वसा की परिभाषा - वसा के प्रकार, स्रोत, रोग और उसके लाभ : fats in hindi

वसा क्या है?

वसा, कोशिकाओं में पाए जाने वाले वे कार्बनिक यौगिक है, ये ग्लिसरॉल तथा वसीय अम्लों के एस्टर होते हैं। वसा का निर्माण कार्बन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन तत्वों से होता है। 

वसा के रूप में हमारे शरीर में ऊर्जा संचित रहती है। शरीर को वसा से ही सबसे अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है। हमारे शरीर में ठोस रूप में विद्यमान वसा को चर्बी एवं द्रव रूप में विद्यमान वसा को तेलीय वसा कहते हैं। ये चिकनी होती है तथा ये शरीर की ऊर्जा के केन्द्र कहलाते हैं। यह भी पढ़ें :- कार्बोहाइड्रेट 

वसा के प्रकार


  1. वसा जल में अविलेय है। परन्तु क्लोरोफॉर्म, बेन्जीन, पेट्रोलियम, एसीटोन, एल्कोहल, ईथर तथा केरोसिन आदि कार्बनिक विधायकों में घुलनशील होता है।
  2. 1 ग्राम वसा के पूर्ण ऑक्सीकरण पर 9.3 किलो कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है।
  3. वसा हमारे शरीर में लगभग 20-30% ऊर्जा प्राप्त होती है
  4. वसा जल में पूर्णतः अघुलनशील होती है जबकि कार्बनिक घोलकों में घुलनशील होता है।
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वसा के प्रकार बंध के आधार पर

वसा बंध (bond ) के आधार पर दो प्रकार की होती है।

1. संतृप्त वसा 

  • संतृप्त वसा में केवल एक प्रकार का बंध होता है। 
  • संतृप्त वसा का तापमान असंतृप्त वसा से अपेक्षाकृत उच्च गलनांक होता है।
  • अत्यधिक सेवन करने पर ह्रदय रोग का खतरा रहता है।
  • ये बहुत जल्दी खराब नहीं होते हैं।

2. असंतृप्त वसा 

  • असंतृप्त वसा द्वारा कम से कम एक दोहरा बंध होता है। 
  • असंतृप्त वसा का तापमान संतृप्त वसा से अपेक्षाकृत कम गलनांक होता है।
  • इस वसा का सेवन लाभकारी होता है।
  • अधिकतर समय, कमरे के तापमान पर, ये तरल अवस्था में पाये जाते हैं।
  • बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं।

वसा के प्रकार एवं स्रोत

  1. वनस्पतियों से प्राप्त वसा
  2. जन्तुओं से प्राप्त वसा

1. वनस्पतियों से प्राप्त वसा :- 

  • यह पेड़ पौधों से प्राप्त की जाती है।
  • वनस्पति वसा को असंतृप्त वसा भी कहते हैं। यह प्रायः द्रव अवस्था में होती हैं। तथा जन्तु वसा की तुलना में अधिक क्रियाशील होती है।
  • सरसों, मूंगफली, तिल, नारियल, काजू, अखरोट, बादाम (अपवाद नारियल तथा ताड़ का तेल)

2. जन्तुओं से प्राप्त वसा :- 

  • यह जन्तुओं से प्राप्त होती है।
  • जन्तु वसा को संतृप्त वसा भी कहते हैं। संतृप्त वसा प्रायः ठोस अवस्था में होते हैं। तथा कम क्रिया शील होने के कारण आसानी से कॉलेस्ट्रॉल में बदल जाती है।
  • दूध,अण्डा मांस, मक्खन, पनीर, (अपवाद - मछली का तेल)

वसा का कार्य

  • वसा हमारे शरीर को अधिक ऊर्जा प्रदान करती हैं।
  • शरीर में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम होने पर आवश्यक ऊर्जा की मात्रा वसा द्वारा पूर्ण की जाती है।
  • शरीर की त्वचा के नीचे संग्रहित होकर शरीर को सुडौल बनाती है। तथा तापमान नियंत्रक का कार्य करती है।
  •  अत्यधिक वसा युक्त भोजन के सेवन से हमारा शरीर बेडौल हो जाता है।
  • वसा शरीर के आन्तरिक अंगों की बाह्य आद्यातो से रक्षा करती हैं तथा हमारी मांसपेशीयों को शक्ति प्रदान करती हैं।
  • त्वचा के रूखेपन (Dryness) से सुरक्षा करता है।

वसा की कमी से होने वाले रोग 

  • मानव शरीर में वसा की कमी से त्वचा रूखी हो जाती है
  • शरीर का विकास अवरूद्ध हो जाता है
  • वसा की अधिकता से शरीर का वजन बढ़ता है। जिससे हृदय रोग, उच्च रक्तचाप आदि की सम्भावना रहती है।

विशेष

  1. ऊँट के कूबड़ में अधिक मात्रा में वसा संचित रहती है, इस कारण ऊँट बहुत दिनों तक बिना खाए रह सकता है।
  2. वर्तमान में बालक एवं किशोर 'जंक फूड' का प्रयोग करते हैं। इससे मोटापा बढ़ता है क्योंकि जंकफूड में वसा की मात्रा अधिक होती है
  3. तनु कास्टिक सोडा (NaOH) या कास्टिक पोटाश (KOH) द्वारा वसाओं का जल-अपघटन (Hydrolysis) करने परवसीय अम्लों के सोडियम या पोटैशियम लवण बन जाते हैं। तथा ग्लिसरॉल सह उत्पाद के रूप में बनता है और सोडियम या पोटैशियम लवण साबुन (Soap) के रूप में काम में लेते हैं। इसे वसाओं का साबुनीकरण (Saponification) कहते हैं।
  4. ग्लिसरॉल का का उपयोग पारदर्शी साबुन बनाने के काम आता है।
  5. पादप वसा का हाइड्रोजनीकरण (Hydrogenation) करने से वसीय अम्लों के दोहरे बन्ध (Double Bond) समाप्त हो जाते हैं जिससे ये वनस्पति घी में परिवर्तित हो जाती हैं।
  6. वसा-प्रधान भोजन वायु में अधिक समय खुला रहे तो वायु की ऑक्सीजन से, वसाओं की अभिक्रिया के फलस्वरूप भोजन विकृतगंधी (Rancid) अर्थात् दुर्गंधयुक्त और खट्टा हो जाता है।
  7. मनुष्य तथा अन्य स्तनियों में प्रमुख वसा भण्डारण त्वचा के ठीक नीचे एक वसा स्तर (Layer) के रूप में होता है जिसे पैनिकुलस ऐडिपोस (Panniculus Adiposus) कहते हैं।

वसा का परीक्षण

दो सफेद खाली कागज लेते हैं। एक पर थोड़ी-सी मात्रा में घी डालते हैं। दूसरे कागज पर 2-3 बूंदे पानी की डालते हैं। कुछ समय पश्चात अवलोकन करने पर हम देखते हैं कि घी वाले कागज पर घी फैल गया एवं वह चिकना हो गया तथा उसे प्रकाश स्रोत की ओर रखने पर वह पारभासी हो गया है, जबकि जल की बूँदों वाले कागज पर ऐसा प्रतीत नहीं होता है। इसलिए वसा चिकनी एवं तैलीय होती है।

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