कारक (Karak) : परिभाषा, भेद और उदाहरण : हिन्दी व्याकरण
कारक की परिभाषा - संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जिससे उसका संबंध
क्रिया के साथ जाना जाता है, उसे कारक कहते हैंअथवा जो शब्द क्रिया के साथ संबंध प्रकट करते हैं,उन्हे कारक कहते हैं। अर्थात् जो शब्द क्रिया संपादन करने में उपयोगी सिद्ध होते हैं कारक कहलाते हैं
क्रिया के साथ जाना जाता है, उसे कारक कहते हैंअथवा जो शब्द क्रिया के साथ संबंध प्रकट करते हैं,उन्हे कारक कहते हैं। अर्थात् जो शब्द क्रिया संपादन करने में उपयोगी सिद्ध होते हैं कारक कहलाते हैं
नोट: कारक चिह्नों को परसर्ग या तिर्यक अथवा विभक्ति कहते हैं।
कारक शाब्दिक अर्थ-क्रिया का निष्पादक/क्रिया का जनक
कारक शाब्दिक अर्थ-क्रिया का निष्पादक/क्रिया का जनक
कारक |
परसर्ग - कारकों में प्रयुक्त विभक्ति (चिह्नो) को ही परसर्ग कहा जाता है। प्रत्येक कारक का अपना 'परसर्ग' होता है।
विभक्ति दो प्रकार की होती हैं-
(1) संश्लिष्ट विभक्ति
(2) विश्लिष्ट विभक्ति।
(1) संश्लिष्ट विभक्ति-वे विभक्तियाँ जो सर्वनाम शब्दों के साथ मिलाकर लिखी जाती है, उन्हें संश्लिष्ट विभक्ति कहते हैं;
जैसे- मेरे, मैंने, मुझको, मुझसे, तुमने, उसने, इसका, इसकी, इसके, तुमको आदि।
(2) विश्लिष्ट विभक्ति-वे विभक्तियाँ जो संज्ञा शब्दों से दूर लिखी जाती हैं, उन्हें विश्लिष्ट विभक्ति कहते हैं;
जैसे हरेन्द्र ने श्यामवीर के कान में लकड़ी डाल दी।
कारक के भेदः(Karak ke bhed)
कारक परसर्ग की तालिका
विभक्ति
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कारक
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परसर्ग चिह्न
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प्रथमा
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कर्ता
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-ने
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द्वितीया
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कर्म
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को
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तृतीया
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करण
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से/द्वारा
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चतुर्थ
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सम्प्रदान
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के लिए, को
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पंचमी
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अपादान
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से (अलग)
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षष्ठी
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संबंध
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का, की, के, रा, री, रे, ना, नी, ने
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सप्तमी
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अधिकरण
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में, पे, पर
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सम्बोधन
|
सम्बोधन
|
- हे, अरे, ओ, ओए, ऐ
|
(1). अधिकरण कारक-
अधिकरण कारण की परिभाषा-संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी वस्तु या व्यक्ति के आधार का बोध हो,
उसे अधिकरण कारक कहते हैं। अर्थात् क्रिया होने के स्थान और काल को बताने वाला कारक अधिकरण कारक कहलाता है
उसे अधिकरण कारक कहते हैं। अर्थात् क्रिया होने के स्थान और काल को बताने वाला कारक अधिकरण कारक कहलाता है
शाब्दिक अर्थ है-आधार या आश्रय
अधिकरण कारक के चिह्न मैं, पे, पर, के ऊपर, के अन्दर, के बीच, के भीतर -इसके परसर्ग/कारक चिह्न है।
अधिकरण कारक के उदाहरण
अधिकरण कारक के उदाहरण
- मेरी परीक्षा मई में होगी।
- मैं कमरे में बैठा हैं।
- मैं छत पर खड़ा हूँ।
- पेड़ पर पक्षी बैठे हैं।
- मोर छत पर नाच रहा है।
- वह द्वार-द्वार भीख मांगता है।
- पिता पुत्र से स्नेह करता है।
- पानी में मछली रहतीं हैं।
- भंवरा फूलों पर मंडरा रहा है।
- कमरे में टीवी रखा है।
नियम (4)-अधिकरण कारक में कहीं-कहीं के मध्य, के बीच, के भीतर आदि शब्दों का प्रयोग होता है;
- आंगन के बीच चारपाई बिछा दो।
- छत के ऊपर बन्दर बैठा है।
नियम (2) समय सूचित करने में भी अधिकरण कारक प्रयुक्त होता है
- राजेश पांच साल में अमेरिका से आया था।
- अनमोल आधे घंटे में खाना बना देती है
नियम (3) कभी कारक चिह्नो का लोप पाया जाता हइस जगह पूर्ण शान्ति है।
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