एक गिलास लीजिए। इसे पानी से भरकर इसमें एक पेंसिल इस प्रकार रखिए कि पेंसिल आंशिक रूप से पानी में डूबी रहे। यह वायु तथा पानी के अंतरापृष्ठ पर (अर्थात् पानी की सतह पर) टेढ़ी प्रतीत होती है। एेसा भी प्रकाश के अपवर्तन के कारण होता है। पेंसिल के डूबे हुए भाग से चलने वाली प्रकाश किरणें पानी से बाहर आते समय अभिलम्ब से दूर हटती है, इस कारण पानी में रखी पेंसिल टेढ़ी दिखाई देती
 है।

4. पानी में रखी लकड़ी का टेढा दिखाई देना 

बीकर का पात्र पानी से भरे हुए में एक लकड़ी को डालते है लकड़ी से चलने वाली प्रकाश की किरण जब पानी (सघन माध्यम) से वायु (विरल माध्यम) में जाती है तो पानी के पृष्ठ पर अभिलम्ब से दूर हो जाती है और जब यह अपवर्तित प्रकाश की किरण हमारी आँख तक पहुँचती है। इसी कारण लकड़ी टेडी दिखाई देती है।

पानी में रखी लकड़ी का टेढा दिखाई देना


अपवर्तन के उदाहरण 

1. सूर्योदय से कुछ समय पहले एवं सूर्यास्त से कुछ समय पश्चात तक सूर्य दिखाई देना 

सूर्योदय से पहले व सूर्यास्त के पश्चात सूर्य का दिखाई देना 
प्रातः सूर्योदय के समय सूर्य से आने वाले प्रकाश की किरणें वायुमण्डल की विभिन्न परतों से अपवर्तित होकर हमारी आँख तक पहुँचती है, जिससे ये हमें क्षितिज के ऊपर से आती हुई प्रतीत होती है और सूर्य ऊपर उठा दिखाई देता है। इस कारण वास्तविक सूर्योदय के पूर्व लगभग दो मिनट पूर्व ही सूर्य दिखाई देने लगता है 
सूर्योदय से कुछ समय पहले एवं सूर्यास्त से कुछ समय पश्चात तक सूर्य दिखाई देना

इसी तरह सूर्यास्त के समय सूर्य अस्त होने के 2 मिनट पश्चात तक भी आकाश में सूर्य दिखाई देता है। इस प्रकार दिन की लंबाई लगभग 4 मिनट बढ़ जाती है।

2. पूर्व आन्तरिक परावर्तन (Total internal reflection)

जब प्रकाश किरणें सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती हैं। तो वे अपवर्तन के पश्चात अभिलम्ब से दूर होती जाती है (r>I) यदि किरणों के आपतन कोण I को बढ़ाते जाए तो आपतन कोण के एक विशिष्ट मान, जिसे उस माध्यम का क्रान्तिक कोण भी कहा जाता है,पर अपवर्तित किरण दोनों माध्यमों के पृथक्ककारी पृष्ठ के समांतर से गुजरती है। इस अवस्था में अपवर्तन कोण  r = 90° होता हैं।
अब यदि प्रकाश किरणों के आपतन कोण को और बढा़या जाए तो प्रकाश की किरण विरल माध्यम में अपवर्तित होने के स्थान पर सघन माध्यम में ही परावर्तित हो जाती हैं। इसे पूर्ण आन्तरित परावर्तन कहते हैं। प्रकाश तन्तु (Optical Fiber) द्वारा संचार में इसी प्रभाव का उपयोग किया जाता है।

3. वर्ण विक्षेपण 

सूर्य का प्रकाश जब काँच के प्रिज्म में से होकर गुजरता है तो उससे निकलने वाला प्रकाश सप्त वर्ण प्रतिरूप में प्राप्त होता हैं। जिसे पर्दे पर देखा जा सकता है। प्रयोगशाला में सफेद प्रकाश बल्ब का उपयोग करके भी सप्त वर्ण प्रतिरूप प्राप्त किया जा सकता हैं। सूर्य की तरफ या उससे आने वाले प्रकाश को आँखो से सीधा नहीं देखना चाहिए अन्यथा आँखों की रोशनी जा सकती है।

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